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सनातन परंपरा में एक समान थे चारों वर्ण: राम भद्राचार्य

सनातन परंपरा में एक समान थे चारों वर्ण: राम भद्राचार्य

राम भद्राचार्य ने विजेथुआ महोत्सव के नौवें दिन, जहाँ उन्होंने वाल्मीकि रामायण कथा सुना रहे थे, नीचे दिए गए प्रमुख बिंदु कहीसुनाई बारबार बोलें:

उन्होंने कहा कि सनातन परंपरा में चारों वर्ण — ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र — एकसमान थे; उस समय “ओबीसी” या “एससी” जैसी विभाजनश्रेणियाँ नहीं थीं।

उन्होंने तर्क दिया कि सिर्फ “ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने” से सिर्फ हिंदू राष्ट्र नहीं बन जाएगा; हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए संसद में हिंदूवादी दलों को कमसेकम 470 सीटें मिलनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि आतंकवादी की कोई जाति नहीं होती।

उन्होंने बताया कि प्राचीन भारत में 18 स्मृतियाँ थीं, जिन्हें सनातन परंपरा का “संविधान” माना जाता था, और समयसमय पर उनमें परिवर्तन होते रहे।

उन्होंने यह टिप्पणी भी की कि दुष्कर्म करने वालों को प्राणदंड मिलना चाहिए।

साथ ही, उन्होंने कहा कि यदि महात्मा गाँधी को श्रद्धांजलि देनी है, तो संसद में प्रस्ताव पारित कर रामचरितमानस को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया जाना चाहिए।

उन्होंने “पत्नी” शब्द की व्याख्या करते हुए कहा: “जो पति को पतन (नुकसान) से बचाए — वही पत्नी है।” कथा शुरू होने से पहले आयोजनसमारोह में पूजाअर्चना हुई।

स्थल एवं आयोजन जानकारी

स्थान: सुल्तानपुर जिले के विजेथुआ क्षेत्र में आयोजित महोत्सव।

इस आयोजन में विभिन्न सामाजिकसांस्कृतिक हस्तियाँ मौजूद थीं — जैसे न्यायाधीश, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक, आदि।

विश्लेषण एवं सामाजिक संदर्भ

राम भद्राचार्य का यह वक्तव्य सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने वर्ण व्यवस्था, जातवर्ग और सामाजिक विभाजन की बात उठाई है। यह वर्तमान समय में “जातिविरोधी” दृष्टिकोण और समरसताआंदोलन के सन्दर्भ में प्रासंगिक है।

उनका यह कहना कि “चारों वर्ण एकसमान थे” इस दृष्टिकोण को दर्शाता है कि उन्होंने परंपरागत सामाजिक वर्गीकरण (ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्र) की पारंपरिक व्याख्या को पुनर्विचार के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है।

उन्होंने राजनीतिक संदर्भ भी जोड़ा है — “हिंदू राष्ट्र” के लिए संसदसीटें, राष्ट्रीय ग्रंथ की घोषणा — जिससे यह केवल धार्मिकव्यक्तिवक्ता टिप्पणी ही नहीं, बल्कि सामाजिकराजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन जाती है।

यह वक्तव्य उन धार्मिक/सामाजिक समूहों में चर्चास्रोत बन सकता है जो जातविचार, धर्मसमाज, समरसता पर चिंतन करते हैं।

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