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स्वतंत्रता दिवस 2025: भगवत गीता की नजर में असली आजादी का अर्थ क्या है?

स्वतंत्रता दिवस 2025: भगवत गीता की नजर में असली आजादी का अर्थ क्या है?

आज, 15 अगस्त 2025 को भारत अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। भगवत गीता के अनुसार, असली स्वतंत्रता केवल बाहरी बंधनों से मुक्ति नहीं, बल्कि मन, इंद्रियों और नकारात्मक भावनाओं से आजादी है। कृष्ण बताते हैं कि फल की आसक्ति छोड़कर, आत्मसंयम और आत्मज्ञान से ही सच्ची शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।

नई दिल्ली: आज, 15 अगस्त 2025 को देशभर में 79वां स्वतंत्रता दिवस उत्साहपूर्वक मनाया जा रहा है, जो 1947 में मिली अंग्रेजी हुकूमत से आजादी की याद दिलाता है। लेकिन भगवत गीता के अनुसार, वास्तविक स्वतंत्रता बाहरी गुलामी से मुक्ति से कहीं आगे है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि फल की चिंता छोड़कर कर्तव्य निभाना, राग-द्वेष और भय से मुक्त होना, तथा आत्मसंयम और आत्मज्ञान प्राप्त करना ही सच्ची आजादी है। गीता में मोक्ष जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति को अंतिम स्वतंत्रता माना गया है, जो ईश्वर की भक्ति और आत्मवशता से संभव है।

कर्म से जुड़ी स्वतंत्रता

गीता के दूसरे अध्याय के 47वें श्लोक में कृष्ण कहते हैं

  • कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन: अर्थ यह है कि इंसान को केवल अपने कर्म पर अधिकार है, फल पर नहीं। जब हम काम को केवल अपने कर्तव्य के रूप में करते हैं और उसके परिणाम की चिंता छोड़ देते हैं, तभी मन के बंधन टूटने लगते हैं। यह स्थिति हमें मानसिक गुलामी से बाहर निकालती है और अंदर से स्वतंत्र बनाती है।
  • राग-द्वेष से मुक्ति: गीता के दूसरे अध्याय के 64वें श्लोक में कहा गया है कि जो व्यक्ति राग (अत्यधिक चाहत) और द्वेष (घृणा) से मुक्त होकर इंद्रियों को संयमित करता है, वह भीतर से शांति प्राप्त करता है। यही शांति असली स्वतंत्रता है। जब मन किसी के प्रति अत्यधिक आसक्ति या घृणा से मुक्त हो जाता है, तब बाहरी परिस्थितियां हमें बांध नहीं पातीं।

आत्मज्ञान से मिलने वाली स्वतंत्रता

चौथे अध्याय के 39वें श्लोक में कृष्ण कहते हैं 

  • श्रद्धावान लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः अर्थ यह है कि श्रद्धा, संयम और एकाग्रता से युक्त व्यक्ति ही आत्मज्ञान प्राप्त करता है। आत्मज्ञान मिलने के बाद व्यक्ति को परम शांति मिलती है, और यह परम शांति ही असली आजादी है।

जन्म-मरण से मुक्ति ही अंतिम स्वतंत्रता

आठवें अध्याय के 15वें श्लोक में कहा गया है 

  • मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्: ईश्वर की प्राप्ति के बाद इंसान जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। यही मोक्ष है, जिसे गीता में अंतिम स्वतंत्रता कहा गया है।

गीता में बताए गए असली स्वतंत्रता के पहलू

  • दूसरों पर निर्भरता से मुक्ति: स्वतंत्रता का एक बड़ा रूप है आत्मनिर्भर होना। जब हम अपनी जरूरतों और फैसलों के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहते, तभी असली आजादी का अनुभव कर सकते हैं।
  • बुराइयों से मुक्त होना: अहंकार, क्रोध और लालच जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियां इंसान को मानसिक कैद में रखती हैं। गीता कहती है कि इनसे मुक्त होकर ही इंसान सच्चा स्वतंत्र बन सकता है।
  • स्वार्थ से परे सोचना: असली स्वतंत्रता तब आती है जब हम केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और दूसरों के कल्याण के लिए भी सोचते हैं। निःस्वार्थ भाव से किया गया कार्य मन को हल्का और आत्मा को मुक्त करता है।
  • भय से मुक्ति: भय, चाहे वह असफलता का हो, आलोचना का हो या भविष्य का, इंसान की स्वतंत्रता छीन लेता है। गीता का संदेश है कि भय को त्यागकर, विश्वास और साहस के साथ जीवन जीना ही स्वतंत्रता है।

इस तरह, 15 अगस्त हमें जहां बाहरी आजादी की याद दिलाता है, वहीं भगवद्गीता हमें अंदर की आजादी का मार्ग दिखाती है ऐसी स्वतंत्रता, जो मन, आत्मा और विचारों को किसी भी बंधन में नहीं रहने देती।

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