कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान, दीपदान और व्रत का विशेष महत्व माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा होती है और धार्मिक मान्यता के अनुसार स्नान और दान से पापों का नाश होता है तथा मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है. भक्त पवित्र नदियों पर स्नान, पूजा और दान करके शुभ फल की कामना करते हैं.
Kartik Purnima: कार्तिक पूर्णिमा का पवित्र पर्व इस वर्ष 5 नवंबर को देशभर में श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा. हिंदू धर्म में यह तिथि अत्यंत शुभ मानी जाती है और सुबह ब्रह्म मुहूर्त में गंगा सहित पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष विधान है. यह दिन भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से जुड़ा है, इसलिए भक्त व्रत रखते हैं, दीपदान करते हैं और दान-पुण्य में हिस्सा लेते हैं. मान्यता है कि इस दिन किए गए स्नान और दान से पापों का नाश होता है तथा मन को आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है.
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त
कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर की रात 11 बजकर 37 मिनट से शुरू होकर 5 नवंबर की शाम 6 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगी. चूंकि सूर्योदय के समय यह तिथि विद्यमान रहेगी और शाम तक भी पूर्णिमा रहेगी, इसलिए कार्तिक पूर्णिमा का पर्व 5 नवंबर को मनाया जाएगा. इसी दिन व्रत और पूजा का विधान है.
धार्मिक परंपरा के अनुसार, पुण्य प्राप्ति के लिए सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है. जहां नदी उपलब्ध न हो, वहां घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है.
गंगा स्नान का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान की परंपरा सदियों से चली आ रही है. मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने मात्र से पिछले जन्मों के कर्मों का प्रभाव कम होता है और व्यक्ति के जीवन में शुभता आती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, यह स्नान आत्मा को शुद्ध करता है और मन को शांत करता है. कहा जाता है कि इस दिन किया गया स्नान व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है.
गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, सरयू जैसी पवित्र नदियों के तट पर इस दिन विशेष भीड़ रहती है. भक्त दीपदान करते हैं और घाटों पर मंत्रोच्चार और आरती की गूँज सुनाई देती है. गंगा तटों पर दीपदान से जीवन में प्रकाश, शांति और समृद्धि आने का विश्वास है.

भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार
कार्तिक पूर्णिमा का संबंध भगवान विष्णु के प्रथम अवतार मत्स्य रूप से भी है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया था ताकि धरती पर जीवन को प्रलय से बचाया जा सके. इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है. भक्त विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं और व्रत रखकर आध्यात्मिक शांति की कामना करते हैं.
मत्स्य अवतार की कथा यह संदेश देती है कि ईश्वर हर युग में धर्म और जीवों की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं. इसीलिए कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विष्णु भगवान की आराधना के साथ-साथ माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है. कई स्थानों पर इस दिन शिव पूजा की भी परंपरा है क्योंकि यह तिथि शिव भक्तों के लिए भी अत्यंत शुभ मानी जाती है.
व्रत और दान का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन किया गया व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है. भक्त सुबह जल अर्पण करते हैं, व्रत रखते हैं और जरूरतमंदों को भोजन एवं वस्त्र दान करते हैं. शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन दीपदान से अनंत पुण्य प्राप्त होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है.
दान के महत्व को इस पर्व पर विशेष रूप से रेखांकित किया गया है. भोजन दान, वस्त्र दान, अन्नदान और गौदान का बड़ा महत्व है. कई लोग गरीबों और साधुओं में मिठाई और भोजन वितरित करते हैं. यह मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर किया गया दान जीवन में सौभाग्य, स्वास्थ्य और खुशहाली लाता है.
दीपदान की परंपरा
कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान का अपना खास महत्व है. भक्त नदी किनारे दीपक जलाते हैं और उन्हें प्रवाहित करते हैं. इसका प्रतीकात्मक अर्थ है कि व्यक्ति अपनी नकारात्मकता को त्यागकर प्रकाश और सकारात्मकता का स्वागत करता है. कई मंदिरों और घाटों पर इस अवसर पर विशेष दीपोत्सव आयोजित किए जाते हैं जो देखने में बेहद मनमोहक होते हैं.
घर पर पूजा कैसे करें
जो लोग नदी तक नहीं जा पाते, वे घर पर ही गंगाजल से स्नान कर सकते हैं और विधिवत पूजा कर सकते हैं. सुबह जल, फूल, फल और तिल के साथ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. शाम के समय दीपक जलाकर घर और तुलसी चौरे पर दीपदान किया जाता है.
आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश
कार्तिक पूर्णिमा केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है. यह पर्व आत्मचिंतन, सेवा, संयम और शांति का संदेश देता है. इसका मूल भाव मन और आत्मा की शुद्धि से जुड़ा है. इस दिन व्यक्ति दया, करुणा और धर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प लेता है.
गंगा स्नान से लेकर दीपदान और दान तक, हर परंपरा का अपना वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष है. यह पर्व समाज को एकजुटता, स्वच्छता और सकारात्मक सोच का संदेश भी देता है.
                                                                        
                                                                            
                                                











