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Next Gen GST सुधार से बढ़ी राज्यों की टेंशन, सालाना हजारों करोड़ के नुकसान की आशंका

Next Gen GST सुधार से बढ़ी राज्यों की टेंशन, सालाना हजारों करोड़ के नुकसान की आशंका

नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी रिफॉर्म को लेकर राज्यों में राजस्व घाटे की चिंता बढ़ गई है। प्रस्तावित सुधार लागू होने पर राज्यों को हर साल 7000-9000 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज यूबीएस का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 में जीडीपी का 0.3% यानी 1.1 ट्रिलियन रुपये घाटा होगा, जिसकी भरपाई संभव है।

Next Gen GST: गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) में प्रस्तावित नेक्स्ट जेनरेशन रिफॉर्म इस वित्त वर्ष के मध्य तक लागू हो सकता है। पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में दिवाली से पहले इसके ऐलान की बात कही थी। हालांकि, बड़े राज्यों ने आशंका जताई है कि सुधार लागू होने से उनके राजस्व पर भारी असर पड़ेगा और सालाना 7000-9000 करोड़ रुपये तक की कमी हो सकती है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इससे राज्यों की रेवेन्यू ग्रोथ 11.6% से घटकर 8% रह सकती है। वहीं, यूबीएस का कहना है कि संभावित घाटा आरबीआई डिविडेंड और अतिरिक्त सेस से कवर किया जा सकेगा।

राज्यों की बढ़ती चिंता

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, कई बड़े राज्यों ने इस सुधार को लेकर चिंता जाहिर की है। राज्यों के सरकारी अधिकारियों का मानना है कि प्रस्तावित बदलाव लागू होने के बाद उनके राजस्व में भारी गिरावट आ सकती है। यह कमी सीधे तौर पर सामाजिक योजनाओं और प्रशासनिक खर्चों को प्रभावित कर सकती है। यानी, स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण योजनाओं के लिए मिलने वाला बजट घट सकता है।

रेवेन्यू ग्रोथ पर असर

राज्यों का आंतरिक आकलन बताता है कि उनकी रेवेन्यू ग्रोथ की दर घटकर 8% तक सिमट सकती है। जबकि अभी तक यह औसतन 11.6% रही है। अगर जीएसटी लागू होने से पहले के आंकड़े देखें तो साल 2017 से पहले यह करीब 14% हुआ करती थी। राज्यों को डर है कि इस रफ्तार में गिरावट से उनका वित्तीय ढांचा कमजोर पड़ सकता है।

UBS की रिपोर्ट

अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज हाउस (UBS) ने भी इस मुद्दे पर अपना अनुमान पेश किया है। यूबीएस के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 में जीएसटी से होने वाला घाटा भरपाई योग्य होगा। रिपोर्ट कहती है कि देश को सालाना तौर पर करीब 1.1 ट्रिलियन रुपये यानी जीडीपी का 0.3% नुकसान हो सकता है। वहीं, 2025-26 में यह घाटा लगभग 430 बिलियन रुपये यानी जीडीपी का 0.14% तक सीमित रह सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस कमी की भरपाई आरबीआई के डिविडेंड और अतिरिक्त सेस ट्रांसफर से की जा सकती है।

राज्यों पर क्या असर पड़ेगा

राज्य सरकारों का कहना है कि जीएसटी सुधार से होने वाले राजस्व नुकसान को वे आसानी से नहीं संभाल पाएंगी। केंद्र द्वारा दी जाने वाली क्षतिपूर्ति भी अब बंद हो चुकी है। ऐसे में राज्यों को अपने संसाधनों से ही खर्चों को पूरा करना पड़ेगा। अधिकारियों का कहना है कि अगर हर साल 7000 से 9000 करोड़ रुपये की कमी होती है तो कई विकास योजनाएं धीमी पड़ जाएंगी।

खपत को बढ़ावा देना 

केंद्र सरकार का मानना है कि जीएसटी दरों में कटौती से बाजार में खपत बढ़ेगी। समाचार एजेंसी एएनआई के हवाले से आई रिपोर्ट में कहा गया है कि उपभोग को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तिगत आयकर या कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती करने के बजाय जीएसटी में कमी करना ज्यादा असरदार कदम है। इसका सीधा असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ता है और लोग ज्यादा खरीदारी करते हैं।

उपभोक्ताओं और उद्योगों को फायदा

सरकार का तर्क है कि नेक्स्ट जेन जीएसटी सुधार का सबसे ज्यादा फायदा आम उपभोक्ताओं को मिलेगा। छोटे कारोबारियों और एमएसएमई सेक्टर को भी इससे राहत मिलेगी क्योंकि टैक्स का बोझ कम हो जाएगा। इससे उनकी लागत घटेगी और कारोबार को बढ़ाने में आसानी होगी। साथ ही, सरकार का मानना है कि जब उपभोक्ता ज्यादा खर्च करेंगे तो उसका फायदा अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों को भी मिलेगा।

जीएसटी सुधार का असर केवल अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि राजनीति पर भी दिख सकता है। पहले से ही कई राज्य केंद्र से वित्तीय मदद की मांग कर रहे हैं। अगर नया सुधार लागू होने के बाद उनकी कमाई में बड़ी गिरावट आती है तो यह टकराव और बढ़ सकता है।

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