IGNOU कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा कि विश्व समस्याओं पर चर्चा होती रही है, लेकिन समाधान की दिशा में ठोस प्रयास नहीं हुए। उन्होंने भारतीयता को टिकाऊ समाधान के रूप में प्रस्तुत किया और सामूहिक चिंतन की जरूरत बताई।
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि आज दुनिया समस्याओं से घिरी हुई है, लेकिन इन समस्याओं के समाधान की दिशा में पर्याप्त प्रयास नहीं हो रहे हैं। उन्होंने यह टिप्पणी दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) और अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास द्वारा आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम के दौरान दी।
आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित 10वें अणुव्रत न्यास निधि व्याख्यान में ‘विश्व की समस्याएं और भारतीयता’ विषय पर बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा कि सदियों से इन समस्याओं पर चर्चा तो हो रही है, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।
सुख-सुविधाएं बढ़ीं, फिर भी दुख कम नहीं हुआ
भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि आधुनिकता ने भौतिक सुख-सुविधाएं तो बढ़ा दी हैं, लेकिन इससे मनुष्य के दुख में कोई कमी नहीं आई है। उन्होंने कहा कि सौ साल पहले अगर कोई भाषण देता था तो लाउडस्पीकर नहीं होते थे, लेकिन आज तकनीक ने बहुत कुछ आसान कर दिया है। इसके बावजूद हर वर्ग, चाहे वह गरीब हो या अमीर, अपने-अपने दुखों से घिरा हुआ है।
उन्होंने सवाल उठाया कि अगर विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है तो फिर भी दुनिया में दुख क्यों बना हुआ है। भागवत के अनुसार, यह इस बात का संकेत है कि भौतिक प्रगति से अकेले समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।
विश्व युद्धों से नहीं सीखा सबक
मोहन भागवत ने इतिहास की ओर इशारा करते हुए कहा कि पहले और दूसरे विश्व युद्ध के बाद कई बार शांति की बात हुई, लीग ऑफ नेशंस और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं बनीं, लेकिन युद्धों का सिलसिला नहीं थमा। उन्होंने कहा कि 1950 में उनके जन्म के बाद से हर वर्ष कहीं न कहीं युद्ध होता ही रहा है। उन्होंने कहा कि कलह, हिंसा और रक्तपात से दुनिया को कुछ नहीं मिला, फिर भी वही गलतियां दोहराई जाती हैं।
ज्ञान बढ़ा, पर अज्ञानता भी साथ बढ़ी
आरएसएस प्रमुख ने आधुनिक ज्ञान और वैज्ञानिक विकास पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि आज चंद्रमा, मंगल ग्रह और DNA जैसे जटिल विषयों पर शोध हो रहा है, लेकिन समाज में अज्ञानता खत्म नहीं हुई है।
उनका कहना था कि आज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि जहां ज्ञान की मात्रा बढ़ी है, वहीं ज्ञान का सही उपयोग और समझ कम होती जा रही है। उन्होंने कहा कि ज्ञान की व्याख्या और उसका दृष्टिकोण भी मायने रखता है, न कि केवल सूचनाओं की भरमार।
भारत को विचारधारा में शामिल नहीं किया गया
भागवत ने कहा कि विश्व में भारत को केवल नक्शे पर देखा जाता है, उसकी विचारधारा और सांस्कृतिक सोच को कभी मुख्यधारा में शामिल नहीं किया गया।
उन्होंने बताया कि भारतीयता एक ऐसी विचारधारा है जो जीवन के संतुलन की बात करती है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की संस्कृति न केवल समस्याओं को पहचानती है, बल्कि समाधान की दिशा भी दिखाती है।