ड्रोन आजकल युद्ध का एक महत्वपूर्ण और प्रभावी हिस्सा बन गए हैं। ये न केवल खुफिया जानकारी जुटाने में मदद करते हैं, बल्कि त्वरित और सटीक हमले भी करते हैं, जिससे दुश्मन की स्थिति को अत्यधिक कठिन बना दिया जाता है।
टेक्नोलॉजी: आज के युद्ध में जहां सैनिकों और शस्त्रों का अहम स्थान है, वहीं ड्रोन (UAVs) ने युद्ध के परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया है। एक समय था जब युद्ध केवल ग्राउंड फोर्स और एयर फोर्स तक ही सीमित था, लेकिन अब ड्रोन ने हवा से लेकर जमीन तक हर मोर्चे पर अपनी ताकत साबित कर दी है। ये न केवल दुश्मन के इलाके में सटीक जानकारी इकट्ठा करते हैं, बल्कि हमलावर ड्रोन युद्ध के मैदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
यह तकनीकी विकास न केवल युद्धों के रणनीतिक पैटर्न को बदल रहा है, बल्कि आने वाले समय में इसे युद्ध की सबसे प्रभावशाली ताकत भी माना जा सकता है।
ड्रोन का इतिहास: पहले प्रयोग से लेकर आज तक
ड्रोन का इतिहास 100 साल पुराना है। इसका पहला प्रयोग 1914-1918 के बीच, यानी प्रथम विश्व युद्ध के समय हुआ था, जब ब्रिटेन और अमेरिका ने बिना पायलट के विमानों का विकास करना शुरू किया था। हालांकि, इन प्रारंभिक ड्रोन मॉडल्स को युद्ध में इस्तेमाल नहीं किया गया, लेकिन इन्हें रिमोट-कंट्रोल उड़ान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया। 1935 में ब्रिटेन ने ‘क्वीन बी’ नामक रिमोट-कंट्रोल ड्रोन का निर्माण किया, और इससे ही ड्रोन शब्द का जन्म हुआ।
1950-60 के दशक में अमेरिका ने जासूसी के लिए ड्रोन का उपयोग शुरू किया। वियतनाम युद्ध में छोटे ड्रोन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। 1970 के दशक में ड्रोन की उड़ान क्षमता को बढ़ाकर इन्हें 24 घंटे तक आसमान में बनाए रखने का काम किया गया। 1990 के दशक में, रियल-टाइम सैटेलाइट डेटा ने ड्रोन को और सशक्त बना दिया और 2000 में अमेरिका ने ‘प्रिडेटर ड्रोन’ को हथियारबंद बना दिया, जो न केवल जासूसी कर सकता था, बल्कि युद्ध में हमलावर भी बन सकता था।
भारत में ड्रोन की शुरुआत
भारत ने ड्रोन के महत्व को सबसे पहले 1999 के करगिल युद्ध में महसूस किया। उस समय भारतीय वायुसेना को दुश्मन की स्थिति का सही अनुमान लगाने के लिए जासूसी विमानों की आवश्यकता थी। करगिल युद्ध के बाद भारत ने इजराइल से ‘सर्चर’ और ‘हेरॉन’ ड्रोन खरीदे, जो युद्ध क्षेत्र में दुश्मन की स्थिति की सटीक जानकारी देने में सहायक बने।
भारत ने इजराइल से ‘हार्पी’ ड्रोन भी खरीदे, जो रडार को नष्ट करने में सक्षम थे। इस ड्रोन का उपयोग भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए ऑपरेशन सिंदूर में किया था। 2009 में भारत ने ‘हारॉप’ ड्रोन खरीदे, जो अपनी क्षमता से दुश्मन के रडार पर हमलाकर उसे निष्क्रिय कर सकते थे।
2021 में भारत ने इजराइल से ‘हेरॉन TP/मार्क 2’ ड्रोन खरीदे, जो लंबे समय तक उड़ान भरने और भारी हथियारों को ढोने में सक्षम हैं। वहीं, भारत ने हाल ही में अमेरिका से ‘MQ-9B सीगार्जियन’ ड्रोन किराए पर लिए हैं। इन ड्रोन को विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन के खिलाफ उपयोग में लाने की योजना है।
ड्रोन का प्रयोग: रणनीति और तकनीकी विकास
ड्रोन की मदद से युद्ध की रणनीति में कई बदलाव आए हैं। जहां एक समय पर दुश्मन के इलाके में घुसकर युद्ध करना अत्यधिक खतरनाक और जोखिमपूर्ण था, वहीं अब ड्रोन के माध्यम से बिना सैनिकों को मैदान में उतारे, सटीक हमले किए जा सकते हैं। युद्ध की यही नई तकनीक सेना के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो रही है।
भारत में ड्रोन का इस्तेमाल न केवल जासूसी और हमलों तक सीमित है, बल्कि सैन्य अभियानों की गति और सटीकता को भी बढ़ा रहा है। हाल ही में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम और आतंकी ठिकानों पर ड्रोन के माध्यम से हमले किए, जिसमें ‘हारॉप’ ड्रोन ने दुश्मन के रडार और संचार प्रणालियों को निष्क्रिय कर दिया था।
भविष्य में ड्रोन की भूमिका
ड्रोन की भूमिका युद्ध में भविष्य में और भी महत्वपूर्ण होती जा रही है। ये केवल जासूसी उपकरण नहीं बल्कि युद्ध का सबसे प्रभावशाली हथियार बन चुके हैं। एलन मस्क जैसे टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि भविष्य के युद्धों में ड्रोन का अहम योगदान होगा। साइबर सुरक्षा और विरोधी ड्रोन को नष्ट करने के लिए नई तकनीकों का विकास होना जरूरी है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ड्रोन युद्ध के भविष्य के अहम हिस्से बन चुके हैं, और यह केवल शुरुआत है।
आज के युद्ध में ड्रोन ने अपनी ताकत और प्रभाव साबित किया है। चाहे वह भारत-पाकिस्तान का संघर्ष हो, या फिर रूस-यूक्रेन युद्ध, ड्रोन ने हर जगह अपनी अहमियत साबित की है। आने वाले दिनों में ड्रोन के तकनीकी विकास और उन्नति के साथ युद्धों का तरीका और भी ज्यादा बदल सकता है, और यह एक नई युद्ध रणनीति की शुरुआत हो सकती है।