झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे भगवान शिव का अत्यंत पवित्र धाम माना जाता है। हर साल श्रावण मास में यहां लाखों श्रद्धालु बाबा बैद्यनाथ के दर्शन और जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। भक्त सुल्तानगंज से पवित्र गंगाजल लाकर लगभग 100 किलोमीटर की यात्रा पैदल तय करके बाबा के चरणों में जल अर्पित करते हैं। यह मेला आस्था, श्रद्धा और अद्भुत ऊर्जा का संगम होता है।
रामायण काल से जुड़ी पौराणिक कथा
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा रामायण काल की मानी जाती है। कहा जाता है कि लंका के राजा रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर कठोर तपस्या की थी। उसने एक-एक करके अपने नौ सिर काटकर शिवलिंग पर अर्पित कर दिए। जैसे ही वह दसवां सिर काटने ही वाला था, भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और प्रकट होकर वर मांगने को कहा।
रावण की इच्छा और शिवजी का वरदान
रावण ने शिवजी से वरदान मांगा कि वह उन्हें लंका ले जाकर वहां स्थापित करना चाहता है। शिवजी ने सहमति दे दी, लेकिन एक शर्त रखी कि वह शिवलिंग को रास्ते में कहीं भी रखेगा, तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा और उसे फिर उठाया नहीं जा सकेगा। रावण ने शर्त मान ली और शिवलिंग लेकर चल पड़ा।
भगवान विष्णु की लीला
विष्णु ने वरुण देव को आदेश दिया कि रावण को बीच रास्ते में लघुशंका की आवश्यकता हो। ऐसा ही हुआ। रास्ते में जब रावण को लघुशंका लगी, तो उसे एक ग्वाला नजर आया। रावण ने शिवलिंग उस ग्वाले को पकड़ा दिया और कहा कि वह थोड़ी देर बाद वापस आएगा। ग्वाले ने थोड़ी देर शिवलिंग को पकड़े रखा, लेकिन उसके बाद उसे भूमि पर रख दिया और चला गया।
शिवलिंग वहीं हो गया स्थापित
जब रावण वापस लौटा तो देखा कि शिवलिंग जमीन पर रखा हुआ है। उसने शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। रावण को क्रोध आया और उसने शिवलिंग को दबाने की कोशिश की, जिससे उसकी आकृति थोड़ी विकृत हो गई। इसके बाद शिवलिंग वहीं स्थायी रूप से स्थापित हो गया।
देवताओं ने की पूजा
रावण की असफलता के बाद ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवता वहां आए और उस शिवलिंग की पूजा की। उस स्थान को वैद्यनाथ धाम के रूप में स्थापित किया गया। इस स्थान की महिमा इतनी है कि आज भी यहां मन से की गई प्रार्थना को भगवान शिव अवश्य सुनते हैं।
रोगों से मुक्ति दिलाने वाला शिवलिंग
इस ज्योतिर्लिंग को वैद्यनाथ कहे जाने के पीछे भी एक विशेष कथा है। कहा जाता है कि जब रावण ने अपने नौ सिर अर्पित कर दिए थे, तो शिवजी ने वैद्य यानी चिकित्सक बनकर उसके कटे हुए सिरों को फिर से जोड़ दिया और उसे पीड़ा से राहत दिलाई। इसी कारण इस स्थान को वैद्यनाथ कहा जाने लगा। मान्यता है कि यहां पूजा करने से रोग, दोष और शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं।
कामना लिंग के रूप में प्रसिद्ध
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है। मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से यहां आकर बाबा से कुछ मांगता है, उसकी इच्छा जरूर पूरी होती है। यही कारण है कि यहां केवल झारखंड या बिहार से ही नहीं, बल्कि पूरे देश और विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं।
देवघर कैसे बना धार्मिक राजधानी
देवघर का अर्थ होता है देवताओं का घर। यह नाम स्वयं इस स्थान की आध्यात्मिक महिमा को दर्शाता है। यहां स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर सिर्फ एक ज्योतिर्लिंग नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र है। मंदिर का वास्तुशिल्प बेहद भव्य और आकर्षक है। मंदिर परिसर में 22 अन्य मंदिर भी हैं, जो देवघर को एक संपूर्ण तीर्थस्थल बना देते हैं।
सावन में उमड़ता है जनसैलाब
सावन महीने में देवघर की गलियां और सड़कें भक्तों से पट जाती हैं। सुल्तानगंज से जल लाकर पैदल यात्रा करने वाले कांवड़ियों की कतारें कई किलोमीटर लंबी होती हैं। बाबा की जयकारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठता है। भक्त 100 किलोमीटर की दूरी नंगे पांव तय करते हैं और जल चढ़ाकर मनोकामना पूर्ण करते हैं।