कोरोना महामारी ने बहुत से कारोबारों को प्रभावित किया, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने इस चुनौती का सामना किया और अपने संघर्ष से एक नई दिशा को चुना। शहरी इलाके के एक छोटे से मोहल्ले के रहने वाले शक्ति कुमार ओझा की कहानी ऐसी ही एक प्रेरणा देने वाली कहानी है। उन्होंने अपनी मोटर पार्ट्स की दुकान बंद होने के बाद कुल्हड़ बनाने का व्यवसाय शुरू किया और आज यह उद्योग न केवल उनकी जीवनशैली को बदल चुका है, बल्कि उनके आसपास के कई लोगों को रोजगार भी दे रहा हैं।
व्यवसाय की शुरुआत एक कठिन समय में मिली नयी राह
शक्ति कुमार ने लोकल मीडिया से बात करते हुए बताया कि जब उनकी दुकान कोरोना के कारण बंद हो गई, तो वे बेहद परेशान थे। लेकिन एक दिन चाय पीते हुए उनके दिमाग में एक विचार आया, जो उनकी जिंदगी को बदलने वाला साबित हुआ। उन्होंने सोचा कि क्यों न पुराने जमाने के कच्चे कुल्हड़ बनाने का काम किया जाए, जिसे लोग चाय और अन्य पेय पदार्थों के लिए इस्तेमाल करते हैं। यह एक ऐसा उत्पाद था जिसे लोग दिन-प्रतिदिन की जिंदगी में उपयोग करते थे और इस काम के लिए ज्यादा लागत की भी आवश्यकता नहीं थी।

शक्ति कुमार ने इस विचार को वास्तविकता में बदलने का फैसला किया और स्थानीय मिट्टी से कुल्हड़ और कसोरा बनाने की प्रक्रिया शुरू की। हालांकि इस नए व्यवसाय में शुरुआत में काफी संघर्ष और संकोच का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से इसे सफल बनाया।
मूल उत्पादन प्रक्रिया मेहनत और मशीन का संगम

शक्ति कुमार ने बताया कि कुल्हड़ बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले मिट्टी को खेतों से लाया जाता है। इसके बाद उसे साफ कर गूंथा जाता है और उसे एक पेस्ट में बदल दिया जाता है। इस पेस्ट को सांचे में डालकर मशीन की मदद से कुल्हड़ तैयार किए जाते हैं। एक मशीन 10 मिनट में करीब 100 कुल्हड़ बना सकती है। फिर इन कुल्हड़ों को धूप में सुखाया जाता है और भट्टी में पकाया जाता है, ताकि वे मजबूत हो सकें।
शक्ति कुमार के कारीगर ने बताया कि रोजाना करीब 6000 कुल्हड़ तैयार किए जाते हैं और हर कुल्हड़ को 1 रुपए 20 पैसे की दर से बाजार में बेचा जाता है। इस उद्योग में मिट्टी और जलावन की उपलब्धता ने लागत को कम रखा है और इसकी व्यावसायिक संभावनाएं और भी बढ़ाई हैं।
आर्थिक स्थिति में सुधार और रोजगार सृजन
आज शक्ति कुमार का कुल्हड़ बनाने का उद्योग हर महीने 4-5 लाख रुपये की बिक्री कर रहा है, जिससे उन्हें 10-15 प्रतिशत लाभ हो रहा है। इसके साथ ही, उन्होंने इस व्यवसाय के माध्यम से 8-10 लोगों को रोजगार भी दिया है। उनके साथ काम करने वाले कारीगरों का कहना है कि मशीनों के द्वारा काम आसान हो जाता है, लेकिन फिर भी इसमें काफी मेहनत की जरूरत होती हैं।

उनका कहना है कि यह व्यवसाय और भी बड़ा हो सकता है, यदि सरकार उन्हें आधुनिक मशीनें और उचित समर्थन प्रदान करे। उन्होंने सरकार से अपील की है कि तकनीकी सहायता और संसाधन देने से वे अपने उत्पादन स्तर को बढ़ा सकते हैं और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपने उत्पाद को पहुंचा सकते हैं।
सफलता की कहानी साहस और संघर्ष का परिणाम
शक्ति कुमार की सफलता का यह उदाहरण बताता है कि कठिनाइयों का सामना करने के बजाय, उन्हें अवसरों में बदलने का साहस होना चाहिए। उनकी यह कहानी इस बात का प्रतीक है कि यदि आत्मविश्वास और मेहनत के साथ किसी कार्य को किया जाए, तो कोई भी समस्या बाधा नहीं बन सकती। आज शक्ति कुमार का कुल्हड़ उद्योग न केवल आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है, बल्कि यह रोजगार सृजन का भी एक बड़ा माध्यम बन गया हैं।
शक्ति कुमार का सफर यह साबित करता है कि न केवल कारोबार, बल्कि जीवन की कठिनाइयों को भी एक नए नजरिये से देखा जा सकता है और उनका हल निकाला जा सकता हैं।













