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Bhoot Chaturdashi 2025: आज क्यों मनाई जाती है भूत चतुर्दशी, जानिए इसकी परंपरा और पूजा विधि

Bhoot Chaturdashi 2025: आज क्यों मनाई जाती है भूत चतुर्दशी, जानिए इसकी परंपरा और पूजा विधि

भूत चतुर्दशी 2025, जिसे काली चौदस या नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है, बुरी आत्माओं को दूर करने और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए मनाई जाती है। इस दिन मां काली की पूजा और 14 दीपक जलाने की परंपरा है। पश्चिम बंगाल में इसे ‘इंडियन हैलोवीन’ के रूप में खास श्रद्धा से मनाया जाता है।

Bhoot Chaturdashi: यह पावन पर्व 19 अक्टूबर 2025, रविवार को पूरे देश में श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को पड़ने वाला यह दिन बुरी शक्तियों को शांत करने और पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष दिलाने का प्रतीक माना जाता है। पश्चिम बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र में इसे विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भक्त मां काली और वीर वेताल की पूजा करते हैं और घरों में 14 मिट्टी के दीपक जलाकर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने की परंपरा निभाते हैं।

भूत चतुर्दशी का महत्व

भूत चतुर्दशी का संबंध बुरी आत्माओं को शांत करने और पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष दिलाने से है। इस दिन घरों में विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं ताकि नकारात्मक ऊर्जाओं का प्रभाव न पड़े। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात बुरी शक्तियां सक्रिय होती हैं, इसलिए लोग इस दिन मां काली और वीर वेताल की आराधना करते हैं।

इसी वजह से इस दिन को काली चौदस कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में यह त्योहार बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है और वहां इसे ‘इंडियन हैलोवीन’ के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन लोग घरों में 14 दीपक जलाते हैं, जिन्हें चोड्डो प्रोदीप कहा जाता है, ताकि घर के हर कोने में प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे।

काली चौदस 2025 का शुभ मुहूर्त

  • त्योहार की तिथि: 19 अक्टूबर 2025, रविवार
  • काली चौदस पूजा मुहूर्त: रात 11:41 बजे से 12:31 बजे (20 अक्टूबर) तक
  • चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 19 अक्टूबर को दोपहर 1:51 बजे
  • चतुर्दशी तिथि समाप्त: 20 अक्टूबर को दोपहर 3:44 बजे

पश्चिम बंगाल में कैसे मनाई जाती है भूत चतुर्दशी

भूत चतुर्दशी का त्योहार पश्चिम बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में खास उत्साह से मनाया जाता है। बंगाल में लोग सुबह जल्दी उठकर सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं। शाम को घरों में मां काली, भगवान यमराज, श्री कृष्ण, भगवान शिव, हनुमान और विष्णु की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान भूत-प्रेत और आत्माओं की शांति के लिए विशेष मंत्रोच्चार और दीपदान किया जाता है।

शाम के समय 14 मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा है। इन्हें घर के मुख्य दरवाजे, खिड़कियों, आंगन, तुलसी के पौधे और आंगन के कोनों में रखा जाता है। मान्यता है कि ये दीप बुरी शक्तियों को दूर रखते हैं और घर में सकारात्मकता लाते हैं।

भूत चतुर्दशी का अनुष्ठान और उपाय

इस दिन घर में दीपक जलाने के साथ-साथ लोग काल भैरव और माता काली के मंत्रों का जाप करते हैं। कुछ लोग श्मशान क्षेत्र में मध्यरात्रि को मां काली और वीर वेताल की पूजा भी करते हैं, ताकि डर, नकारात्मकता और भय से मुक्ति मिल सके।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भूत चतुर्दशी की पूजा करने से न केवल बुरी आत्माओं का प्रभाव कम होता है, बल्कि पूर्वजों की आत्मा को भी शांति मिलती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन मां काली की आराधना से घर में सुख-समृद्धि आती है और नकारात्मक शक्तियां पास नहीं फटकतीं।

क्यों कहा जाता है इंडियन हैलोवीन

पश्चिम बंगाल में भूत चतुर्दशी को ‘इंडियन हैलोवीन’ कहा जाता है क्योंकि इस दिन अंधकार, आत्माओं और प्रकाश के बीच प्रतीकात्मक संघर्ष दिखता है। जैसे पश्चिमी देशों में हैलोवीन पर लोग बुरी आत्माओं से बचने के लिए वेशभूषा और दीपों का प्रयोग करते हैं, वैसे ही बंगाल में लोग इस दिन दीप जलाकर और मां काली की पूजा कर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं।

भूत चतुर्दशी न केवल धार्मिक महत्व वाला पर्व है, बल्कि यह अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी है। इस दिन दीपक जलाने, पूजा करने और अपने पूर्वजों को याद करने से घर में शांति और सकारात्मकता बनी रहती है

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