अमेरिका की अदालत में ट्रंप की टैरिफ नीति पर विवाद। जजों ने IEEPA कानून के तहत टैरिफ की वैधता पर सवाल उठाए। फैसला जल्द आने की संभावना है।
America: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीतियों को लेकर एक बार फिर विवाद छिड़ गया है। ट्रंप द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान कई देशों पर लगाए गए टैरिफ अब अदालत की कसौटी पर हैं। वाशिंगटन डीसी स्थित संघीय अपील अदालत ने ट्रंप की टैरिफ नीति की वैधता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। गुरुवार को अदालत में सुनवाई के दौरान तीन जजों के पैनल ने पूछा कि ट्रंप को यह अधिकार कैसे मिला कि वे अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम (International Emergency Economic Powers Act – IEEPA) के तहत टैरिफ लागू करें। अदालत इस बात की समीक्षा कर रही है कि क्या टैरिफ लगाना IEEPA के दायरे में आता है या नहीं।
पांच व्यवसाय और 12 राज्यों ने दी अदालत में चुनौती
यह मामला पांच छोटे अमेरिकी व्यवसायों और डेमोक्रेटिक पार्टी के नेतृत्व वाले 12 राज्यों द्वारा दायर याचिकाओं के आधार पर अदालत में पहुंचा। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ट्रंप ने टैरिफ लगाकर संविधान के उस प्रावधान का उल्लंघन किया है, जिसमें कर और शुल्क लगाने का अधिकार केवल कांग्रेस को दिया गया है। याचिकाकर्ता यह भी तर्क दे रहे हैं कि IEEPA कानून का इस्तेमाल इस प्रकार के टैरिफ लगाने के लिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसकी मूल अवधारणा पूरी तरह अलग है।
IEEPA कानून क्या है और इसका उद्देश्य क्या था
IEEPA, यानी International Emergency Economic Powers Act, अमेरिका में 1977 में लागू किया गया एक विशेष कानून है। इसका मूल उद्देश्य विदेशी दुश्मनों या राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपति को आर्थिक प्रतिबंध लगाने की शक्ति देना था। उदाहरण के तौर पर, दुश्मन देशों की संपत्ति जब्त करना, उनके साथ व्यापारिक लेन-देन रोकना, आदि इस कानून के तहत संभव है। लेकिन यह कानून टैरिफ यानी व्यापारिक शुल्क पर स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहता।
ट्रंप ने पहली बार IEEPA का इस्तेमाल टैरिफ लगाने में किया
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने IEEPA कानून का इस्तेमाल आयातित वस्तुओं पर टैरिफ लगाने के लिए किया। ट्रंप ने अपने कार्यकाल में चीन, कनाडा, मैक्सिको और अन्य व्यापारिक साझेदारों पर "Reciprocal Tariffs" लगाए थे, जिनका तर्क यह था कि अमेरिका को विदेशों से आने वाले माल पर अनुचित दर से टैरिफ देना पड़ता है, जबकि अमेरिका के सामान को वहां कम प्राथमिकता दी जाती है।
जजों ने उठाए गंभीर सवाल
अदालत में हुई सुनवाई के दौरान जजों ने सरकार के वकील ब्रेट शूमेट से तीखे सवाल किए। एक जज ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “IEEPA में कहीं भी टैरिफ शब्द का उल्लेख नहीं है।” शूमेट ने तर्क दिया कि राष्ट्रपति को संकट की स्थिति में विशेष शक्तियां मिलती हैं और वह आयात पर नियंत्रण लगाने का निर्णय ले सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि राष्ट्रपति चाहें तो किसी वस्तु के आयात पर पूरी तरह से रोक लगा सकते हैं और यह अधिकार टैरिफ लगाने से भी अधिक प्रभावी होता है।
संविधान की अवहेलना या आपातकालीन अधिकार का प्रयोग?
सरकार की ओर से पेश किए गए तर्कों में यह बताया गया कि राष्ट्रपति को राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर आयात नीति तय करने का अधिकार है। वहीं याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह संविधान का उल्लंघन है, क्योंकि कर और शुल्क संबंधी अधिकार संविधान के अनुच्छेद-1 में स्पष्ट रूप से कांग्रेस को दिए गए हैं। ऐसे में राष्ट्रपति द्वारा एकतरफा टैरिफ लागू करना न केवल अवैध है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विपरीत भी है।
ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति फिर चर्चा में
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत अंतरराष्ट्रीय व्यापार को दोबारा परिभाषित करने की कोशिश की थी। उन्होंने चीन के साथ व्यापार युद्ध छेड़ा, मैक्सिको और कनाडा के साथ नए व्यापार समझौते किए और WTO जैसी वैश्विक संस्थाओं की आलोचना की। लेकिन अब उनकी उन्हीं नीतियों की वैधता अदालत में सवालों के घेरे में है।