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सूर्य देव की कृपा पाने का अचूक माध्यम है सूर्याष्टकम, नौकरी और ग्रह दोषों से जुड़ी बाधाएं करता है दूर

सूर्य देव की कृपा पाने का अचूक माध्यम है सूर्याष्टकम, नौकरी और ग्रह दोषों से जुड़ी बाधाएं करता है दूर

सूर्य देव को वैदिक काल से ही जीवनदाता और रोग नाशक माना गया है। उनकी पूजा आरोग्य, सफलता और आत्मबल के लिए की जाती है। इन्हीं की स्तुति में शिवजी द्वारा रचित "सूर्याष्टकम" का पाठ खास महत्व रखता है। माना जाता है कि इस पाठ को नियमित करने से न सिर्फ मानसिक और शारीरिक कष्ट दूर होते हैं, बल्कि सरकारी नौकरी पाने जैसे लक्ष्यों में आ रही बाधाएं भी दूर होती हैं।

सूर्याष्टकम का धार्मिक महत्व

सूर्याष्टकम एक संस्कृत स्तोत्र है, जिसमें भगवान सूर्य के आठ मुख्य श्लोकों के माध्यम से उनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें भगवान सूर्य के स्वरूप, तेज, गुण और प्रभाव का विस्तृत चित्रण किया गया है। हर श्लोक में भक्त सूर्य देव को नमस्कार करता है और उनके अलग-अलग रूपों की स्तुति करता है। इस पाठ में उन्हें आदिदेव, दिवाकर, प्रभाकर, सप्ताश्वरथारूढ़, जगत्कर्ता और ज्ञानविज्ञान मोक्षदाता जैसे नामों से पुकारा गया है।

सरकारी नौकरी के इच्छुकों के बीच लोकप्रिय

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्याष्टकम का पाठ विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी होता है जो सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं या प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार असफल हो रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है, आत्मविश्वास मजबूत होता है और भाग्य के रुके हुए द्वार खुलने लगते हैं।

ग्रह दोषों की शांति में सहायक

ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, प्रतिष्ठा और शासन से जोड़ा गया है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य कमजोर हो या उससे जुड़ा कोई ग्रह दोष हो, तो उसका असर जीवन के कई क्षेत्रों में देखने को मिलता है। विशेष रूप से करियर, सम्मान, पिता और सेहत से जुड़े मामलों में परेशानियां आती हैं। सूर्याष्टकम का पाठ ग्रह पीड़ा की शांति और सूर्य बल की वृद्धि के लिए उपयुक्त माना जाता है।

सूर्याष्टकम के श्लोकों की विशेषता

सूर्याष्टकम के प्रत्येक श्लोक में सूर्य देव के किसी एक गुण की महिमा बताई गई है। जैसे प्रथम श्लोक में उन्हें आदिदेव और भास्कर कहा गया है, जो सृष्टि की शुरुआत से ही विद्यमान हैं। दूसरे श्लोक में उन्हें सप्ताश्वरथ पर सवार तेजस्वी देव कहा गया है। तीसरे श्लोक में वह समस्त लोकों के पितामह और पापों के नाशक के रूप में वर्णित हैं। एक श्लोक में उन्हें त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के स्वरूप में दिखाया गया है।

श्रद्धा से किया गया पाठ देता है लाभ

धार्मिक ग्रंथों में यह स्पष्ट उल्लेख है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन श्रद्धा से सूर्याष्टकम का पाठ करता है, उसकी जीवन की बाधाएं धीरे-धीरे समाप्त हो जाती हैं। स्तोत्र के अंत में लिखा गया है कि सूर्याष्टक का नित्य पाठ ग्रह दोषों को शांत करता है। संतानहीन व्यक्ति को संतान प्राप्त होती है, निर्धन को धन प्राप्त होता है।

पाठ के समय परंपराओं का विशेष ध्यान जरूरी

मान्यताओं के अनुसार, रविवार के दिन सूर्योदय के समय सूर्याष्टकम का पाठ विशेष फलदायी होता है। साथ ही कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक बताया गया है। जैसे, रविवार को मदिरा, मांस, तंबाकू और स्त्री संग से परहेज़ करना चाहिए। साथ ही मधु (शहद) के सेवन से भी बचना चाहिए। ऐसा न करने पर कहा गया है कि व्यक्ति सात जन्मों तक रोगी और दरिद्र बना रहता है।

जगद्गुरु शिवजी से जुड़ा है यह स्तोत्र

सूर्याष्टकम की अंतिम पंक्तियों में उल्लेख है कि यह स्तोत्र स्वयं भगवान शिव द्वारा कहा गया है। शिवजी को त्रिकालज्ञ और देवों के देव महादेव माना गया है, इसलिए उनके द्वारा रचित यह स्तोत्र और भी अधिक प्रभावशाली माना जाता है। सूर्याष्टकम की यही पंक्ति ‘इति श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम्’ इसे शिववाणी घोषित करती है।

मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता

धार्मिक अनुयायियों का मानना है कि सूर्याष्टकम का पाठ केवल धार्मिक कारणों से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत सफलता के लिए भी किया जा सकता है। यह पाठ मानसिक दृढ़ता, आत्मबल और मनोवांछित सफलता दिलाने में सहायक माना गया है। खासतौर पर छात्रों, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं और करियर में संघर्ष कर रहे लोगों के बीच यह स्तोत्र तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

सूर्य देव के साथ बनता है मानसिक जुड़ाव

सूर्याष्टकम का पाठ एक तरह से व्यक्ति को सूर्य देव से जोड़ता है। इससे न सिर्फ मानसिक शांति मिलती है, बल्कि व्यक्ति अपने अंदर एक नया आत्मबल और ऊर्जा महसूस करता है। शास्त्रों में सूर्य को जीवन शक्ति का केंद्र बताया गया है और उनके मंत्र या स्तोत्र का जप करने से शरीर और मन दोनों में संतुलन आता है।

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