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करवा चौथ प्रेम, समर्पण और सौंदर्य का पावन व्रत

करवा चौथ प्रेम, समर्पण और सौंदर्य का पावन व्रत

भारतीय संस्कृति में स्त्रियों का स्थान अत्यंत आदरणीय माना गया है। यहां पर्व-त्योहारों का सिलसिला केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह रिश्तों को सहेजने, संवेदनशीलता को अभिव्यक्त करने और सामाजिक मूल्यों को सुदृढ़ करने का माध्यम भी बनते हैं। ऐसे ही एक पावन और भावनात्मक पर्व का नाम है — करवा चौथ।

करवा चौथ भारतीय विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह पर्व विशेषकर उत्तर भारत में मनाया जाता है, जहाँ पत्नियाँ अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं। यह नारी की निष्ठा, प्रेम और तपस्या का प्रतीक है।

करवा चौथ का अर्थ और नाम की उत्पत्ति

‘करवा’ एक प्रकार का मिट्टी का बर्तन होता है जिसका उपयोग पूजा में किया जाता है, और ‘चौथ’ का तात्पर्य है ‘चतुर्थी’, अर्थात् चंद्रमा के चौथे दिन। इस पर्व में करवा (मिट्टी का पात्र) का विशेष महत्व होता है, जिसमें जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है।

करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जो सामान्यतः अक्टूबर या नवंबर में आती है।

करवा चौथ की पौराणिक कथा

करवा चौथ से संबंधित अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलन में हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा वीरवती की मानी जाती है।

वीरवती एक अत्यंत सुंदर और अपने भाइयों से बहुत प्रेम करने वाली युवती थी। उसने अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा। व्रत के कठोर नियमों और पूरे दिन भूखे-प्यासे रहने के कारण उसकी स्थिति अत्यंत कमजोर हो गई। अपनी बहन की हालत देखकर उसके भाइयों को चिंता हुई और उन्होंने छलपूर्वक एक कृत्रिम चंद्रमा बनाकर उसे दिखाया, जिससे वीरवती ने व्रत तोड़ दिया। लेकिन जैसे ही उसने व्रत समाप्त किया, उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। यह सुनकर वह अत्यंत दुखी हुई और उसने पूरे श्रद्धा भाव से देवी की आराधना करते हुए प्रायश्चित किया। उसकी सच्ची भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर यमराज ने उसके पति को पुनः जीवन प्रदान किया।

यह कथा प्रेम, आस्था और संकल्प की मिसाल बन गई और तभी से यह पर्व हर साल महिलाओं द्वारा धूमधाम से मनाया जाने लगा।

करवा चौथ का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पक्ष

करवा चौथ का उल्लेख इतिहास में भी मिलता है। प्राचीन भारत में जब राजा-महाराजा युद्धों में जाते थे, तब उनकी पत्नियाँ अपने पति की सुरक्षा और विजय के लिए व्रत रखती थीं। यह व्रत केवल व्यक्तिगत प्रेम नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज की रक्षा की कामना भी थी।

यह पर्व महिलाओं को आध्यात्मिक शक्ति, मानसिक दृढ़ता और सामाजिक सम्मान प्रदान करता है। सामूहिक रूप से महिलाओं का सजना-संवरना, मिलकर गीत गाना, और एक-दूसरे की मंगल कामना करना, इसे एक सामाजिक त्योहार का रूप देता है।

व्रत की विधि और पूजा प्रक्रिया

करवा चौथ व्रत की प्रक्रिया बेहद अनुशासित और श्रद्धापूर्ण होती है। इसकी शुरुआत होती है

  1. सरगी से (सुबह की थाली)

सरगी वह भोजन होता है जो सास द्वारा बहू को सूर्योदय से पहले दिया जाता है। इसमें मिठाई, सूखे मेवे, फल, मठरी, हलवा आदि होते हैं। यह प्रेम और आशीर्वाद का प्रतीक होता है।

  1. दिनभर का निर्जला व्रत

इस दिन महिलाएँ सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक बिना अन्न और जल के व्रत रखती हैं। यह संयम, शक्ति और श्रद्धा की परीक्षा का दिन होता है।

  1. श्रृंगार और पूजा

शाम को महिलाएँ सुंदर परिधान पहनती हैं, विशेषकर लाल या गुलाबी रंग की साड़ी या लहंगा। हाथों में मेहंदी, माथे पर बिंदी, चूड़ियाँ, बिछुए और मंगलसूत्र से पूरा श्रृंगार किया जाता है।

  1. करवा पूजा

सांझ के समय महिलाएं एकत्र होकर करवा चौथ की कथा सुनती हैं और करवा (मिट्टी का पात्र) की पूजा करती हैं। पूजा की थाली में दीया, फल, मिठाई, चावल, रोली आदि होते हैं।

