चर्चित वकील उज्ज्वल निकम को राज्यसभा में भेजने के पीछे बीजेपी की मराठी पॉलिटिक्स को संतुलित करने की रणनीति मानी जा रही है। यह कदम ठाकरे बंधुओं के क्षेत्रीय नैरेटिव को जवाब देने के तौर पर देखा जा रहा है।
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में भाषा और अस्मिता लंबे समय से एक बड़ा मुद्दा रही है। खासकर मुंबई और शहरी इलाकों में बीएमसी और स्थानीय निकाय चुनाव से पहले यह मसला फिर से गर्माया हुआ है। ऐसे में सुप्रसिद्ध वकील उज्ज्वल निकम को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया जाना केवल एक कानूनी पेशेवर की नियुक्ति नहीं बल्कि एक सियासी संकेत माना जा रहा है।
ठाकरे बनाम ठाकरे: मराठी पिच पर दो ताकतवर चेहरे
महाराष्ट्र की राजनीति में इस समय उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की पार्टियां मराठी अस्मिता को केंद्र में रखकर लगातार आक्रामक रणनीति अपना रही हैं। दोनों नेताओं ने हाल ही में महाराष्ट्र सरकार की थ्री लैंग्वेज पॉलिसी के खिलाफ आंदोलन का ऐलान किया था। सरकार को यह नीति वापस लेनी पड़ी, लेकिन विवाद अब भी कायम है। बीजेपी को मराठी अस्मिता के मुद्दे पर लगातार घेरने की कोशिश की जा रही है।
उज्ज्वल निकम: मराठी पहचान का प्रतीक?
उज्ज्वल निकम महाराष्ट्र के जलगांव से हैं और एक मराठी परिवार से आते हैं। उनके पिता न्यायिक सेवा में कार्यरत रहे हैं। निकम को देश के कुछ सबसे चर्चित मामलों में सरकारी वकील के तौर पर पहचान मिली है, जिनमें 26/11 मुंबई हमले का मुकदमा सबसे प्रमुख है। 2024 में बीजेपी ने उन्हें लोकसभा का टिकट भी दिया था, हालांकि वह चुनाव नहीं जीत सके थे।
बीजेपी के इस मनोनयन को केवल कानूनी पेशेवर की राज्यसभा में नियुक्ति नहीं बल्कि मराठी समाज के लिए एक सशक्त सियासी संदेश माना जा रहा है।
राजनीतिक संकेतों की सियासत
बीजेपी लंबे समय से प्रतीकवाद और संदेशों की राजनीति में माहिर मानी जाती है। उज्ज्वल निकम की राज्यसभा में एंट्री भी इसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह नियुक्ति ठाकरे बंधुओं की मराठी पॉलिटिक्स को काउंटर करने की एक चाल है।
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं कि उज्ज्वल निकम बड़े वकील हैं, लेकिन क्या वह ठाकरे बंधुओं के मराठी नैरेटिव का प्रभावी जवाब बन पाएंगे, यह भविष्य बताएगा।
प्रधानमंत्री का मराठी में संवाद: सियासी संदेश
निकम के मनोनयन के तुरंत बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे मराठी में बातचीत की, तो यह संदेश साफ था कि बीजेपी मराठी भाषा और संस्कृति को सम्मान देती है। अमिताभ तिवारी कहते हैं कि यह बीजेपी की तरफ से मराठी समुदाय के लिए यह संकेत था कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी मराठी को सम्मान देता है और यह विवाद अब खत्म होना चाहिए।
निकाय चुनाव और मराठी वोट बैंक
महाराष्ट्र में जल्द ही बीएमसी और अन्य स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी को मराठी अस्मिता के मुद्दे पर अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी। ठाकरे बंधु इस मुद्दे पर पहले से आक्रामक हैं। उज्ज्वल निकम जैसे मराठी चेहरे को आगे लाकर बीजेपी न केवल मराठी मतदाताओं को संदेश देना चाहती है बल्कि यह भी दिखाना चाहती है कि पार्टी मराठी पहचान को लेकर गंभीर है।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसी रणनीति
उज्ज्वल निकम की राज्यसभा में एंट्री को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनाई गई बीजेपी की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। दोनों राज्यों में आदिवासी वोटरों को साधने के लिए बीजेपी ने प्रतीक और गौरव से जुड़े कदम उठाए थे, जैसे बिरसा मुंडा जयंती को जनजातीय गौरव दिवस घोषित करना और स्मारक बनवाना। यह रणनीति वहां चुनाव में कारगर रही थी।