मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कई विकार जैसे एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर), ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर और चिंता (Anxiety) लंबे समय से वैज्ञानिकों के शोध का विषय रहे हैं। लेकिन हाल ही में हुए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने इस बात की पुष्टि की है कि इन विकारों के पीछे सिर्फ बाहरी कारक ही नहीं, बल्कि हमारे जीन (Genes) यानी आनुवंशिक संरचना की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह अध्ययन इस बात की गहराई से जांच करता है कि एक जैसे माहौल में पलने वाले जुड़वां बच्चों में भी क्यों मानसिक लक्षणों में फर्क देखने को मिलता है।
क्या है इस शोध की खासियत?
यह अध्ययन यूनाइटेड किंगडम के प्रतिष्ठित किंग्स कॉलेज लंदन द्वारा किया गया, जिसमें दुनिया भर के 23 विश्वविद्यालयों ने सहयोग किया। इसमें 11 अलग-अलग अध्ययनों से प्राप्त लगभग 21,792 एक जैसे जुड़वां बच्चों (Identical Twins) के डेटा को मिलाया गया। इस प्रकार, यह अब तक का सबसे बड़ा जुड़वां बच्चों पर किया गया जेनेटिक रिसर्च माना जा रहा है, जिसे 'जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडी' (GWAS) के रूप में जाना गया।
क्या कहते हैं शोध के नतीजे?
शोध में वैज्ञानिकों ने उन विशेष जेनेटिक वेरिएंट्स (Gene Variants) की पहचान की, जो किसी व्यक्ति की पर्यावरणीय संवेदनशीलता (Environmental Sensitivity) को तय करते हैं। यही संवेदनशीलता यह तय करती है कि किसी भी व्यक्ति पर एक ही परिस्थिति या अनुभव का कितना और कैसा असर पड़ेगा।
उदाहरण के तौर पर, अगर दो बच्चे एक ही प्रकार के तनाव का सामना करते हैं, तो जरूरी नहीं कि दोनों पर इसका असर समान हो। एक बच्चा सामान्य रह सकता है जबकि दूसरा डिप्रेशन या एंग्जायटी का शिकार हो सकता है। यह अंतर, अब माना जा रहा है, जीन में मौजूद अंतर के कारण हो सकता है।
कैसे जुड़ी होती है जेनेटिक संवेदनशीलता से मानसिक समस्याएं?
शोध में पाया गया कि कुछ खास जीन, जो शरीर में न्यूरो डेवलपमेंट, इम्यून फंक्शन और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) से जुड़े होते हैं, वे ऑटिज्म जैसे लक्षणों में भूमिका निभाते हैं। वहीं, कुछ जीन तनाव की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने वाले हार्मोन को प्रभावित करते हैं, जो डिप्रेशन या चिंता जैसे लक्षणों में भिन्नता लाते हैं।
एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह भी रहा कि कैटेकोल माइन (Catecholamines) नामक हार्मोन को नियंत्रित करने वाले जीन, मनोविकृति (Psychosis) जैसे अनुभवों से भी संबंधित पाए गए।
पर्यावरणीय संवेदनशीलता: हर कोई नहीं करता एक जैसी प्रतिक्रिया
रिसर्च में पाया गया कि कुछ जेनेटिक वेरिएंट्स यह तय करते हैं कि हम अपने आसपास की परिस्थितियों—जैसे तनाव, सामाजिक दबाव, भावनात्मक अनुभव—पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। यानी एक ही प्रकार का अनुभव दो अलग-अलग लोगों पर अलग प्रभाव डाल सकता है, और इसका कारण उनके जीन हो सकते हैं।
डॉ. एल्हम असारी, जो इस स्टडी की लीड पोस्टडॉक्टरल रिसर्चर रहीं, बताती हैं, 'हर व्यक्ति का अनुभवों के प्रति रिस्पॉन्स अलग होता है। हमारी खोज बताती है कि कुछ खास जीन यह तय करते हैं कि किसी अनुभव का मानसिक स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ेगा।'
ये शोध क्यों है महत्वपूर्ण?
यह शोध न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य की बेहतर समझ प्रदान करता है, बल्कि यह संभावित भविष्य के इलाज और परामर्श पद्धतियों में भी क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। अगर किसी बच्चे में पहले से ही यह समझ हो जाए कि वह जेनेटिक रूप से अधिक संवेदनशील है, तो:
- उसे तनावपूर्ण माहौल से बचाया जा सकता है।
- उसके लिए विशेष काउंसलिंग या थेरेपी की व्यवस्था की जा सकती है।
- दवाओं और इलाज का चयन व्यक्तिगत संवेदनशीलता के आधार पर किया जा सकता है।
- स्कूल और परिवार में व्यवहारिक समझ विकसित की जा सकती है।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए जागरूकता जरूरी
आज के समय में जहां बच्चों से लेकर बड़ों तक मानसिक तनाव एक आम समस्या बनती जा रही है, ऐसे में यह समझना जरूरी है कि सिर्फ परिस्थितियां ही जिम्मेदार नहीं होतीं। कई बार जीन, जो हमें जन्म से ही मिले होते हैं, हमारे अनुभवों की प्रक्रिया को गहराई से प्रभावित करते हैं। इसलिए, मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई भी निर्णय लेने से पहले व्यक्ति की जेनेटिक पृष्ठभूमि और संवेदनशीलता को ध्यान में रखना बेहद जरूरी हो गया है।
आगे का रास्ता: भविष्य में क्या बदल सकता है?
- भविष्य में जेनेटिक स्क्रीनिंग द्वारा यह जाना जा सकेगा कि कोई बच्चा या व्यक्ति किन मानसिक विकारों के प्रति संवेदनशील हो सकता है।
- व्यक्तिगत चिकित्सा (Personalized Medicine) और मनोचिकित्सा अब सिर्फ व्यवहार पर नहीं, बल्कि जीन पर भी आधारित होगी।
- शिक्षा और पालन-पोषण के तौर-तरीकों में भी बदलाव किया जा सकता है ताकि संवेदनशील बच्चों को बेहतर सपोर्ट मिल सके।
- मानसिक विकारों को लेकर समाज में जागरूकता बढ़ेगी और कलंक (Stigma) कम होगा।
यह अध्ययन हमें यह बताता है कि मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ जीवन की कठिनाइयों का परिणाम नहीं है, बल्कि यह हमारे शरीर की भीतरी संरचना से भी गहराई से जुड़ा है। अगर हम इस जानकारी का सही उपयोग करें, तो हम लाखों लोगों को न सिर्फ मानसिक बीमारियों से बचा सकते हैं, बल्कि उन्हें एक बेहतर, समझदार और संतुलित जीवन जीने में मदद भी कर सकते हैं।