Columbus

जम्मू-कश्मीर सरकार ने 25 किताबों को बताया ‘अलगाववादी’, बैन कर जारी किए जब्ती आदेश

जम्मू-कश्मीर सरकार ने 25 किताबों को बताया ‘अलगाववादी’, बैन कर जारी किए जब्ती आदेश

जम्मू-कश्मीर सरकार ने 25 किताबों पर प्रतिबंध लगाया है। इनमें अरुंधति रॉय, ए.जी. नूरानी और मौलाना मौदूदी जैसे लेखकों की रचनाएं शामिल हैं। आरोप है कि ये किताबें अलगाववाद और झूठे विमर्श फैलाती हैं।

Book Ban JK: जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 25 ऐसी पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाया है, जिनके बारे में कहा गया है कि वे राज्य में झूठे विमर्श, आतंकवाद और अलगाववादी सोच को बढ़ावा देती हैं। इन पुस्तकों में बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका अरुंधति रॉय की किताब 'आजादी' और संवैधानिक विशेषज्ञ ए. जी. नूरानी की चर्चित पुस्तक 'कश्मीर डिस्प्यूट' भी शामिल हैं। गृह विभाग ने इन किताबों को तुरंत प्रभाव से प्रतिबंधित कर जब्त करने के आदेश जारी किए हैं।

जिन किताबों पर लगा प्रतिबंध

प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची में अंतरराष्ट्रीय लेखक, इस्लामी विद्वान और कश्मीर मुद्दे पर लिखने वाले कई नाम शामिल हैं। इनमें मौलाना मौदूदी की अल-जिहाद फिल-इस्लाम, ऑस्ट्रेलियाई लेखक क्रिस्टोफर स्नेडेन की इंडिपेंडेंट कश्मीर, डेविड देवदास की इन सर्च ऑफ अ फ्यूचर, विक्टोरिया स्कोफील्ड की कश्मीर इन कॉन्फ्लिक्ट, ए. जी. नूरानी की कश्मीर डिस्प्यूट (1947-2012) और अरुंधति रॉय की आजादी प्रमुख हैं।

सरकार का तर्क: युवाओं को गुमराह करने वाला साहित्य

गृह विभाग के अनुसार, यह निर्णय खुफिया रिपोर्ट्स और जांच के आधार पर लिया गया है। आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इन पुस्तकों का उपयोग जम्मू-कश्मीर के युवाओं को कट्टरपंथी विचारों की ओर धकेलने, हिंसा और आतंकवाद के लिए प्रेरित करने तथा भारत के खिलाफ अलगाववादी सोच को मजबूत करने में किया जा रहा था। सरकार ने कहा है कि यह साहित्य एक सुनियोजित तरीके से क्षेत्र में अशांति फैलाने के लिए प्रसारित किया गया था।

ऐतिहासिक और राजनीतिक व्याख्या का मुखौटा

प्रशासन का कहना है कि यह साहित्य अक्सर ऐतिहासिक या राजनीतिक टिप्पणी के रूप में सामने आता है, लेकिन इसकी असली मंशा अलगाववाद और हिंसा को बढ़ावा देना होती है। ऐसे किताबें युवाओं के मन में भ्रम पैदा करती हैं और उन्हें भारत-विरोधी भावनाओं की ओर ले जाती हैं। यही कारण है कि सरकार ने इस तरह के साहित्य के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा

यह निर्णय उस बिंदु पर बहस को फिर से जन्म देता है जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन की आवश्यकता होती है। अरुंधति रॉय और ए. जी. नूरानी जैसे लेखक लंबे समय से कश्मीर पर अपनी राय खुलकर रखते आए हैं। अब जब उनकी किताबों को प्रतिबंधित किया गया है, तो यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह कदम विचारों की स्वतंत्रता को सीमित करता है या फिर यह एक जरूरी राष्ट्रीय सुरक्षा उपाय है।

अलगाववाद के विरुद्ध सरकार की नीति

जम्मू-कश्मीर में 370 हटने के बाद से सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी प्रकार के अलगाववादी एजेंडे को बर्दाश्त नहीं करेगी। पुस्तकें जब विचारधारा का माध्यम बनकर राज्य की शांति और अखंडता के लिए खतरा बनें, तो उन पर रोक लगाना सरकार का दायित्व बन जाता है। यह प्रतिबंध उसी दिशा में उठाया गया एक कदम है।

इससे पहले भी हो चुके हैं ऐसे निर्णय

यह पहला मौका नहीं है जब सरकार ने इस तरह का कदम उठाया है। पहले भी जम्मू-कश्मीर और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में कुछ लेखकों, पत्रकारों और संगठनों के कार्यों पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, जब यह पाया गया कि उनके विचार देश की एकता के विरुद्ध हैं।

क्या कहता है कानून?

भारतीय संविधान की धारा 19(2) के तहत, सरकार को यह अधिकार है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगा सके, जब वह देश की संप्रभुता, सुरक्षा, शांति और नैतिकता के विरुद्ध हो। इस केस में, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने इसी प्रावधान का उपयोग करते हुए प्रतिबंध लागू किया है।

Leave a comment