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क्या राज्यपाल रोक सकते हैं बिल? सुप्रीम कोर्ट में उठा बड़ा सवाल

क्या राज्यपाल रोक सकते हैं बिल? सुप्रीम कोर्ट में उठा बड़ा सवाल

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-200 (Article 200) की व्याख्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों एक अहम बहस चल रही है। सवाल यह है कि क्या राज्यपाल किसी विधेयक (Bill) को अनिश्चितकाल तक रोक सकते हैं? और अगर ऐसा है तो क्या इसमें धन विधेयक (Money Bill) भी शामिल होगा? 

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद-200 की उस व्याख्या पर चिंता जताई है, जिसमें राज्यपाल को बिल को रोककर रखने की शक्ति देने की बात कही जा रही है। इस मामले की सुनवाई राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए रेफरेंस पर हुई, जिसमें बिल पर फैसला लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति की समयसीमा (टाइमलाइन) के मुद्दे पर मार्गदर्शन मांगा गया था।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि यदि इस व्याख्या को मान लिया गया, तो इसका मतलब यह होगा कि राज्यपाल धन विधेयकों (मनी बिल) को भी रोक सकते हैं, जबकि उन्हें ऐसे विधेयकों को मंजूरी देने के लिए बाध्य किया गया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती है।

अनुच्छेद 200 पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मौखिक टिप्पणियों में कहा कि यदि राज्यपाल को यह स्वतंत्र शक्ति मान ली जाती है कि वह किसी बिल को विधानसभा को लौटाए बिना रोक सकते हैं, तो इसका अर्थ यह भी होगा कि राज्यपाल मनी बिल को भी रोक सकते हैं। अदालत ने साफ कहा कि यह स्थिति "समस्या पैदा करने वाली" होगी।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई (CJI BR Gavai) की अगुआई वाली संवैधानिक पीठ ने सुनवाई के दौरान बार-बार यह सवाल उठाया कि क्या राज्यपाल या राष्ट्रपति विधानसभा से दोबारा पारित हुए बिल पर भी अनिश्चितकाल तक बैठे रह सकते हैं?

केंद्र सरकार की दलील: बिल रोकने का मतलब बिल रद्द

केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि अगर राज्यपाल किसी बिल को रोक लेते हैं, तो इसका सीधा मतलब होगा कि वह बिल रद्द हो गया। यानी राज्यपाल के पास वीटो (Veto Power) लगाने की शक्ति है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के उन पुराने दृष्टिकोण से असहमति जताई, जिनमें तमिलनाडु और पंजाब के राज्यपालों के मामलों में कहा गया था कि अगर राज्यपाल किसी बिल को रोकते हैं, तो उन्हें उसे विधानसभा को पुनर्विचार (Reconsideration) के लिए जरूर भेजना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि अगर राज्यपाल को बिल रोकने की स्वतंत्र शक्ति मान लिया जाए, तो वह धन विधेयक को भी रोक सकते हैं। यह संविधान की मंशा के खिलाफ होगा, क्योंकि मनी बिल राज्यपाल की अनुशंसा पर ही विधानसभा में पेश किया जाता है। इस पर तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद-207 (Article 207) के अनुसार, मनी बिल केवल राज्यपाल की अनुमति से ही पेश हो सकता है। इसलिए राज्यपाल द्वारा धन विधेयक को रोकने का सवाल ही नहीं उठता।

महाराष्ट्र राज्य की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने दलील दी कि विधानसभा द्वारा पारित किसी भी बिल पर अंतिम फैसला राज्यपाल या राष्ट्रपति का होता है। कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकती। उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति अनुच्छेद-200 की सीधी भाषा को बिना किसी पूर्वग्रह के पढ़े, तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि राज्यपाल साधारण रूप से किसी बिल को रोक सकते हैं। साल्वे के अनुसार, यह केवल "संवैधानिक औपचारिकता" नहीं है, बल्कि राज्यपाल के पास वास्तविक शक्ति है।

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