रामदेवरा, बाबा रामदेव का समाधी स्थल, धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ श्रद्धालु पूजा, भक्ति और चमत्कारिक स्थलों के माध्यम से अपने जीवन में आस्था और आध्यात्मिक चेतना का अनुभव करते हैं।
Ramsapeer Jayanti: भारत अपने सांस्कृतिक और धार्मिक वैभव के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां हर क्षेत्र में संत और योगाचार्य हुए हैं, जिन्होंने समाज में आध्यात्मिक चेतना और नैतिक मूल्यों को स्थापित किया। ऐसे ही महापुरुषों में से एक हैं बाबा रामदेव, जिनकी आस्था और भक्तिपूर्ण जीवन आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके जीवन, चमत्कार और समाधी स्थल रामदेवरा की महिमा लोगों की श्रद्धा और विश्वास का केंद्र रही है।
रामदेवरा: समाधी स्थल और भव्य मंदिर
बाबा रामदेव के जन्मस्थान को लेकर भिन्न मत हैं, लेकिन उनके समाधी स्थल को लेकर सभी का मत एक है। रामदेवरा में ही बाबा रामदेव ने जीवित समाधी ली और वहीं उनका भव्य मंदिर बना। प्रारंभ में यह समाधी केवल एक छोटे छतरीनुमा मंदिर में बनी थी। वर्ष 1912 में बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने इसका विस्तार कर बड़े मंदिर का निर्माण कराया, जिसने समय के साथ भव्य रूप ले लिया।
मंदिर के पूर्वी कोने में अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित रहती है। दर्शन द्वार पर लोहे का चैनल गेट लगाया गया है। श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए कपड़ा, मौली, नारियल आदि बांधते हैं और मनोकामना पूरी होने पर इन्हें खोल देते हैं। यह परंपरा आज भी रामदेवरा में जीवित है और लोगों की आस्था का प्रतीक है।
रामदेवरा मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
रामदेवरा मंदिर का निर्माण उस समय लगभग 57 हजार रुपए की लागत से हुआ था। यह मंदिर हिन्दू और मुसलमान दोनों समुदायों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर में बाबा रामदेव की मूर्ति के साथ-साथ एक मजार भी स्थित है। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से बड़े पैमाने पर श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
मंदिर में दिनभर विभिन्न आरती और पूजा होती हैं। सुबह 4:30 बजे मंगला आरती, 8:00 बजे भोग आरती, दोपहर 3:45 बजे श्रृंगार आरती, शाम 7:00 बजे संध्या आरती, और रात 9:00 बजे शयन आरती का आयोजन होता है। यह नियमित पूजा क्रम मंदिर की धार्मिक परंपराओं को जीवित बनाए रखता है।
डाली बाई: परम भक्त और चमत्कारिक कंगन
रामदेवरा समाधी स्थल के पास ही बाबा रामदेव की परम भक्त डाली बाई की समाधी स्थित है। उनके कंगन को श्रद्धालु विशेष मानते हैं। यह कंगन पत्थर से बना है और मान्यता है कि इसके अंदर से निकलने पर सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। इसलिए मंदिर आने वाले श्रद्धालु यात्रा की समाप्ति इसी कंगन से होकर ही मानते हैं।
परचा बावड़ी: स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण
मंदिर के समीप ही बाबा रामदेव के कहने पर बणिया बोयता ने पर्चा बावड़ी का निर्माण करवाया। इस बावड़ी का निर्माण विक्रम संवत् 1897 के फाल्गुन सुदी तृतीया को पूर्ण हुआ। बावड़ी का जल शुद्ध और मीठा है और इसे मंदिर में बाबा रामदेव का अभिषेक करने में प्रयोग किया जाता है। बावड़ी पर लगे चार शिलालेखों से यह भी पता चलता है कि घामट गांव के पालीवाल ब्राह्मणों ने इसका पुनर्निर्माण कराया था।
रामसरोवर तालाब: श्रद्धालुओं के लिए जीवनदायिनी
रामदेव जी ने अपने समय में गांववासियों की जल संकट को दूर करने हेतु रामसरोवर तालाब खुदवाया। यह तालाब लगभग 150 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी गहराई 25 फीट है। तालाब के पश्चिमी छोर पर आश्रम और उत्तरी छोर पर बाबा रामदेव की जीवित समाधी स्थित है। इसी क्षेत्र में डाली बाई की जीवित समाधी भी है।
श्रद्धालु यहाँ पत्थरों से छोटे-छोटे मकान बनाकर अपने सपनों की पूर्ति की कामना करते हैं। माना जाता है कि तालाब की मिट्टी से चर्म रोग दूर होते हैं, इसलिए श्रद्धालु अपनी यात्रा में इसका लेप भी लेकर जाते हैं।
