अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से एच-1बी वीज़ा से संबंधित अपने हालिया आदेश पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। इस आदेश में नए एच-1बी वीज़ा आवेदनों पर 1,00,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) का शुल्क लगाने का प्रावधान किया गया है।
वॉशिंगटन डीसी: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा एच1-बी (H1-B) वीजा आवेदन पर लगाए गए 1,00,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) के नए शुल्क को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। अमेरिकी कांग्रेस के चार प्रमुख सांसदों ने ट्रंप को एक संयुक्त पत्र लिखकर इस निर्णय को अन्यायपूर्ण और आर्थिक रूप से हानिकारक" बताया है और इस पर पुनर्विचार करने की अपील की है।
सांसदों का कहना है कि इस भारी शुल्क से न केवल भारतीय पेशेवरों पर असर पड़ेगा, बल्कि यह भारत-अमेरिका के रणनीतिक और तकनीकी संबंधों को भी कमजोर कर सकता है।
अमेरिकी सांसदों की चिट्ठी में क्या कहा गया
यह पत्र कांग्रेस सदस्य जिमी पनेटा, अमी बेरा, सालुद कार्बाजल, और जूली जॉनसन द्वारा लिखा गया है। इसमें कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन का यह कदम अमेरिकी उद्योगों के लिए प्रतिभा तक पहुंच सीमित करेगा, जबकि भारत जैसे देशों के विशेषज्ञ अमेरिका की टेक्नोलॉजी और रिसर्च में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
सांसदों ने कहा कि एच1-बी वीजा प्रोग्राम अमेरिकी अर्थव्यवस्था, नवाचार और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। भारत से आने वाले उच्च कौशल वाले पेशेवर न केवल तकनीकी प्रगति में योगदान दे रहे हैं, बल्कि अमेरिकी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त को भी बनाए हुए हैं।

88 लाख रुपये का शुल्क क्यों विवादास्पद है
ट्रंप प्रशासन ने सितंबर 2025 में एक नई नीति की घोषणा की थी, जिसके तहत नए H1-B वीजा आवेदनों पर 1,00,000 अमेरिकी डॉलर का शुल्क लगाया जाएगा। प्रशासन का तर्क है कि इससे अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा होगी और विदेशी श्रमिकों पर निर्भरता कम होगी। हालांकि, तकनीकी विशेषज्ञों और उद्योग संघों का कहना है कि यह नीति अमेरिकी कंपनियों के लिए नुकसानदायक है, क्योंकि इससे सॉफ्टवेयर, एआई (AI) और इंजीनियरिंग क्षेत्र में आवश्यक प्रतिभा को भर्ती करना मुश्किल होगा।
सांसदों ने चेतावनी दी है कि यह कदम भारत के साथ अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। उन्होंने लिखा, भारतीय पेशेवर अमेरिका की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री का अभिन्न हिस्सा हैं। यह शुल्क भारत-अमेरिका रिश्तों को कमजोर करेगा और दोनों देशों के बीच बढ़ती सहयोग भावना को चोट पहुंचाएगा।
चिट्ठी में यह भी कहा गया कि ऐसे समय में जब चीन कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) और हाई-टेक क्षेत्रों में भारी निवेश कर रहा है, अमेरिका को भारत जैसे साझेदार देशों के साथ तकनीकी सहयोग बढ़ाने की जरूरत है, न कि इसे सीमित करने की।
H1-B वीजा क्यों है अहम
H1-B वीजा एक गैर-प्रवासी वीजा श्रेणी है जिसके तहत अमेरिकी कंपनियां विदेशी पेशेवरों को अस्थायी रूप से नियुक्त कर सकती हैं, खासकर आईटी, इंजीनियरिंग, मेडिकल, और साइंस जैसे क्षेत्रों में। हर साल लगभग 85,000 H1-B वीजा जारी किए जाते हैं, जिनमें से करीब 70% भारतीय नागरिकों को मिलते हैं।
भारतीय पेशेवरों की इस हिस्सेदारी ने अमेरिका की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन और मेटा जैसी कंपनियों में हजारों भारतीय इंजीनियर और वैज्ञानिक कार्यरत हैं।













