जांच एजेंसियों और पुलिस द्वारा वकीलों को सम्मन व नोटिस भेजे जाने की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गंभीर चिंता जताई। कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि किसी मामले में पक्षकारों को कानूनी सलाह देने वाले बचाव पक्ष के वकीलों को सीधे तौर पर तलब करना है।
नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को जांच एजेंसियों और पुलिस द्वारा वकीलों को सीधे तौर पर तलब किए जाने की प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता जाहिर की। सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह ने इस पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया इस तरह की कार्रवाई अस्वीकार्य है, क्योंकि यह न केवल वकीलों की पेशेवर स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को भी खतरे में डालता है।
अदालत का स्पष्ट रुख: 'वकीलों की निडरता जरूरी'
पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि किसी मामले में कानूनी परामर्श देने वाले वकील को पुलिस या जांच एजेंसी द्वारा सीधे तलब करना, एक खतरनाक परंपरा की शुरुआत हो सकती है। इससे वकील अपनी भूमिका को निडरता और स्वतंत्रता से निभाने में हिचक महसूस कर सकते हैं। न्यायिक व्यवस्था में वकीलों की निष्पक्ष भूमिका और साहसिक प्रस्तुति लोकतंत्र का आधार स्तंभ है, जिसे किसी भी स्थिति में कमजोर नहीं होने देना चाहिए।
दो महत्वपूर्ण प्रश्न तय किए गए
सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर विस्तार से विचार करने का निर्णय लेते हुए दो महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं:
- यदि कोई वकील केवल कानूनी सलाह देने की भूमिका में है, तो क्या जांच एजेंसी या पुलिस को उसे सीधे तलब करने का अधिकार है?
- यदि एजेंसियों को लगता है कि वकील की भूमिका सिर्फ सलाहकार की नहीं, बल्कि किसी आपराधिक साजिश में भागीदारी की भी है, तो क्या उन्हें ऐसे मामलों में सीधे सम्मन जारी करना चाहिए या फिर किसी न्यायिक निगरानी व्यवस्था के तहत यह कार्रवाई होनी चाहिए?
इन दोनों सवालों पर व्यापक बहस के लिए सुप्रीम कोर्ट ने देश के शीर्ष कानूनी संस्थानों और अधिकारियों से मदद लेने का फैसला किया है। इसमें अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन के अध्यक्ष विपिन नायर शामिल होंगे।
अंतरिम राहत के साथ गुजरात सरकार को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणियां गुजरात के एक वकील की याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं, जिसमें उन्होंने हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उन्हें पुलिस के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए गुजरात हाई कोर्ट के 12 जून के आदेश पर रोक लगा दी और वकील को भेजे गए सम्मन और नोटिस के क्रियान्वयन पर भी रोक लगा दी।
साथ ही, गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर उसका पक्ष मांगा गया है। कोर्ट ने यह मामला मुख्य न्यायाधीश (CJI) के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया है ताकि इस पर व्यापक और नीतिगत निर्देश जारी किए जा सकें।
ईडी के पूर्व नोटिस पर उठे सवाल
गौरतलब है कि हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार और प्रताप वेणुगोपाल को एक मामले में सम्मन जारी किया था, जिसके बाद कानूनी बिरादरी में हड़कंप मच गया था। वकीलों की कई एसोसिएशनों ने इस पर विरोध दर्ज कराया और इसे वकीलों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप बताया। इसके बाद ईडी को वह सम्मन वापस लेना पड़ा और एक आंतरिक सर्कुलर जारी कर इस तरह की कार्रवाई से बचने की सलाह दी गई।