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दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, अफजल और मकबूल भट की कब्रों पर याचिका खारिज

दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, अफजल और मकबूल भट की कब्रों पर याचिका खारिज

दिल्ली हाई कोर्ट ने अफजल और मकबूल भट की कब्रों को तिहाड़ जेल परिसर से हटाने की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने अंतिम संस्कार के सम्मान और सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाया।

New  Delhi: दिल्ली हाई कोर्ट ने आतंकवादी मोहम्मद अफजल और मोहम्मद मकबूल भट की कब्रों को तिहाड़ जेल परिसर से हटाने की याचिका पर विचार करने से साफ इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि इनकी कब्रों से आतंकवाद का महिमामंडन हो रहा है और यह जेल परिसर के दुरुपयोग का कारण बन रही हैं।

मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि जेल परिसर में इनकी कब्रें 2013 में बनाई गई थीं और अब 12 साल बाद इसे चुनौती देना उचित नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि किसी के अंतिम संस्कार का सम्मान बनाए रखना चाहिए और इस मुद्दे को सरकार ने संवेदनशील परिस्थितियों को ध्यान में रखकर हल किया था।

याचिका का मकसद

विश्व वैदिक सनातक संघ की तरफ से दायर याचिका में कहा गया कि अफजल और मकबूल भट की कब्रों को गुप्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए। उनका तर्क था कि जेल परिसर में कब्रों के निर्माण और उनका अस्तित्व अवैध और असंवैधानिक है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि ये कब्रें आतंकवाद का महिमामंडन करती हैं और जेल परिसर के शांति एवं सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करती हैं।

याचिका में यह सुझाव दिया गया कि कब्रों को हटाकर कहीं और सुरक्षित और गुप्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाए ताकि जेल परिसर और आसपास के क्षेत्र में कोई कानून-व्यवस्था की समस्या न पैदा हो।

अदालत का रुख

दिल्ली हाई कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करने से साफ इंकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह मामला संवेदनशील है और इसे समझदारी से संभालना जरूरी है। कोर्ट ने पूछा कि क्या 12 साल बाद किसी कब्र के बारे में याचिका दायर करना न्यायसंगत होगा।

पीठ ने कहा कि यह सरकार का फैसला था कि इन्हें जेल परिसर में दफनाया गया। सरकार ने अंतिम संस्कार और शव को दफनाने के नियमों और परिवार की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया था।

याचिकाकर्ता की प्रतिक्रिया

अदालत के रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता की तरफ से पेश अधिवक्ता ने याचिका को वापस लेने की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका वापस लेने के आधार पर इसे खारिज कर दिया।

दोनों आतंकवादियों को 2013 में फांसी दी गई थी और उन्हें उसी समय जेल परिसर में दफनाया गया। याचिका में यह भी दावा किया गया कि उनकी कब्रों से आतंकवाद को बढ़ावा मिल रहा है और यह जेल परिसर का दुरुपयोग है।

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