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मुहर्रम 2025: चांद के दीदार से शुरू होगा इस्लामिक नववर्ष, कर्बला की कुर्बानी को किया जाएगा याद

मुहर्रम 2025: चांद के दीदार से शुरू होगा इस्लामिक नववर्ष, कर्बला की कुर्बानी को किया जाएगा याद

इस्लामिक वर्ष 1447 की शुरुआत अब बस चांद के दीदार भर की दूरी पर है। पूरे मुस्लिम समुदाय की नजरें इस समय आसमान की ओर हैं, जहां नए चांद के दिखने का इंतजार किया जा रहा है। मुहर्रम, इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना, न केवल एक नए साल की शुरुआत करता है, बल्कि यह त्याग, शौर्य और बलिदान की गाथा लेकर भी आता है। यह महीना पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला की शहादत की याद में गहरा महत्व रखता है।

मुहर्रम 2025: चांद देखने की संभावित तिथि

इस बार मुहर्रम 2025 का चांद आज, 26 जून (गुरुवार) को दिखने की संभावना जताई जा रही है। अगर इस दिन चांद नजर आता है, तो इस्लामिक नववर्ष हिजरी सन् 1447 की शुरुआत इसी शाम से हो जाएगी। हालांकि, अगर किसी कारणवश 26 जून को चांद नहीं दिखाई देता है, तो फिर 27 जून (शुक्रवार) से मुहर्रम और इस्लामिक नया साल आरंभ होगा।

इस्लामिक महीनों की गणना चंद्र दर्शन पर आधारित होती है, इसलिए किसी भी महीने की शुरुआत नए चांद के दीदार के बाद ही मानी जाती है। यही कारण है कि मुहर्रम का आरंभ हर वर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अलग-अलग तारीखों पर होता है।

क्यों विशेष है मुहर्रम का महीना

मुहर्रम इस्लाम के चार पवित्र महीनों में से एक है, जिसमें युद्ध तक वर्जित माना गया है। यह महीना अल्लाह की इबादत, आत्मनिरीक्षण और संयम का समय है। हालांकि, शिया मुस्लिम समुदाय के लिए यह महीना खास रूप से शोक और बलिदान की प्रतीक होता है। यह वह महीना है जिसमें कर्बला की जंग हुई थी — एक ऐसा ऐतिहासिक युद्ध, जिसने इस्लामी इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया।

10 मुहर्रम: यौम-ए-आशूरा का महत्व

10 मुहर्रम का दिन ‘आशूरा’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन को इमाम हुसैन (रजि.) और उनके 72 साथियों की शहादत की स्मृति में मनाया जाता है। यह युद्ध इराक के कर्बला में 10 मुहर्रम 61 हिजरी (680 ईस्वी) को हुआ था, जिसमें यज़ीद की सेना ने अत्याचार की सभी सीमाएं पार कर दी थीं। इमाम हुसैन ने अन्याय के सामने झुकने से इनकार कर दिया और अपने परिवार सहित धर्म और सच्चाई के लिए बलिदान दे दिया। यह दिन पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए धैर्य, समर्पण और सच्चाई की जीत का प्रतीक है।

मुहर्रम की रस्में और आयोजन

मुहर्रम के महीने में विशेषकर 10वीं तारीख को दुनिया भर में मुसलमान कई परंपराएं निभाते हैं:

  • शिया समुदाय ताजिया निकालते हैं, मातम करते हैं और कर्बला की घटना का दृश्य प्रस्तुत करते हैं।
  • काले कपड़े पहनकर शोक व्यक्त किया जाता है।
  • कुछ मुसलमान रोजा रखते हैं, खासतौर से 9वीं और 10वीं मुहर्रम को।
  • मस्जिदों और इमामबाड़ों में मजलिस (धार्मिक सभाएं) होती हैं, जहां इमाम हुसैन की कुर्बानी का बखान किया जाता है।
  • सामूहिक लंगर और खीर बांटी जाती है, ताकि गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन मिल सके।

दुनिया भर में मनाई जाएगी शहादत की याद

मुहर्रम का महीना केवल भारत या पाकिस्तान में ही नहीं, बल्कि ईरान, इराक, अफगानिस्तान, लेबनान, बहरीन, सऊदी अरब और अमेरिका व यूरोप के देशों में भी श्रद्धा और शोक के साथ मनाया जाता है। कर्बला की घटना को याद करना केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि एक नैतिक संदेश है — कि ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहिए, चाहे परिणाम कुछ भी हो।

मुहर्रम 2025 की शुरुआत एक बार फिर हमें याद दिलाएगी कि इस्लाम सिर्फ इबादत का नाम नहीं, बल्कि न्याय, सच्चाई और मानवता के लिए खड़े होने का भी प्रतीक है। जैसे ही चांद नजर आएगा, एक ओर जहां इस्लामिक नया साल शुरू होगा, वहीं दूसरी ओर कर्बला की शहादत की यादें फिर से ताजा हो जाएंगी।

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