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व्रत और उपवास में क्या अंतर होता है? जानिए धार्मिक नियम और इसका गहरा अर्थ

व्रत और उपवास में क्या अंतर होता है? जानिए धार्मिक नियम और इसका गहरा अर्थ

भारतीय संस्कृति में धर्म और आस्था का गहरा प्रभाव देखा जाता है। यही कारण है कि यहां साल भर लोग व्रत और उपवास करते रहते हैं। सोमवार का व्रत, एकादशी का उपवास, प्रदोष व्रत, शनिदेव का उपवास इन जैसे कई पर्व हर महीने मनाए जाते हैं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि व्रत और उपवास, ये दोनों शब्द अलग क्यों हैं? क्या इन दोनों में कोई फर्क है या यह बस भाषा का बदलाव है? बहुत से लोग मानते हैं कि व्रत और उपवास एक ही चीज़ है, लेकिन हकीकत कुछ और है।

व्रत क्या होता है?

व्रत का मतलब होता है किसी उद्देश्य या नियम के लिए एक तय संकल्प लेना। जैसे कोई कहे कि वह सोमवार को शिवजी का व्रत करता है, इसका मतलब यह है कि वह हर सोमवार एक खास नियम और पूजा विधि के साथ अपनी श्रद्धा प्रकट करता है। व्रत में सिर्फ भोजन पर नियंत्रण नहीं होता, बल्कि व्यवहार, सोच, और आचरण पर भी संयम जरूरी होता है।

व्रत करने वाला व्यक्ति सुबह जल्दी उठता है, स्नान कर तन-मन से शुद्ध होता है, फिर भगवान के सामने व्रत का संकल्प करता है। इसके बाद दिन भर नियमपूर्वक पूजा, जप, पाठ और संयमित आहार करता है। कुछ लोग इस दिन अन्न नहीं खाते, कुछ फलाहार करते हैं। लेकिन केवल भोजन न करना ही व्रत नहीं है, बल्कि व्रत तो एक निष्ठा और आत्मसंयम का संकल्प होता है।

उपवास का मतलब क्या है?

अब बात करते हैं उपवास की। उपवास का मतलब सिर्फ खाना न खाना नहीं होता। इस शब्द को संस्कृत में दो भागों में बांटा जाए—‘उप’ यानी समीप और ‘वास’ यानी रहना। यानी उपवास का अर्थ हुआ ईश्वर के समीप रहना। इसका उद्देश्य शरीर की शुद्धि से ज़्यादा आत्मा की शुद्धि है।

उपवास करने वाला व्यक्ति सांसारिक भोगों से कुछ समय के लिए दूरी बनाकर, ध्यान, साधना और मौन में समय बिताता है। यानी इस दिन सिर्फ पेट का उपवास नहीं होता, बल्कि मन, वाणी और इंद्रियों का भी उपवास होता है। ऐसे दिन व्यक्ति कोशिश करता है कि वह किसी भी प्रकार के बुरे विचार, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ से दूर रहे और अपने इष्ट देव की आराधना में लीन हो।

लोग व्रत क्यों रखते हैं?

भारत में व्रत रखने की परंपरा बहुत पुरानी है। लोग अलग-अलग कारणों से व्रत रखते हैं। कोई अपने ग्रह दोष को शांत करने के लिए व्रत करता है तो कोई अपने आराध्य के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए। कुछ लोग अपने परिवार की खुशहाली और स्वास्थ्य के लिए व्रत रखते हैं, जबकि कुछ लोग सामाजिक परंपरा के अनुसार इसे निभाते हैं।

कई बार व्रत रखने का कारण भय भी होता है जैसे यदि किसी ने सुन लिया कि शनिवार को व्रत नहीं किया तो शनि देव नाराज़ हो जाएंगे। इस तरह की मान्यताएं भी लोगों को प्रेरित करती हैं। वहीं कुछ लोग सिर्फ इसलिए व्रत रखते हैं क्योंकि उनके परिवार में पुरानी परंपरा चलती आ रही है और वे उसे निभाते हैं।

उपवास रखने का उद्देश्य क्या होता है?

उपवास रखने वाले व्यक्ति का उद्देश्य सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर आत्मा की आवाज़ सुनना होता है। उपवास में ध्यान, जप, योग और एकांत का महत्व ज्यादा होता है। साधक अपनी इच्छाओं को त्याग कर एक तरह से खुद को तपाते हैं ताकि वे भीतर से शुद्ध बन सकें।

उपवास का कोई खास दिन नहीं होता, यह व्यक्ति की भावना और साधना पर निर्भर करता है। हालांकि एकादशी, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे दिन उपवास के लिए उपयुक्त माने जाते हैं, क्योंकि इन दिनों चंद्रमा की स्थिति का असर मन और शरीर पर अधिक होता है।

अलग-अलग तरीकों से होता है पालन

व्रत और उपवास करने का तरीका हर व्यक्ति और परंपरा के अनुसार अलग हो सकता है। किसी के लिए यह केवल अन्न न खाने का नियम हो सकता है, तो किसी के लिए मौन रहना, अकेले रहना और ध्यान लगाना भी इसका हिस्सा होता है। कई लोग जल उपवास करते हैं, तो कुछ केवल फलाहार करते हैं।

व्रत और उपवास में सबसे जरूरी बात है मन की स्थिति। अगर मन में श्रद्धा, संयम और ईश्वर के प्रति लगाव है, तभी यह फलदायी होता है। केवल शरीर से भूखा रहना ही उपवास या व्रत नहीं कहलाता।

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