नवंबर माह का पहला प्रदोष व्रत 3 नवंबर 2025, सोमवार को रखा जाएगा। इस दिन सोम प्रदोष और रवि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है, जिससे व्रत का महत्व और बढ़ गया है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है, जिसकी पूजा प्रदोष काल में की जाती है।
November Pradosh Vrat: हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 3 नवंबर 2025 को पड़ रही है, जिस दिन सोमवार होने के कारण सोम प्रदोष व्रत रखा जाएगा। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है और प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद पूजा का विशेष महत्व होता है। इस बार का व्रत रवि योग के संयोग में पड़ रहा है, जिससे इसका फल दोगुना शुभ माना गया है। इस दिन भक्त शिव-पार्वती की पूजा, शिव चालीसा पाठ और आरती कर मनोकामनाओं की सिद्धि की प्रार्थना करेंगे।
कब रखा जाएगा नवंबर का पहला प्रदोष व्रत
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 3 नवंबर 2025 को सुबह 5 बजकर 7 मिनट पर शुरू होगी और 4 नवंबर की रात 2 बजकर 5 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए प्रदोष व्रत 3 नवंबर को रखा जाएगा। इस दिन सोमवार का वार है, इसलिए यह व्रत सोम प्रदोष व्रत कहलाएगा।
सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित माना जाता है, इसलिए जब प्रदोष व्रत सोमवार को पड़ता है, तो इसका धार्मिक महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन भगवान शिव की उपासना से मनचाही इच्छाएं पूर्ण होने की मान्यता है।
सोम प्रदोष व्रत का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सोम प्रदोष व्रत रखने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा से संबंधित दोष या अशुभ प्रभाव हो, उन्हें यह व्रत विशेष रूप से लाभ देता है। कहा जाता है कि सोम प्रदोष व्रत से मानसिक शांति मिलती है और पारिवारिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित आनंद भारद्वाज के अनुसार, “सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव की आराधना का सर्वोत्तम अवसर है। जो लोग नियमित रूप से यह व्रत करते हैं, उन्हें जीवन में स्थिरता और संतोष की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से संतान की कामना रखने वाले दंपतियों के लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी है।”
प्रदोष काल में पूजा का महत्व

प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। यह समय सूर्यास्त के बाद का होता है। माना जाता है कि इसी समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसलिए प्रदोष व्रत की पूजा सूर्यास्त के बाद करनी चाहिए।
पंडितों के अनुसार, इस दिन शाम के समय भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से दोगुना पुण्य प्राप्त होता है।
प्रदोष व्रत की विधि
प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सबसे पहले सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घर या मंदिर में पूजा स्थल को शुद्ध जल से साफ करें।
भगवान शिव का पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और शक्कर) से अभिषेक करें। इसके बाद बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, फूल, दीपक और धूप अर्पित करें। भगवान शिव के साथ माता पार्वती, नंदी और कार्तिकेय की भी पूजा करें।
फिर प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें और शिव चालीसा का पाठ अवश्य करें। पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती करें और “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें। व्रत रखने वाले भक्त पूरे दिन निर्जला या फलाहार रह सकते हैं। पूजा के बाद ही व्रत खोला जाता है।
भक्तों के लिए शुभ अवसर
इस बार का सोम प्रदोष व्रत भक्तों के लिए विशेष अवसर लेकर आ रहा है। सोमवार, प्रदोष तिथि और रवि योग का संगम इसे और भी शक्तिशाली बना रहा है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन किए गए व्रत, दान और पूजा से शिव कृपा प्राप्त होती है और जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।













