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परमाणु समझौते पर फिर से बातचीत की कोशिश, ईरान और यूरोपीय देश होंगे आमने-सामने

परमाणु समझौते पर फिर से बातचीत की कोशिश, ईरान और यूरोपीय देश होंगे आमने-सामने

ईरान और यूरोपीय देशों के बीच शुक्रवार को इस्तांबुल में परमाणु वार्ता होगी। इस बैठक का उद्देश्य 2015 परमाणु समझौते को बचाना और पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव को कम करना है।

European Nations: ईरान और यूरोप के तीन बड़े देश—ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी—शुक्रवार को इस्तांबुल में परमाणु कार्यक्रम को लेकर महत्वपूर्ण वार्ता करेंगे। यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब ईरान और इज़रायल के बीच तनाव बढ़ा है और अमेरिका पहले ही 2015 के परमाणु समझौते से हट चुका है। पश्चिमी देशों का कहना है कि अगर वार्ता फिर से शुरू नहीं होती, तो ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध दोबारा लगाए जा सकते हैं।

वार्ता का उद्देश्य: परमाणु हथियारों का खतरा कम करना

ईरान और यूरोपीय देशों के बीच होने वाली यह बातचीत तेहरान के यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को लेकर चिंता के मद्देनज़र हो रही है। पश्चिमी देशों का मानना है कि ईरान द्वारा उच्च स्तर पर यूरेनियम संवर्धन परमाणु हथियार बनाने की दिशा में एक कदम हो सकता है। ईरान बार-बार कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम सिर्फ नागरिक उपयोग के लिए है, जैसे बिजली उत्पादन और चिकित्सा अनुसंधान।

हालांकि, अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को यह भरोसा नहीं है। यही वजह है कि 2015 के परमाणु समझौते के टूटने के बाद बार-बार वार्ता के प्रयास हो चुके हैं, लेकिन कोई ठोस परिणाम अब तक नहीं निकला।

वार्ता में कौन-कौन होंगे शामिल

ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार, यह बैठक उप-विदेश मंत्री स्तर पर होगी। इसमें ईरान, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह बैठक यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख और ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरागची के बीच गुरुवार को हुई बातचीत के बाद होगी। इससे पहले, इज़रायल और अमेरिका द्वारा ईरानी परमाणु प्रतिष्ठानों पर किए गए हमलों के बाद हालात और अधिक संवेदनशील हो गए हैं। इसी के चलते, यह बातचीत रणनीतिक रूप से और भी अहम मानी जा रही है।

ओमान की मध्यस्थता में हुई थी कोशिश

इससे पहले, ईरान और अमेरिका के बीच ओमान की मध्यस्थता में पांच दौर की वार्ता हो चुकी है। हालांकि, उन बैठकों में कोई निर्णायक समाधान नहीं निकल पाया। मुख्य समस्या ईरान की ओर से यूरेनियम संवर्धन की प्रक्रिया रही, जिसे पश्चिमी देश रोकना चाहते हैं।

यूरेनियम संवर्धन एक तकनीकी प्रक्रिया है, जिससे परमाणु ऊर्जा तो प्राप्त की जा सकती है, लेकिन उच्च स्तर पर संवर्धन करने पर इसे परमाणु हथियारों में भी बदला जा सकता है। यही कारण है कि पश्चिमी देशों के लिए यह मुद्दा अत्यधिक संवेदनशील बना हुआ है।

ईरान की चेतावनी: धमकी और दबाव से बात नहीं बनेगी

ईरानी राजनयिक अब्बास अरागची ने बयान में कहा है कि अगर यूरोपीय देश और यूरोपीय संघ सच में वार्ता को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें धमकी और दबाव की पुरानी नीति छोड़नी होगी। उनके मुताबिक, इन नीतियों के लिए पश्चिमी देशों के पास ना तो नैतिक आधार है और ना ही कानूनी समर्थन।

ईरान का यह रुख बताता है कि वह वार्ता के लिए तैयार तो है, लेकिन किसी भी एकतरफा समझौते के लिए दबाव नहीं झेलेगा। ईरान की यह स्थिति वार्ता को और जटिल बना सकती है, क्योंकि यूरोपीय देश अब खुलकर चेतावनी देने लगे हैं कि अगर वार्ता आगे नहीं बढ़ी, तो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध फिर से लागू किए जा सकते हैं।

स्नैपबैक मैकेनिज्म: फिर से लग सकते हैं प्रतिबंध

एक महत्वपूर्ण मुद्दा संयुक्त राष्ट्र के स्नैपबैक मैकेनिज्म का है। इसके तहत, अगर 2015 के परमाणु समझौते के पक्षकार यह महसूस करते हैं कि ईरान समझौते का उल्लंघन कर रहा है, तो वे पुरानी अंतरराष्ट्रीय पाबंदियां दोबारा लागू कर सकते हैं। यह प्रक्रिया 18 अक्टूबर से पहले शुरू की जा सकती है, जब सुरक्षा परिषद का मौजूदा प्रस्ताव समाप्त हो रहा है।

अगर यह मैकेनिज्म लागू हुआ, तो ईरान पर लगे हथियार प्रतिबंध, मिसाइल तकनीक पर रोक और आर्थिक पाबंदियां दोबारा प्रभावी हो सकती हैं। इसका असर ईरानी अर्थव्यवस्था पर गंभीर रूप से पड़ सकता है।

अमेरिका और इज़रायल की भूमिका

हाल ही में अमेरिका और इज़रायल ने ईरान के परमाणु केंद्रों पर साइबर हमले और ड्रोन्स के जरिए हमले किए हैं। इन हमलों का मकसद ईरान की परमाणु क्षमताओं को कमजोर करना था। इन कार्रवाइयों के चलते तेहरान और पश्चिम के बीच भरोसे की कमी और बढ़ी है।

अमेरिका अब इस वार्ता में सीधे शामिल नहीं है, क्योंकि वह 2018 में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में इस समझौते से बाहर निकल चुका है। लेकिन वॉशिंगटन अब भी अपने सहयोगियों को समर्थन दे रहा है और किसी भी निष्कर्ष को प्रभावित कर सकता है।

चीन और रूस की भूमिका

चीन और रूस अभी भी 2015 के परमाणु समझौते के पक्षकार हैं। ये देश खुले तौर पर ईरान के साथ खड़े नजर आते हैं और प्रतिबंधों की वापसी के खिलाफ हैं। इनका मानना है कि पश्चिमी देशों को संयम बरतते हुए कूटनीतिक तरीकों से हल निकालना चाहिए। हालांकि, चीन और रूस वार्ता में प्रत्यक्ष रूप से इस बार शामिल नहीं हो रहे हैं, लेकिन इनके रुख का असर जरूर पड़ेगा।

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