सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ एक्ट 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश सुनाएगा। फैसला वक्फ संपत्तियों के डीनोटिफिकेशन, वक्फ बोर्ड की संरचना और कलेक्टर को दिए अधिकार जैसे मुद्दों पर केंद्रित होगा।
New Delhi: संपत्तियों से जुड़ा है जिन्हें पहले वक्फ घोषित किया गया था और अब उनके डीनोटिफिकेशन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस केस की सुनवाई 22 मई को पूरी हो चुकी थी, जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर डाली गई कॉज़ लिस्ट के अनुसार आज यह फैसला सुनाया जाएगा।
तीन बड़े मुद्दों पर केंद्रित होगा आदेश
सुप्रीम कोर्ट का आदेश तीन प्रमुख पहलुओं पर आएगा-
पहला मुद्दा वक्फ संपत्तियों के डीनोटिफिकेशन का है। यानी अगर कोई संपत्ति अदालत, यूज़र या डीड के तहत वक्फ घोषित की गई है, तो उसे वापस लेने की शक्ति किसके पास होगी। दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना का है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन संस्थाओं में केवल मुस्लिम सदस्य होने चाहिए, सिवाय एक्स-ऑफिशियो पदों के। तीसरा मुद्दा उस प्रावधान से जुड़ा है जिसमें कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि अगर जांच में कोई जमीन सरकारी साबित होती है, तो उसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा।
केंद्र सरकार का बचाव
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस संशोधन का जोरदार बचाव किया। उनका कहना था कि वक्फ किसी धर्म विशेष तक सीमित नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा है। संसद से पारित कानून को संवैधानिक मान्यता प्राप्त होती है, इसलिए इस पर रोक लगाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। केंद्र का यह भी कहना है कि वक्फ इस्लाम का कोई मौलिक हिस्सा नहीं है।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ
दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इस कानून को पूरी तरह असंवैधानिक करार दिया। उन्होंने दलील दी कि यह कानून वक्फ संपत्तियों को गैर-न्यायिक प्रक्रिया के जरिए कब्जाने का माध्यम है। सिब्बल ने कहा कि यह संशोधन ऐतिहासिक और संवैधानिक सिद्धांतों से विचलन है और इससे अल्पसंख्यकों के अधिकारों को चोट पहुंचेगी।
मंत्रालय का हलफनामा
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने 1332 पन्नों का हलफनामा दायर किया था। मंत्रालय ने कोर्ट से अपील की थी कि कानून पर कोई ब्लैंकेट स्टे न लगाया जाए। मंत्रालय का तर्क है कि वक्फ संपत्तियों को लेकर लंबे समय से विवाद और अनियमितताएं सामने आती रही हैं। ऐसे में यह संशोधन जरूरी है ताकि पारदर्शिता लाई जा सके और संपत्तियों का दुरुपयोग रोका जा सके।
संसद में हुआ कड़ा मुकाबला
यह संशोधन बिल संसद में लंबी बहस के बाद पास हुआ। लोकसभा में इसके पक्ष में 288 वोट पड़े जबकि 232 सांसदों ने विरोध किया। वहीं राज्यसभा में 128 सांसदों ने समर्थन किया और 95 ने विरोध। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को इस पर हस्ताक्षर किए और उसके बाद इसे अधिसूचित कर दिया गया।
वक्फ की अवधारणा और विवाद
वक्फ का मतलब है ऐसी संपत्ति जिसे धार्मिक या सामाजिक उद्देश्यों के लिए हमेशा के लिए दान कर दिया जाए। परंपरागत तौर पर मुस्लिम समुदाय मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान या कल्याणकारी कामों के लिए जमीन को वक्फ करता है। इन संपत्तियों का प्रबंधन राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद करती हैं। लेकिन इन पर लंबे समय से विवाद, अवैध कब्जे और भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। यही वजह है कि इसमें समय-समय पर सुधार की मांग उठती रही है।
क्यों अहम है यह मामला
इस बार के संशोधन में सबसे विवादित पहलू डीनोटिफिकेशन की शक्ति और कलेक्टर को दिए गए अधिकार हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे समुदाय की धार्मिक संपत्तियों पर खतरा है। वहीं सरकार का दावा है कि यह कदम पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।