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सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण की समय सीमा बढ़ाने पर सुनवाई, जानें पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण की समय सीमा बढ़ाने पर सुनवाई, जानें पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने 'उम्मीद' पोर्टल के तहत 'वक्फ बाय यूजर' सहित सभी वक्फ संपत्तियों के अनिवार्य पंजीकरण के लिए समयावधि बढ़ाने के अनुरोध वाली याचिका को सूचीबद्ध करने पर बृहस्पतिवार को सहमति व्यक्त की है।

नई दिल्ली: देश में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण (Registration of Waqf Properties) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई है। अदालत ने 'उम्मीद' पोर्टल (Umeed Portal) पर सभी वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य करने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी है। यह मामला विशेष रूप से 'वक्फ बाय यूजर' (Waqf by User) प्रावधान से संबंधित है।

'उम्मीद' पोर्टल और पंजीकरण का उद्देश्य

केंद्र सरकार ने 6 जून 2025 को 'उम्मीद' पोर्टल की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य देशभर में सभी वक्फ संपत्तियों का डिजिटल डेटाबेस तैयार करना और उनके प्रबंधन में पारदर्शिता लाना है। इस पोर्टल के तहत संपत्तियों की जियो-टैगिंग और विवरण अपलोड करना अनिवार्य किया गया है। शुरुआत में सभी वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण के लिए छह महीने की समय सीमा तय की गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस समयावधि में पंजीकरण पूरी तरह संभव नहीं है, क्योंकि आदेश लागू होने के बाद अब केवल एक महीना शेष है।

'वक्फ बाय यूजर' का तात्पर्य उन संपत्तियों से है, जिन्हें औपचारिक दस्तावेज़ के बिना भी धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर वक्फ के रूप में मान्यता दी जाती है। इसका मतलब है कि मालिक द्वारा लिखित घोषणा न होने पर भी संपत्ति को वक्फ माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को हटाने का आग्रह खारिज करते हुए इसे मनमाना नहीं माना और कहा कि सरकारी दखल के आरोप अतार्किक हैं।

कोर्ट में सुनवाई

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी की ओर से पेश वकील निजाम पाशा ने चीफ जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ से अनुरोध किया कि पंजीकरण की समय सीमा बढ़ाने के लिए दाखिल याचिका को शीघ्र सूचीबद्ध किया जाए। उन्होंने बताया कि संशोधित कानून में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण के लिए छह महीने का समय दिया गया था, जिनमें से अब केवल एक महीना बचा है।

सुप्रीम कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका सूचीबद्ध करने पर आपत्ति जताई और कहा कि इसकी जानकारी केंद्र सरकार को दी जानी चाहिए। इसके बावजूद चीफ जस्टिस ने याचिका को सूचीबद्ध करने की अनुमति दी, यह स्पष्ट करते हुए कि सूचीबद्ध करने का मतलब राहत देने के बराबर नहीं है।

15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों पर अंतरिम आदेश पारित किया था। इसमें यह स्पष्ट किया गया कि पिछले पांच वर्षों में केवल इस्लाम धर्म के अनुयायी ही वक्फ बना सकते हैं। अदालत ने यह रेखांकित किया कि पूरे कानून पर रोक नहीं लगाई जा सकती।

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