सावन का महीना जैसे ही शुरू होता है, पूरे देश में शिवमय माहौल बन जाता है। भोलेनाथ की आराधना, कांवड़ यात्रा और शिवालयों में भक्तों की भीड़ इस बात का संकेत है कि यह महीना देवों के देव महादेव को समर्पित है। सावन का विशेष पर्व होता है सावन शिवरात्रि, जिसे कई लोग गलती से महाशिवरात्रि समझ लेते हैं। लेकिन असलियत यह है कि ये दोनों पर्व एक-दूसरे से अलग हैं और दोनों का महत्व भी अपने-अपने स्थान पर बेहद खास है।
सावन शिवरात्रि कब मनाई जाती है
हिंदू पंचांग के अनुसार सावन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सावन शिवरात्रि मनाई जाती है। इस बार यानी 2025 में यह तिथि 23 जुलाई की सुबह 4 बजकर 39 मिनट पर शुरू हो रही है और 24 जुलाई की रात 2 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए सावन शिवरात्रि का व्रत 23 जुलाई को रखा जाएगा।
इस दिन शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगता है। जलाभिषेक, बेलपत्र, धतूरा, भस्म और रुद्राभिषेक के साथ भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा की जाती है।
सावन शिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत निकालने की कोशिश की थी, तब सबसे पहले जो वस्तु निकली थी, वह था कालकूट विष। यह विष इतना भयंकर था कि पूरी सृष्टि के लिए विनाश का कारण बन सकता था। इस संकट को देखते हुए भगवान शिव ने इसे स्वयं पीने का निर्णय लिया।
भगवान शिव ने जैसे ही विष का सेवन किया, उनके शरीर में गर्मी बढ़ने लगी और उनका गला नीला पड़ गया। तभी से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। इस विष की तीव्रता को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने मिलकर शिव का जल और दूध से अभिषेक किया। यही घटना सावन शिवरात्रि का आधार बनती है।
शिव को क्यों चढ़ाया जाता है जल
मान्यता है कि विष के प्रभाव को शांत करने के लिए जिस दिन शिव का अभिषेक हुआ था, वह दिन सावन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी। इसलिए हर साल इस दिन जल चढ़ाकर भोलेनाथ को वही शीतलता प्रदान की जाती है।
कांवड़ यात्रा भी इसी भावना से जुड़ी होती है। कांवड़िए दूर-दराज से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। यह गंगाजल उस जल का प्रतीक होता है जिससे प्राचीन काल में शिव को शांत किया गया था।
शादीशुदा महिलाएं क्यों रखती हैं व्रत
जहां अविवाहित कन्याएं अच्छा जीवनसाथी पाने के लिए सावन शिवरात्रि का व्रत रखती हैं, वहीं विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। पूजा में विशेष रूप से शिव-पार्वती की मूर्ति या चित्र का पूजन किया जाता है। महिलाएं दिनभर निर्जला उपवास रखती हैं और शाम को पूजा करके व्रत का पारायण करती हैं।
सावन शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में फर्क
अक्सर लोगों को भ्रम होता है कि महाशिवरात्रि और सावन शिवरात्रि एक ही पर्व हैं, लेकिन दोनों का समय और महत्व अलग होता है। महाशिवरात्रि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाई जाती है, जो भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह की रात मानी जाती है। वहीं सावन शिवरात्रि, विषपान के बाद शिव के शांत होने और अभिषेक से जुड़ी होती है।
महाशिवरात्रि को जहां पूरे भारत में बड़े उत्सव की तरह मनाया जाता है, वहीं सावन शिवरात्रि खासकर उत्तर भारत में अत्यधिक श्रद्धा और पूजा के साथ मनाई जाती है।
भक्तों की श्रद्धा का पर्व
सावन शिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं बल्कि श्रद्धा, तप, विश्वास और प्रेम का प्रतीक है। इस दिन मंदिरों में विशेष भजन-कीर्तन, रात्रि जागरण और रुद्राभिषेक जैसे आयोजन होते हैं। कई लोग इस दिन पूरी रात जागकर शिव की आराधना करते हैं। कुछ जगहों पर 108 बार शिव नाम का जाप करना भी इस दिन अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।
सावन शिवरात्रि के दिन शिव के पंचामृत अभिषेक का विशेष महत्व होता है। दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है।