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गंगा सप्तमी 2025: आज करें ये खास उपाय, पाएं पापों से मुक्ति और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद

हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाने वाला गंगा सप्तमी का पर्व इस बार आज, 3 मई 2025, शनिवार को पूरे भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक उत्थान का भी अद्भुत अवसर प्रदान करता है। यह तिथि माँ गंगा के धरती पर अवतरण का प्रतीक है, जब उन्होंने स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरकर समस्त जीवों को पापों से मुक्त करने और मोक्ष प्रदान करने का संकल्प लिया था।

क्या है गंगा सप्तमी का महत्व?

गंगा सप्तमी को गंगा जयंती भी कहा जाता है क्योंकि इसी दिन माँ गंगा ने ब्रह्मलोक से पृथ्वी पर अवतार लिया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि भगीरथ के कठोर तप और प्रयासों के फलस्वरूप माँ गंगा को धरती पर अवतरित होना पड़ा। लेकिन उनकी वेगवती धारा से पृथ्वी को नुकसान न पहुंचे, इस कारण भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया और फिर धीरे-धीरे उन्हें धरती पर प्रवाहित किया। इस दिन को मोक्ष और जीवनदायिनी माँ गंगा के सम्मान में बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

गंगा सप्तमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

  • गंगा सप्तमी की तिथि प्रारंभ: 3 मई 2025, सुबह 5:57 बजे
  • तिथि समाप्त: 4 मई 2025, सुबह 5:22 बजे
  • गंगा स्नान का मुहूर्त: सुबह 10:58 से दोपहर 1:58 तक
  • पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 11:52 से दोपहर 12:45 तक
  • दान पुण्य का मुहूर्त: ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 4:13 से 4:56 तक

गंगा सप्तमी की पूजन विधि

गंगा सप्तमी पर पूजा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सौभाग्य, और आत्मिक शुद्धता का संचार होता है। यहाँ प्रस्तुत है एक सरल एवं प्रभावशाली पूजन विधि:

  • स्वच्छ स्थान पर पूजा की तैयारी करें और माँ गंगा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • तांबे के कलश में गंगाजल भरें, आम के पत्ते और नारियल कलश पर रखें।
  • माँ गंगा को अक्षत, पुष्प, चंदन, धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • नीचे दिए गए मंत्रों का जाप करें:
  • ॐ नमः शिवाय गंगायै नमः।
  • ॐ भागीरथी च विद्महे विष्णुपत्न्यै धीमहि, तन्नो जाह्नवी प्रचोदयात्॥
  • पूजा के अंत में आरती करें और प्रसाद वितरित करें।

गंगा सप्तमी के दिन अवश्य करें ये शुभ कार्य

  1. गंगा स्नान या गंगाजल स्नान: यदि आप गंगा नदी के तट पर हैं तो उस दिन डुबकी अवश्य लगाएं। अन्यथा स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  2. दूध और कपूर अर्पण करें: गंगा जल में दूध मिलाकर अर्पण करें और कपूर का दीप प्रवाहित करें। यह धन-समृद्धि और मानसिक शांति लाता है।
  3. शिवलिंग का अभिषेक करें: गंगाजल में बेलपत्र मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करें। इससे कर्ज से मुक्ति और भाग्यवृद्धि होती है।
  4. विशेष दान करें: अन्न, तांबा, वस्त्र, जलपात्र, घी, चावल आदि दान करें। इससे पितरों की कृपा प्राप्त होती है और सुख-शांति बढ़ती है।
  5. पितृ तर्पण करें: गंगा तट पर पितरों के नाम से तर्पण करें। इससे पितृदोष की शांति होती है और घर में सुख-शांति आती है।

गंगा सप्तमी पर करें ये उपाय और पाएं चमत्कारी लाभ

  • धन वृद्धि के लिए: तांबे के पात्र में गंगाजल भरें, उसमें केसर व थोड़ा गुड़ डालें और घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में रखें। "ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः" मंत्र का 108 बार जप करें।
  • ऋण मुक्ति हेतु: गंगा जल में काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें और "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का 108 बार जप करें।
  • नकारात्मकता से बचाव: गंगाजल में कपूर मिलाकर पूरे घर में छिड़काव करें। मुख्य द्वार के चारों ओर घड़ी की उल्टी दिशा में सात बार घूमकर छिड़काव करने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
  • कलह निवारण और पारिवारिक शांति हेतु: पितरों के नाम पर तर्पण करें और ब्राह्मण को सादा भोजन, तिल, वस्त्र का दान करें। यह पारिवारिक शांति में सहायक होता है।

