Rupee Vs Dollar: रुपये में भारी गिरावट, डॉलर के मुकाबले 84.50 के निचले स्तर पर पहुंची भारतीय करेंसी, जानें इसके पीछे के कारण

Rupee Vs Dollar: रुपये में भारी गिरावट, डॉलर के मुकाबले 84.50 के निचले स्तर पर पहुंची भारतीय करेंसी, जानें इसके पीछे के कारण
Last Updated: 5 घंटा पहले

डॉलर के मुकाबले रुपये में आई गिरावट इस के कारण देश में आयातित महंगाई का खतरा बढ़ सकता है। मुद्रा बाजार में रुपये के कमजोर होने से विदेशी वस्तुओं और कच्चे माल की कीमतों में इजाफा हो सकता है, जिससे महंगाई पर दबाव बन सकता है।

रुपया-डॉलर अपडेट: करेंसी बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपये में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद डॉलर में मजबूती आई है, और इसके साथ ही विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय इक्विटी और बॉंड बाजार में बिकवाली करने से रुपया 84.50 रुपये के ऑलटाइम लो पर पहुंच गया है। इस गिरावट के कारण भारतीय मुद्रा में दबाव बढ़ा है, जिससे देश में आर्थिक स्थिति पर असर पड़ सकता है।

वैश्विक तनाव के चलते डॉलर में आई मजबूती

शुक्रवार, 22 नवंबर 2024 को करेंसी मार्केट में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरकर 84.5025 रुपये के लेवल तक पहुंच गया। नवंबर महीने में विदेशी निवेशकों ने भारतीय इक्विटी और बॉन्ड मार्केट से 4 बिलियन डॉलर की निकासी की है।

इसके अलावा, इजरायल-ईरान और रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे तनावों के कारण डॉलर की मजबूती जारी है, जिससे दुनियाभर की करेंसी में कमजोरी आई है, और भारतीय रुपया भी इसका शिकार हो गया है।

अमेरिकी डॉलर इंडेक्स में उछाल

अमेरिकी डॉलर इंडेक्स, जो छह प्रमुख वैश्विक करेंसी के मुकाबले डॉलर के प्रदर्शन को ट्रैक करता है, इस महीने 3 फीसदी से अधिक उछल चुका है। डोनाल्ड ट्रंप के अगले साल राष्ट्रपति पद पर लौटने की संभावना के बीच, उनके आर्थिक नीतियों से महंगाई में इजाफा हो सकता है, जिससे अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें कमजोर हो रही हैं। इसका असर डॉलर की मजबूती पर पड़ा है, जिसके चलते भारतीय रुपया कमजोर हो रहा है।

भारत में महंगाई बढ़ने का खतरा

डॉलर में मजबूती और रुपये में आई कमजोरी के कारण भारत में महंगाई के और बढ़ने का खतरा उत्पन्न हो गया है। खासकर उन वस्तुओं के आयात पर असर पड़ेगा, जिनका भारत अपने खपत के लिए अन्य देशों से आयात करता है।

कच्चे तेल की कीमत भले ही 75 डॉलर प्रति बैरल के नीचे आई हो, लेकिन रुपये में आई कमजोरी के कारण तेल कंपनियों को डॉलर में भुगतान करना पड़ेगा, जिससे उनका खर्च बढ़ जाएगा। इसके अलावा, खाद्य तेल, दाल, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और ऑटोमोबाइल पार्ट्स जैसे आयातित सामान महंगे होंगे

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