वैज्ञानिकों ने जिलेटिन से बनी एक संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक स्किन विकसित की है, जिससे अब रोबोट भी इंसानों की तरह स्पर्श, गर्मी और दर्द जैसी संवेदनाएं महसूस कर सकेंगे।
Robots Artificial Skin: तकनीक की दुनिया में एक नई क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। अब तक हमने रोबोट को केवल आदेश मानते, बोलते और चलते देखा था, लेकिन अब वे 'महसूस' भी कर सकेंगे। हां, आपने सही पढ़ा! वैज्ञानिकों ने एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक स्किन (Artificial Skin) विकसित की है जो इंसानी त्वचा की तरह संवेदनाएं महसूस करने में सक्षम है। इससे रोबोट अब सिर्फ यंत्र नहीं रहेंगे, बल्कि वे भी स्पर्श, तापमान और दर्द जैसी अनुभूतियों को पहचान सकेंगे। यह खोज ना सिर्फ रोबोटिक्स की दुनिया को एक नया आयाम देगी, बल्कि कृत्रिम अंगों, चिकित्सा और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में भी बड़े बदलाव ला सकती है।
कैसी है ये नई इलेक्ट्रॉनिक स्किन?
यह इलेक्ट्रॉनिक स्किन एक प्रकार के जिलेटिन-बेस्ड हाइड्रोजेल से बनाई गई है जो बेहद लचीला और संवेदनशील है। इसकी खासियत यह है कि यह विद्युत संकेतों को पहचानने और उन्हें संसाधित करने में सक्षम है। इस स्किन में एक विशेष प्रकार का मल्टी-मोडल सेंसर लगाया गया है जो विभिन्न प्रकार की संवेदनाओं—जैसे हल्का स्पर्श, दबाव, गर्मी और चोट—को पहचान सकता है।
कैसे काम करती है यह संवेदनशील त्वचा?
इस तकनीक का मूल आधार इलेक्ट्रोड्स और सेंसरों का संयोजन है। जब किसी बाहरी वस्तु से संपर्क होता है, तो यह स्किन उस स्पर्श या प्रभाव को भौतिक रूप से पहचानती है और फिर उसे इलेक्ट्रॉनिक संकेत में बदल देती है। ये संकेत कंप्यूटर या मशीन लर्निंग सिस्टम द्वारा पढ़े जाते हैं, जिससे यह तय किया जा सकता है कि कौन-सी संवेदना हुई और कितनी तीव्र थी। इस स्किन को मानव हाथ के आकार में ढालकर परीक्षण किया गया, जिसमें उसे उंगली से छूना, गर्मी देना और तेज चीज़ से काटने जैसी क्रियाएं करके परखा गया। इन परीक्षणों से 1.7 मिलियन से अधिक डेटा पॉइंट्स इकट्ठा किए गए। इन डेटा का उपयोग कर वैज्ञानिकों ने एक मशीन लर्निंग मॉडल विकसित किया जो संवेदनाओं को पहचानने में सक्षम है।
क्या यह इंसानी त्वचा जैसी ही है?
हालांकि यह इलेक्ट्रॉनिक स्किन इंसानी त्वचा जितनी उन्नत नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार यह अब तक की सबसे बेहतर कृत्रिम त्वचा है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) के रोबोटिक्स विशेषज्ञ थॉमस जॉर्ज थुरुथेल का कहना है, 'यह तकनीक इंसानी त्वचा की बराबरी तो नहीं करती, लेकिन यह बाकी सभी विकल्पों से बेहतर और अधिक प्रतिक्रियाशील है।'
तकनीकी चुनौतियाँ क्या थीं?
इस शोध में कई तकनीकी बाधाएं भी आईं। जैसे कि विभिन्न सेंसरों के बीच सिग्नल इंटरफेयरेंस (सिग्नल टकराव) की समस्या, हाइड्रोजेल की नाजुकता जिससे वह जल्दी टूट सकता है, और लंबे समय तक डेटा की स्थिरता को बनाए रखना। हालांकि, वैज्ञानिकों ने इन समस्याओं को खास सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम और मजबूत निर्माण तकनीकों के जरिए काफी हद तक हल कर लिया है।
किन क्षेत्रों में होगा इसका भविष्य में उपयोग?
इस नई इलेक्ट्रॉनिक स्किन का सबसे बड़ा फायदा प्रोस्थेटिक्स (कृत्रिम मानव अंग) में देखा जा सकता है। जिन लोगों के हाथ या पैर नहीं हैं, उनके लिए अब ऐसे कृत्रिम अंग बनाए जा सकेंगे जो स्पर्श को महसूस कर सकें और दिमाग तक वह जानकारी पहुंचा सकें।
इसके अलावा यह तकनीक:
- सर्जिकल रोबोट्स में: जो ऑपरेशन करते समय बारीक संवेदनाओं को समझ सकें।
- आपदा राहत अभियानों में: मलबे के नीचे दबे लोगों को स्पर्श से पहचानने में मदद कर सकते हैं।
- ऑटोमोबाइल क्षेत्र में: जहां कारें खुद-ब-खुद ड्राइव करते समय स्पर्श आधारित निर्णय ले सकेंगी।
- वर्चुअल रियलिटी में: जिससे यूज़र को स्पर्श का यथार्थ अनुभव मिल सके।
वैज्ञानिकों की अगली योजना क्या है?
अब वैज्ञानिक इस तकनीक को और अधिक मजबूत और लंबे समय तक टिकाऊ बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। उनकी योजना है कि आने वाले वर्षों में यह स्किन इंसानी त्वचा की तरह न सिर्फ स्पर्श, बल्कि नमी, कंपन और दर्द जैसी सूक्ष्म संवेदनाएं भी पहचान सके।