रूणीचा कुंआ (राणीसा का कुंआ): चमत्कारिक जल स्रोत
रामदेवरा से लगभग 2 किलोमीटर दूर पूर्व में रूणीचा कुंआ स्थित है। इसे पहले "राणीसा का कुंआ" कहा जाता था। कथा के अनुसार रानी नेतलदे को प्यास लगी थी, तब बाबा रामदेव ने भाले की नोक से इस स्थल पर पानी निकाला। समय के साथ यह नाम अपभ्रंश होकर "रूणीचा कुंआ" बन गया। इसके पास एक छोटा रामदेव मंदिर और वह पेड़ है, जहां बाबा को डाली बाई मिली थी।
बाबा रामदेव और मक्का-मदीना के पीरों की कथा
रामदेव जी की पंच पीपली भी प्रसिद्ध हैं। प्रचलित कथा के अनुसार, मक्का-मदीना से पाँच पीर रामदेवरा आए। भोजन के समय उन्होंने अपने कटोरे में भोजन करने की इच्छा जताई। बाबा रामदेव ने अपनी भुजा फैलाकर मदीना से उनके कटोरे मंगवा दिए। इस चमत्कार से प्रभावित होकर पीरों ने उन्हें अपना गुरु मान लिया। इसके बाद बाबा रामदेव को "पीरो के पीर रामसा पीर" की उपाधि भी मिली।
रामदेवरा से पूर्व की ओर 10 किलोमीटर दूर एकां गांव के पास छोटी सी नाड़ी में घटित यह घटना आज भी श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणास्पद है। यहाँ एक छोटा मंदिर और सरोवर स्थित है।
बाबा रामदेव का जन्म और बाल्यकाल
बाबा रामदेव का जन्म हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के सैद अलीपुर गांव में हुआ। उनके पिता का नाम रामनिवास और माता का नाम गुलाब देवी था। परिवार में तीन भाई और एक बहन थी। रामदेव दूसरे नंबर पर थे। बड़े भाई देवदत्त और माता-पिता हरिद्वार में रहते हैं। छोटे भाई रामभरत पतंजलि आयुर्वेद का दैनिक काम देखते हैं।
बचपन में रामदेव का मन योग और वैदिक शिक्षा में लगने लगा। वे कई गुरुकुलों में प्रवेश के लिए गए, लेकिन अंततः हरियाणा के खानपुर गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण की। उनके पिता जब उन्हें वापस घर ले जाना चाहते थे, तब भी रामदेव ने गुरुकुल में रहने की इच्छा व्यक्त की।
बाबा रामदेव का वैष्णविक जन्म
ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बाबा रामदेव का जन्म वैष्णव भक्त अजमल जी के घर मैणादे की कोख से हुआ। अजमल जी किसी समय दिल्ली के सम्राट रहे एवं अनंगपाल तंवर के वंशज थे। उन्होंने द्वारिकाधीश के अनन्य भक्त के रूप में बाबा का पालन किया। उनके जन्म से जुड़े अनेक अलौकिक चमत्कार और शक्तियों का उल्लेख भजनों, लोकगीतों और कथाओं में मिलता है।
हरजस: समाज सुधारक बाबा रामदेव
बाबा रामदेव केवल योग गुरु नहीं थे, बल्कि समाज सुधारक भी थे। उन्होंने छूआछूत और जात-पांत के भेदभाव को दूर करने के लिए कार्य किया। अमर कोट के राजा दलपत सोढा की अपंग कन्या नेटलदे को पत्नी स्वीकार कर उन्होंने समाज के सामने आदर्श स्थापित किया।
उन्होंने दलितों और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया। पाखंड और आडम्बर का विरोध कर उन्होंने सगुन-निर्गुण, अद्वैत, वेदान्त, भक्ति, ज्ञान योग और कर्मयोग जैसे विषयों की सरल और सहज व्याख्या की। उनकी वाणी आज भी "हरजस" के रूप में गायी और सुनी जाती है।
रामदेवरा का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व
रामदेवरा न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ श्रद्धालु बाबा रामदेव की पूजा करते हैं और उनके द्वारा समाज में स्थापित नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों को समझते हैं।
रामदेवरा के आसपास रामसरोवर तालाब, पर्चा बावड़ी, रूणीचा कुंआ, डाली बाई का कंगन और छोटे-छोटे मंदिर पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र हैं। यहाँ की धार्मिक परंपरा, स्थापत्य और चमत्कारिक कथाएँ इस स्थल को विशेष बनाती हैं।
बाबा रामदेव एक योगाचार्य, समाज सुधारक और चमत्कारिक व्यक्तित्व थे। उनके समाधी स्थल रामदेवरा में श्रद्धालु उनकी पूजा और भक्ति के माध्यम से अपने जीवन की कठिनाइयों और रोगों से मुक्ति पाते हैं। उनका जीवन समाज में समानता, नैतिकता और आध्यात्मिकता का संदेश देता है। रामदेवरा न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारतवर्ष में श्रद्धा, आस्था और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक बन चुका है।