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ओणम: केरल की संस्कृति, एकता और परंपरा का जीवंत उत्सव

ओणम: केरल की संस्कृति, एकता और परंपरा का जीवंत उत्सव

भारत एक ऐसा देश है, जहाँ हर कोना अलग संस्कृति, परंपराओं और त्योहारों की खुशबू से महकता है। यहाँ प्रत्येक पर्व अपने पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा, सामाजिक संदर्भ और सांस्कृतिक मूल्यों की झलक लिए होता है। इन्हीं पर्वों में एक अत्यंत सुंदर, रंग-बिरंगा और सामाजिक समरसता का प्रतीक त्योहार है — ओणम, जिसे केरल के लोग पूरे उत्साह, श्रद्धा और गौरव के साथ मनाते हैं।

ओणम केवल धार्मिक पर्व नहीं है, यह केरल की आत्मा है, जिसमें इतिहास, आस्था, प्रकृति, कृषि, संस्कृति और समाज सब मिलकर एक भव्य चित्र प्रस्तुत करते हैं। यह त्योहार न केवल केरलवासियों के लिए बल्कि पूरे भारतवर्ष के लिए गौरव का विषय है।

ओणम का पौराणिक आधार

ओणम का त्योहार महान असुर राजा महाबली की स्मृति में मनाया जाता है। महाबली के शासनकाल को 'सत्य, समता और समृद्धि' का युग माना जाता है। जनश्रुति है कि उनके राज्य में कोई दुखी नहीं था, कोई अन्याय नहीं होता था, और सब समान अधिकार से जीवन व्यतीत करते थे।

लेकिन देवताओं को महाबली की बढ़ती लोकप्रियता से चिंता होने लगी। उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता माँगी। तब भगवान ने वामन अवतार लिया — एक छोटे ब्राह्मण बालक के रूप में वे महाबली के पास पहुँचे और तीन पग भूमि की याचना की। महाबली ने उदारतावश उन्हें भूमि दान कर दी। वामन ने अपने पहले पग में धरती, दूसरे में आकाश नापा, और तीसरे पग के लिए महाबली ने स्वयं को समर्पित कर दिया।

इस त्याग से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वे हर वर्ष अपनी प्रजा से मिलने धरती पर आ सकेंगे। ओणम इसी आगमन की स्मृति में मनाया जाता है। यह राजा और प्रजा के प्रेम, न्याय और आत्मीयता का उत्सव है।

ओणम प्रकृति और कृषि से जुड़ा उत्सव

ओणम सिर्फ एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि यह कृषि और प्रकृति के साथ जुड़ा पर्व भी है। यह फसल की कटाई के बाद का समय होता है जब किसान अपनी मेहनत की सफलता का जश्न मनाते हैं। यह प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर भी है।

ओणम बताता है कि मनुष्य और प्रकृति का संबंध केवल उपयोग का नहीं, बल्कि सम्मान, संतुलन और समर्पण का है।

ओणम पर्व की समय-सीमा और दस दिनों का क्रम

ओणम का त्योहार दस दिनों तक चलता है, और हर दिन का नाम और महत्व होता है। यह मलयालम पंचांग के अनुसार ‘चिंगम’ महीने में मनाया जाता है।

दिन           नाम             विशेषता

1            अथम             पूक्कलम की शुरुआत, महाबली के आगमन की प्रतीक्षा

2          चिथिरा           घर की सफाई और सजावट

3          चोडी              उपहारों की खरीदारी और आदान-प्रदान

4          विशाकम        बाज़ारों में रौनक, प्रतियोगिताओं की तैयारी

5          अनिजम          सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आरंभ

6          त्रिकेता             पूजा-पाठ और भजन

7          मूलम              विशेष भोजन की तैयारी

8          पूरदम            रंगोली में नए फूल, घर में उत्सव का माहौल

9          उथ्रडम           महाबली का स्वागत करने की तैयारियाँ

10        थिरुवोनम       मुख्य दिन — साध्या, पूजा, आनंद

ओणम की प्रमुख परंपराएँ और आकर्षण

  1. पूक्कलम (फूलों की रंगोली)

