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खगड़िया विधानसभा सीट: जेडीयू और राजद की कड़ी टक्कर, बिहार के राजनीतिक भविष्य पर पड़ेगा असर

खगड़िया विधानसभा सीट: जेडीयू और राजद की कड़ी टक्कर, बिहार के राजनीतिक भविष्य पर पड़ेगा असर

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले खगड़िया विधानसभा सीट राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से चर्चा में है। 1951 में अस्तित्व में आई इस सीट ने हमेशा बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाई है। पहले इसे कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था, लेकिन समय के साथ राजनीतिक समीकरण बदलते गए। 

खगड़िया: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले खगड़िया सीट एक बार फिर राजनीतिक हलचल का केंद्र बनी हुई है। यह सीट 1951 में अस्तित्व में आई थी और शुरुआती दौर में लंबे समय तक कांग्रेस का मजबूत गढ़ मानी जाती रही। लेकिन बदलते राजनीतिक परिदृश्य और बदलती सामाजिक संरचनाओं के कारण धीरे-धीरे यहां के समीकरण पूरी तरह बदल गए। अब यह सीट मुख्य रूप से जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच कांटे की टक्कर का मैदान बन गई है।

खगड़िया का चुनावी इतिहास

इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं। इनमें कांग्रेस ने पांच बार जीत दर्ज की, जबकि जेडीयू ने तीन बार इस सीट पर कब्जा जमाया। इसके अलावा:

  • संयुक्त समाजवादी पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो-दो बार जीत हासिल की।
  • बीजेपी ने भी दो बार इस सीट पर जीत दर्ज की।
  • जनता पार्टी, सीपीआई और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने एक-एक बार जीत हासिल की।

पिछले चुनावों में एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिली।

जातीय समीकरण और वोट बैंक

खगड़िया की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा अहम रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार:

  • वैश्य: 50,000
  • यादव: 32,000
  • दलित: 30,000
  • मुस्लिम: 24,000
  • अगड़ी जाति: 20,000
  • कुर्मी: 18,000
  • कोयरी: 16,000
  • पासवान: 15,000
  • सहनी: 15,000
  • अन्य जातियां: 45,000

यादव समाज राजद के लिए मजबूत आधार प्रदान करता है, जबकि भूमिहार और ब्राह्मण परंपरागत रूप से बीजेपी और जेडीयू के प्रति झुके हुए हैं। कुर्मी, कोयरी और दलित वर्ग भी सभी दलों के लिए महत्वपूर्ण हैं, और मुस्लिम वोटर आमतौर पर राजद और कांग्रेस के पक्ष में रहते हैं।खगड़िया, कोसी, गंगा, बूढ़ी गंडक और बागमती नदियों के किनारे बसा है। यह क्षेत्र बार-बार बाढ़ और कटाव की चपेट में आता है। इसलिए स्थानीय विकास, पुनर्वास, बेरोजगारी और कृषि संकट जैसे मुद्दे चुनावी बहस का हिस्सा बनते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह सीट न केवल जातीय समीकरण, बल्कि स्थानीय समस्याओं के समाधान पर भी आधारित है। उम्मीदवारों के लिए यह चुनौतीपूर्ण है कि वे इन मुद्दों को जनता के सामने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करें।

प्रमुख दल और उम्मीदवार

1952 से 1962 तक कांग्रेस का दबदबा रहा, जबकि 1967 और 1969 में संयुक्त समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की। 1972 से 2015 तक यह सीट जेडीयू और अन्य दलों के कब्जे में रही। 2020 में कांग्रेस के छत्रपति यादव ने जेडीयू की पूनम देवी यादव को केवल 3,000 वोटों से हराकर राजनीतिक हलचल पैदा की। इस बार खगड़िया पर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की नजर विशेष रूप से केंद्रित है।

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