  1. चंद्रमा को अर्घ्य और व्रत पूर्ण

चंद्रोदय के समय महिलाएँ चलनी से चंद्रमा को देखकर अर्घ्य देती हैं और फिर पति को देखकर व्रत तोड़ती हैं। पति, पत्नी को जल पिलाकर और मिठाई खिलाकर व्रत पूर्ण कराता है।

करवा चौथ और आधुनिक युग

आज के आधुनिक युग में, जहाँ जीवन की गति तेज़ है और रिश्तों में औपचारिकता बढ़ती जा रही है, वहाँ करवा चौथ जैसे पर्व प्रेम और नज़दीकी का एक सुंदर माध्यम बनकर उभरे हैं।

अब कई पति भी अपनी पत्नी के लिए व्रत रखते हैं, जो इस पर्व को समानता और आपसी सम्मान का प्रतीक बनाता है। सोशल मीडिया पर करवा चौथ सेलिब्रेशन की तस्वीरें, जोड़े की एकता और प्रेम को दर्शाती हैं।

लोकगीत, मेहंदी और परंपरा

करवा चौथ में महिलाओं के लिए गीत और कहानियाँ विशेष महत्व रखती हैं। पारंपरिक लोकगीतों में पति की लंबी उम्र और प्रेम की भावना झलकती है। महिलाएं मिलकर 'करवा चौथ की कथा', 'चंदा मामा', 'कुंवारी कन्याओं का व्रत' जैसे गीत गाती हैं।

मेहंदी को इस दिन शुभ माना जाता है। मान्यता है कि जितनी गहरी मेहंदी रचती है, उतना ही पति का प्रेम प्रबल होता है।

सामाजिक महत्त्व

करवा चौथ केवल एक व्रत नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और महिला सशक्तिकरण का भी प्रतीक है। जब महिलाएं मिलकर व्रत करती हैं, पूजा करती हैं, तो आपसी सहयोग और भावनात्मक जुड़ाव को बढ़ावा मिलता है।

यह पर्व महिलाओं को आत्मशक्ति, धैर्य और आस्था का अनुभव कराता है। आज के समय में जब संबंधों में दूरियाँ बढ़ रही हैं, करवा चौथ का व्रत एक बार फिर रिश्तों को जोड़ने की कड़ी बन रहा है।

विवाह पूर्व और अविवाहित कन्याओं के लिए भी

कुछ स्थानों पर अविवाहित कन्याएँ भी मनचाहा वर पाने की कामना से यह व्रत करती हैं। वे भी पूर्ण आस्था से सरगी खाकर, निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान चंद्रमा से आदर्श पति की प्रार्थना करती हैं।

भिन्न-भिन्न प्रांतों में करवा चौथ

हालाँकि करवा चौथ मुख्य रूप से उत्तर भारत—पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश—में मनाया जाता है, परन्तु अब यह पर्व पूरे भारत में लोकप्रिय हो गया है।

पंजाब में इसे त्यौहार की तरह मनाया जाता है—भांगड़ा, गिद्दा, रंगारंग कार्यक्रम और उपहारों का आदान-प्रदान होता है। राजस्थान में करवा पर ‘बिंदी’ लगाकर कथा सुनाई जाती है और करवा को 13 बार फेरों में घुमाया जाता है।

करवा चौथ से जुड़ी मान्यताएँ

चंद्रमा के दर्शन: माना जाता है कि चंद्रमा पति के जीवन में शांति, सौभाग्य और आयु का कारक है।

चलनी से देखना: चलनी से पहले चंद्रमा और फिर पति को देखने की परंपरा, प्रतीक है कि पति जीवन का 'चंद्रमा' है और उसकी रक्षा के लिए नारी किसी भी तपस्या से पीछे नहीं हटती।

सरगी का महत्व: यह केवल भोजन नहीं, सास के प्रेम और आशीर्वाद का प्रतीक है।

करवा चौथ एक पर्व है जो भारतीय नारी की श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का उत्सव है। यह एक ऐसा व्रत है, जिसमें केवल चंद्रमा ही नहीं चमकता, बल्कि हर नारी की निष्ठा, सौंदर्य और आस्था भी एक चंद्र-सी पवित्रता ले आती है।

आज जब संबंधों में स्थायित्व की चुनौती बढ़ती जा रही है, तब करवा चौथ हमें सिखाता है कि त्याग, प्रेम और विश्वास ही हर रिश्ते की नींव हैं। यह पर्व एक नारी की आंतरिक शक्ति, मानसिक संतुलन और प्रेम की गहराई का प्रमाण है।

तो आइए, इस करवा चौथ पर हम सभी अपने रिश्तों को और मजबूत करें, प्रेम और सम्मान के दीप जलाएँ, और नारी के इस अनुपम समर्पण को नमन करें।

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