गंगा सप्तमी का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष

गंगा जल केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि इसमें वैज्ञानिक गुण भी निहित हैं। शोध बताते हैं कि गंगाजल में बायोएक्टिव एजेंट्स होते हैं, जो इसे लंबे समय तक शुद्ध और जीवाणुरहित बनाए रखते हैं। इस कारण इसे अमृततुल्य माना जाता है। अध्यात्म में, यह आत्मा की शुद्धता, पापों की क्षमा और परमात्मा की ओर अग्रसर होने का माध्यम है।

गंगा सप्तमी केवल पूजा-पाठ का पर्व नहीं, बल्कि हमें अपनी नदियों के प्रति जिम्मेदारी निभाने का भी दिन है। आज जब गंगा जैसी पवित्र नदियाँ प्रदूषण का सामना कर रही हैं, तब हमें इस पर्व के माध्यम से स्वच्छता, संरक्षण और समर्पण का संकल्प लेना चाहिए।

गंगा अवतरण की कथा (गंगा सप्तमी की पौराणिक कहानी)

बहुत प्राचीन काल की बात है। इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा सगर नामक एक राजा थे, जिनकी दो रानियाँ थीं। एक रानी के साठ हजार पुत्र हुए और दूसरी रानी सुमति के एक ही पुत्र हुआ, जिसका नाम असमान्जस था। राजा सगर ने एक बार अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया, जिसका घोड़ा भगवान इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के पास बाँध दिया। राजा सगर के आदेश पर उनके साठ हजार पुत्र घोड़े की खोज में निकले और खुदाई करते-करते कपिल मुनि के आश्रम पहुँच गए।

उन्होंने कपिल मुनि पर ही घोड़ा चुराने का आरोप लगाया। इस अपमान से क्रोधित होकर कपिल मुनि ने अपने तपोबल से सभी साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। जब राजा सगर को यह बात पता चली, तो उन्होंने अपने पौत्र अंशुमान को भेजा। अंशुमान ने कपिल मुनि से क्षमा याचना की और घोड़ा वापस ले आया, परंतु वह अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति नहीं करा सका क्योंकि वे पवित्र गंगा जल के बिना मुक्ति नहीं पा सकते थे।

अंशुमान के बाद उनके पुत्र दिलीप, और फिर भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया। राजा भगीरथ ने हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की। अंततः भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए और उन्होंने माँ गंगा को धरती पर भेजने की अनुमति दी। लेकिन गंगा ने कहा – यदि मैं सीधी पृथ्वी पर उतरूँगी तो मेरी जलधारा इतनी तीव्र होगी कि पृथ्वी उसका भार सहन नहीं कर पाएगी।

इस पर भगवान ब्रह्मा ने कहा कि भगवान शिव ही तुम्हारी धारा को नियंत्रित कर सकते हैं। फिर भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की। शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी जटाओं में गंगा को रोक लिया, और फिर धीरे-धीरे उसे धरती पर प्रवाहित किया। माँ गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चलीं और जिस स्थान पर उनके पूर्वज भस्म हुए थे, वहाँ उन्होंने जल से उनका उद्धार किया। इस प्रकार, गंगा ने सगर पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया, और तभी से उन्हें भागीरथी भी कहा जाने लगा।

गंगा सप्तमी 2025 एक अद्भुत आध्यात्मिक अवसर है जब आप अपने जीवन को नए सकारात्मक ऊर्जा से भर सकते हैं। यह दिन पवित्रता, श्रद्धा, आत्मशुद्धि और सामाजिक दायित्व का संगम है। माँ गंगा की आराधना से न केवल हमें पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन की दिशा भी धर्म और कर्म की ओर अग्रसर होती है। 

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