नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस में ED की चार्जशीट पर संज्ञान लेने का मामला टल गया है। कोर्ट अब 7 अगस्त को फैसला सुनाएगा। सोनिया और राहुल गांधी समेत 7 लोग आरोपी हैं।
National Herald Case: नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आज यानी सोमवार को राउज एवेन्यू कोर्ट को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की चार्जशीट पर संज्ञान लेने को लेकर फैसला सुनाना था, लेकिन अब यह आदेश नहीं आएगा। अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 7 अगस्त तय की है। मामले में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत कुल 7 लोगों को आरोपी बनाया गया है।
अगर अदालत ED की चार्जशीट पर संज्ञान लेती है, तो सभी आरोपियों को समन जारी किया जाएगा। इससे सोनिया और राहुल गांधी की कानूनी चुनौतियां बढ़ सकती हैं।
क्या है मामला?
इस केस में मुख्य विवाद नेशनल हेराल्ड अखबार की मूल कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की संपत्तियों को लेकर है। आरोप है कि इन संपत्तियों को यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड (YIL) के ज़रिए गलत तरीके से हासिल किया गया। यह आरोप सबसे पहले 2012 में बीजेपी नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने लगाए थे। उन्होंने सोनिया और राहुल गांधी समेत कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं पर भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगाए थे।
नेशनल हेराल्ड और AJL की पृष्ठभूमि
नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी। इस अखबार को एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) प्रकाशित करता था। AJL न केवल अंग्रेजी में नेशनल हेराल्ड निकालता था, बल्कि हिंदी में 'नवजीवन' और उर्दू में 'कौमी आवाज' नामक समाचार पत्र भी प्रकाशित करता था।
2008 में आर्थिक तंगी के चलते AJL ने अखबार का प्रकाशन बंद कर दिया। इसके बाद AJL के पास दिल्ली, पटना, मुंबई, भोपाल जैसे शहरों में करोड़ों रुपये की अचल संपत्तियां रह गईं। कांग्रेस पार्टी ने AJL को पहले 90 करोड़ रुपये का ऋण दिया था, जो बाद में माफ कर दिया गया।
ED का आरोप
प्रवर्तन निदेशालय ने आरोप लगाया है कि यंग इंडियन कंपनी सिर्फ मनी लॉन्ड्रिंग के लिए बनाई गई थी। उसका कोई वास्तविक चैरिटेबल उद्देश्य नहीं था। ED के मुताबिक, जिन लोगों ने कंपनी को चंदा दिया, उन्हें इसके उद्देश्य की कोई जानकारी नहीं थी।
यह पैसा कथित रूप से वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के निर्देश पर दिया गया। यंग इंडियन के जरिए AJL की 800 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्तियों पर कब्जा किया गया। ED ने दावा किया कि कंपनी के कामकाज में पारदर्शिता नहीं थी और यह धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।