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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अपराध पीड़ित और वारिस को मिला अपील का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अपराध पीड़ित और वारिस को मिला अपील का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने अपराध के पीड़ितों और कानूनी वारिसों को एक महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान किया है। कोर्ट ने साफ किया कि अब यदि किसी ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट द्वारा किसी अभियुक्त को बरी किया जाता है, तो उसके खिलाफ अपील करने का अधिकार राज्य सरकार या शिकायतकर्ता तक सीमित नहीं रहेगा।

नई दिल्ली: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अपराध पीड़ितों और उनके कानूनी वारिसों को बड़ी राहत दी है। अब अगर किसी मामले में अभियुक्त को निचली अदालत या हाई कोर्ट से बरी कर दिया जाता है या उसे अपेक्षाकृत कम सजा मिलती है, तो न केवल राज्य सरकार बल्कि पीड़ित और उनके वारिस भी उसके खिलाफ अपील कर सकेंगे।

यह अहम फैसला जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की दो-न्यायाधीशों वाली बेंच ने सुनाया। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित के अधिकार अभियुक्त के अधिकारों के समान हैं, इसलिए उन्हें अपील करने का पूरा अवसर मिलना चाहिए।

अब तक क्या था नियम?

अब तक भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत अगर ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट ने किसी अभियुक्त को बरी कर दिया, तो उसके खिलाफ अपील करने का अधिकार केवल राज्य सरकार या मूल शिकायतकर्ता को था। इसका मतलब यह था कि अपराध से सीधे प्रभावित व्यक्ति यानी पीड़ित या उनके वारिसों के पास अपील का अधिकार नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट ने इस दायरे को बढ़ाते हुए साफ कर दिया कि पीड़ित और उसके कानूनी वारिस भी अपील कर सकते हैं। यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में पीड़ितों के अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

पीड़ितों का हक अभियुक्त के बराबर

अपने 58 पन्नों के फैसले में जस्टिस नागरत्ना ने लिखा: अपराध पीड़ित का हक उसी तरह होना चाहिए, जैसे अभियुक्त का होता है। जिस तरह अभियुक्त CrPC की धारा 374 के तहत बिना किसी शर्त के अपील कर सकता है, उसी तरह पीड़ित को भी कम सजा, मुआवजे या बरी होने के खिलाफ अपील करने का अधिकार होना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़ितों का यह हक किसी भी परिस्थिति में सीमित नहीं किया जा सकता। बेंच ने “अपराध पीड़ित” की परिभाषा को और व्यापक किया। अगर किसी अपराध का पीड़ित अपील दायर करने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, तो उसके कानूनी वारिस उस अपील को आगे बढ़ा सकते हैं। कोर्ट ने कहा:अगर अपराध के पीड़ित को अभियुक्त की रिहाई या कम सजा के खिलाफ अपील का अधिकार है, तो उनके वारिसों को भी वही अधिकार मिलना चाहिए।

फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिए गए कई निर्णयों और लॉ कमीशन की सिफारिशों का भी हवाला दिया। लॉ कमीशन लंबे समय से यह सिफारिश कर रहा था कि भारतीय न्याय व्यवस्था में पीड़ितों की भूमिका को मज़बूत किया जाए और उन्हें अभियुक्तों के समान अधिकार दिए जाएं।

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