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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: सलीम खान की UAPA केस में जमानत बरकरार, NIA की याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: सलीम खान की UAPA केस में जमानत बरकरार, NIA की याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए की अपील को खारिज कर दिया और कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा सलीम खान को UAPA के तहत दी गई जमानत को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि ‘अल-हिंद’ संगठन UAPA की सूची में प्रतिबंधित नहीं है और इसमें शामिल होना तुरंत अपराध नहीं माना जा सकता। आरोपी मोहम्मद ज़ैद को जमानत नहीं मिली।

नहीं दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा सलीम खान को गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत जमानत देने के फैसले को चुनौती दी गई थी। सलीम पर 'अल-हिंद' संगठन से संबंध रखने का आरोप था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अल-हिंद संगठन UAPA की अनुसूची में प्रतिबंधित नहीं है, इसलिए उसकी बैठकों में शामिल होना सीधे तौर पर अपराध नहीं माना जा सकता।

जस्टिस विक्रम नाथ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार करने के बाद जमानत दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया।

मोहम्मद जैद की जमानत याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ 'अल-हिंद' संगठन की बैठकों में शामिल होना या उसका सदस्य बनना UAPA की धारा 2(k) या 2(m) के तहत अपराध नहीं है। इसलिए सलीम खान को हाईकोर्ट की जमानत बरकरार रखी गई।

हालांकि, दूसरे आरोपी मोहम्मद ज़ैद की जमानत याचिका खारिज कर दी गई, क्योंकि उस पर आरोप था कि उसने ISIS हैंडलरों से डार्क वेब के जरिए संपर्क किया था। इससे सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि प्रत्येक मामले को तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर अलग से देखा जाएगा।

CCB और NIA के केस में 17 आरोपियों के खिलाफ FIR 

जनवरी 2020 में, CCB पुलिस ने सुददगुंटेपल्या थाने में 17 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। आरोपों में आईपीसी की धाराएँ 153A, 121A, 120B, 122, 123, 124A, 125 और UAPA की धाराएं 13, 18 और 20 शामिल थीं। बाद में यह मामला NIA को सौंपा गया।

सलीम खान की जमानत उसी मुकदमे के संदर्भ में थी, जबकि अन्य आरोपियों के मामलों में जांच और सबूत अलग थे। सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को शीघ्र पूरा करने के लिए दो साल की समयसीमा भी तय की।

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के मुकदमे जल्दी निपटाने का आदेश दिया 

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरोपियों को लंबे समय तक विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में नहीं रखा जा सकता। न्यायालय ने ट्रायल को पूरी तरह से समयबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्देश दिया। इससे यह सुनिश्चित होगा कि न्यायाधीशों और अभियोजन पक्ष को मुकदमे की निष्पक्ष सुनवाई के लिए पर्याप्त समय और दिशा मिले।

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