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चित्रकूट का मतगजेंद्रनाथ मंदिर क्यों कहलाता है शिव का चमत्कारी धाम?

चित्रकूट का मतगजेंद्रनाथ मंदिर क्यों कहलाता है शिव का चमत्कारी धाम?

भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत में चित्रकूट एक ऐसा नाम है, जिसे भगवान श्रीराम की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। यहां का हर कण रामकथा से जुड़ा हुआ है। चित्रकूट की यही भूमि एक अनोखे और प्राचीन शिव मंदिर की साक्षी है, जिसका नाम है मतगजेंद्रनाथ मंदिर। यह मंदिर न सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें समाई पौराणिक मान्यताएं और आस्था इसे और भी खास बना देती हैं।

श्रीराम और ब्रह्मा की संयुक्त स्थापना

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान श्रीराम चित्रकूट में अपने वनवास के दौरान कुछ समय के लिए रुके थे, तब उन्होंने यहां विशेष शिव उपासना की थी। इसी दौरान ब्रह्मा जी भी उनके साथ उपस्थित थे और दोनों ने मिलकर एक पवित्र शिवलिंग की स्थापना की। यह शिवलिंग ही आज मतगजेंद्रनाथ मंदिर के गर्भगृह में पूजित होता है। भक्त इसे अत्यंत प्रभावशाली और चमत्कारी मानते हैं।

मतगजेंद्रनाथ नाम कैसे पड़ा

इस मंदिर का नाम ‘मतगजेंद्रनाथ’ रखने के पीछे भी एक दिलचस्प कथा है। कहा जाता है कि इस मंदिर के शिवलिंग को चित्रकूट का राजा भी कहा जाता है। ‘मतगजेंद्र’ शब्द शिव के विराट, विशाल और बलशाली स्वरूप को दर्शाता है। इस स्वरूप में भगवान शिव समस्त संसार के संचालनकर्ता और अधिपति के रूप में चित्रकूट की रक्षा करते हैं। यही कारण है कि उन्हें ‘चित्रकूट का राजा’ भी कहा जाता है।

रामघाट के किनारे विराजमान अद्भुत शिवधाम

चित्रकूट के प्रसिद्ध रामघाट के नजदीक स्थित मतगजेंद्रनाथ मंदिर भक्तों के लिए आस्था और भक्ति का केंद्र बन चुका है। यहां पर स्थित शिवलिंग को लेकर मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल के दौरान ब्रह्माजी के साथ मिलकर की थी। यह बात इस मंदिर को अन्य शिवालयों से अलग और विशिष्ट बना देती है।

सावन में शिवभक्ति की चरम परंपरा

हर साल सावन के महीने में इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। उत्तर भारत के कोने-कोने से कांवड़िए यहां जल चढ़ाने आते हैं। गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाना उनकी कांवड़ यात्रा का अंतिम और सबसे पवित्र चरण होता है। मान्यता है कि जब तक मतगजेंद्रनाथ शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ता, तब तक कांवड़ यात्रा अधूरी मानी जाती है।

भक्तों की इस परंपरा से यह साफ है कि यह मंदिर न केवल क्षेत्रीय महत्व रखता है, बल्कि देशभर के श्रद्धालुओं के लिए भी एक प्रमुख तीर्थ स्थल बन चुका है।

मंदिर की विशेष परंपरा: बेलपत्र पर राम-राम

इस मंदिर से जुड़ी एक और अनोखी परंपरा श्रद्धालुओं को विशेष आकर्षित करती है। यहां यह मान्यता है कि अगर कोई भक्त सावन के महीने में बेलपत्र पर ‘राम-राम’ लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करता है, तो उसकी मनचाही मुराद पूरी होती है। यह परंपरा शिव और राम की भक्ति के अद्भुत संगम को दर्शाती है।

बेलपत्र जो शिवजी को प्रिय होता है और उस पर लिखा गया राम नाम जो श्रीराम की भक्ति को दर्शाता है, इन दोनों का मिलन एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।

मंदिर का वातावरण और ऊर्जा

मतगजेंद्रनाथ मंदिर का माहौल बेहद शांत और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ होता है। जैसे ही कोई भक्त मंदिर में प्रवेश करता है, उसे एक विशेष प्रकार की शांति और श्रद्धा का अनुभव होता है। मंदिर के प्रांगण में स्थित घंटियों की गूंज, जलाभिषेक की ध्वनि और भक्तों के मुख से निकले ‘हर हर महादेव’ के जयघोष से पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है।

यहां की दीवारें, द्वार और शिवलिंग तक, सभी कुछ वर्षों पुरानी आस्था, विश्वास और भक्ति की गवाही देते हैं। कई श्रद्धालु तो यहां प्रतिवर्ष सावन में एक बार ज़रूर आते हैं, चाहे दूरी कितनी भी हो।

इतिहास, आस्था और परंपरा का संगम

यह मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से चले आ रहे परंपरा, मान्यता और श्रद्धा का जीवंत स्वरूप है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही जीवन की अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।

चित्रकूट में स्थित होने के कारण यह मंदिर श्रीराम से भी जुड़ा हुआ है और भगवान शिव के प्रति उनकी भक्ति को भी दर्शाता है। यहां की भूमि, यहां का वातावरण और यहां का शिवलिंग  सब मिलकर इस स्थान को अनूठा बना देते हैं।

देशभर से आते हैं श्रद्धालु

मतगजेंद्रनाथ मंदिर में सिर्फ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के भक्त ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। सावन के अलावा शिवरात्रि, प्रदोष और सोमवार के दिन इस मंदिर में विशेष भीड़ देखने को मिलती है।

यह मंदिर चित्रकूट आने वाले हर श्रद्धालु की यात्रा का एक जरूरी हिस्सा बन चुका है, जहां लोग न सिर्फ दर्शन के लिए आते हैं, बल्कि आत्मिक शांति और शिवभक्ति का अनुभव लेकर लौटते हैं।

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