हर सुबह महिलाएँ और बच्चे आँगन में रंग-बिरंगे फूलों से भव्य पूक्कलम सजाते हैं। यह रंगोली न केवल सौंदर्य की प्रतीक होती है, बल्कि राजा महाबली के स्वागत का प्रतीकात्मक भाव भी दर्शाती है।

  1. ओणम साध्या (भव्य भोज)

ओणम पर्व की सबसे खास और बहुप्रतीक्षित परंपराओं में से एक है साध्या — एक पारंपरिक शाकाहारी भोज। यह स्वाद, संस्कृति और आत्मीयता का संगम है, जो केले के पत्ते पर बड़े ही सलीके से परोसा जाता है। इस भव्य थाली में आमतौर पर 20 से 30 तरह के व्यंजन शामिल होते हैं, जो केरल की समृद्ध पाक कला की झलक प्रस्तुत करते हैं।

अवियल (मिश्रित सब्ज़ियाँ)

  • सांबर
  • ओलन
  • थोरन

पायसम (केरल की पारंपरिक मिठाई)

इनजी करी (अदरक की चटनी)

यह भोज केवल स्वाद नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक भी है।

  1. वल्लमकली (नौका दौड़)

ओणम के अवसर पर आयोजित की जाने वाली नौका दौड़ विश्व प्रसिद्ध है। खासकर नेहरू ट्रॉफी बोट रेस, जिसमें सैंकड़ों लोगों की टोली चप्पुओं की लय में विशाल नौकाओं को चलाती है। यह केरल के संगठन और उत्सवप्रियता का अद्भुत उदाहरण है।

  1. पुलिकली (बाघ नृत्य)

पुरुष कलाकार बाघ की तरह शरीर पर रंग कर और नाच कर बच्चों और बड़ों का मनोरंजन करते हैं। यह नृत्य एक तरह से शक्ति, उत्साह और जीवन के प्रति उल्लास का प्रतीक माना जाता है।

  1. कथकली और थिरुवाथिरा

ओणम के दौरान पारंपरिक नृत्य कथकली का मंचन होता है, जिसमें पौराणिक कहानियों को रंगमंचीय शैली में प्रस्तुत किया जाता है। वहीं महिलाएँ थिरुवाथिरा नृत्य करती हैं जो सामूहिकता और सौंदर्य का प्रतीक है।

ओणम का सामाजिक महत्व

ओणम की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह धर्म, जाति, वर्ग से ऊपर उठकर सभी को जोड़ता है। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई सभी ओणम को समान भाव से मनाते हैं। यह केरल की धर्मनिरपेक्षता और सांस्कृतिक समरसता का जीवंत प्रतीक है।

ओणम यह संदेश देता है कि जब एक समाज अपने अतीत को सम्मान देता है और साथ ही वर्तमान को सामूहिकता के साथ जीता है, तभी वह खुशहाल बनता है।

पर्यटन और वैश्विक पहचान

ओणम के समय केरल टूरिज्म हॉटस्पॉट बन जाता है। देश-विदेश से लाखों पर्यटक इस पर्व को देखने आते हैं। बोट रेस, साध्या, नृत्य, उत्सव सज्जा और पारंपरिक वेशभूषा पर्यटकों के लिए एक अनोखा अनुभव बनते हैं।

केरल सरकार भी इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करती है जैसे

  1. ओणम बाजार
  2. सांस्कृतिक उत्सव
  3. पर्यटन मेलें
  4. शिल्पकला प्रदर्शनियाँ
  5. आज के समय में ओणम की प्रासंगिकता

ओणम का त्योहार सिर्फ उत्सव का नाम नहीं है, बल्कि यह आधुनिक समाज के लिए कई संदेश भी लाता है

  1. न्यायप्रिय शासन कैसा होना चाहिए — यह महाबली से सीखा जा सकता है।
  2. प्रकृति के साथ सामंजस्य रखना कितना जरूरी है — यह कृषि आधारित ओणम से मिलता है।
  3. समाज में एकता और समरसता कितनी महत्वपूर्ण है — यह ओणम की धर्मनिरपेक्षता दिखाती है।

आज जब दुनिया संघर्षों, मतभेदों और आत्मकेंद्रितता से जूझ रही है, तब ओणम हमें सिखाता है कि उत्सवों के माध्यम से सामूहिकता, सेवा, प्रेम और कृतज्ञता को पुनः जीवित किया जा सकता है।

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