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संसद में ओवैसी का विरोध: राष्ट्रपति पीएम को हटाने के प्रावधान को बताया संविधान के खिलाफ

संसद में ओवैसी का विरोध: राष्ट्रपति पीएम को हटाने के प्रावधान को बताया संविधान के खिलाफ

असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को हटाने वाले बिल पर सवाल उठाए। उन्होंने इसे संविधान के खिलाफ बताया और चेतावनी दी कि इसका दुरुपयोग लोकतंत्र और जनता के अधिकारों पर गंभीर असर डाल सकता है।

New Delhi: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में हाल ही में पेश हुए बिलों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इन बिलों में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को हटाने का प्रावधान रखा गया है। ओवैसी ने कहा कि यह बिल संविधान के खिलाफ है और इसका दुरुपयोग हो सकता है।

राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को हटा सकते हैं?

ओवैसी ने सवाल किया कि क्या वास्तव में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से इस्तीफा ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुसार राष्ट्रपति केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही निर्णय लेते हैं। लेकिन प्रस्तावित बिल में लिखा गया है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को हटाने का अधिकार रखते हैं। ओवैसी ने इसे लोकतंत्र और संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया।

बिल का उद्देश्य और प्रावधान

इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा गया है। बिल में उल्लेख है कि अगर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री किसी गंभीर अपराध में फंस जाते हैं और लगातार 30 दिन हिरासत में रहते हैं, तो उन्हें पद से हटा दिया जाएगा। ओवैसी ने सवाल उठाया कि क्या यह प्रावधान सत्ता के दुरुपयोग का रास्ता नहीं खोल सकता।

ओवैसी का आरोप

ओवैसी ने चेतावनी दी कि केंद्र सरकार इस प्रावधान का दुरुपयोग कर सकती है। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र चाह ले तो किसी राज्य सरकार के चार-पांच मंत्रियों को गिरफ्तार कर दिया जाए तो सरकार अपने-आप गिर जाएगी। इससे लोकतंत्र की स्वतंत्रता पर खतरा पैदा होगा और जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों का अधिकार छिन जाएगा।

पुलिस स्टेट बनाने का आरोप

ओवैसी ने यह भी कहा कि सरकार इस बिल के माध्यम से 'पुलिस स्टेट' बनाने की कोशिश कर रही है। उनका कहना है कि यह बिल जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकार छीन लेगा और लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कदम चुनी हुई सरकार पर प्रहार जैसा होगा।

विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पर असर

ओवैसी का तर्क है कि यह कानून सत्ता के तीनों स्तंभ—विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका—की स्वतंत्रता को कमजोर करेगा। यदि केंद्र इस प्रावधान का दुरुपयोग करता है तो राज्य सरकारों पर नियंत्रण बढ़ जाएगा और जनता के मतदान का महत्व घट जाएगा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता का निर्णय सर्वोपरि होना चाहिए।

ओवैसी ने संसद में विरोध जताया

पिछले हफ्ते जब यह बिल संसद में पेश किया गया था, तब भी ओवैसी ने कड़ा विरोध जताया था। उन्होंने कहा कि यह कानून लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है और इसे लागू करना समाज में राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर सकता है। उन्होंने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि लोकतांत्रिक मूल्यों और जनता के अधिकारों का उल्लंघन न किया जाए।

संभावित दुरुपयोग की आशंका

ओवैसी ने इस बिल के संभावित दुरुपयोग की आशंका जताई। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इसे अपने राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल कर सकती है। इससे राज्य सरकारों की स्थिरता पर खतरा आएगा और लोकतंत्र कमजोर होगा। कानून का उद्देश्य जनता की सुरक्षा और शासन सुधार होना चाहिए, न कि राजनीतिक नियंत्रण।

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