साल 2018 में रिलीज़ हुई तुम्बाड (Tumbbad) एक बेहतरीन हॉरर फिल्म के रूप में सराही गई थी। इसके अनूठे प्लॉट और भयानक हॉरर सीन ने दर्शकों को काफी प्रभावित किया। फिल्म की कहानी भारतीय लोककथाओं और मिथकों से प्रेरित है और इसकी रहस्यमय दुनिया और गहन वातावरण ने इसे एक विशिष्ट अनुभव बना दिया।
एंटरटेनमेंट: हिंदी सिनेमा में हॉरर फिल्मों का एक लंबा और समृद्ध इतिहास रहा है। फिल्मों जैसे सौ साल बाद, वीराना, और दो गज जमीन के नीचे ने दर्शकों को दहशत और सस्पेंस से भरपूर अनुभव प्रदान किया। लेकिन, जैसे-जैसे सिनेमा का दौर बदला, हॉरर फिल्मों के प्रस्तुतिकरण का तरीका भी विकसित हुआ।निर्देशक राही अनिल बर्वे की तुम्बाड (Tumbbad) ने हॉरर जॉनर में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया। इसकी कहानी, सिनेमेटोग्राफी और विशिष्टता ने इसे भारतीय हॉरर सिनेमा में एक नई पहचान दिलाई। तुम्बाड ने न केवल डरावनी कहानी को पेश करने के नए तरीके दिखाए, बल्कि इसे एक गहरी और बोधगम्य अनुभव के रूप में प्रस्तुत किया।
अब तुम्बाड को दोबारा 13 सितंबर से बड़े पर्दे पर री-रिलीज किया गया है, जो फिल्म के प्रशंसकों और नए दर्शकों के लिए एक शानदार अवसर है। इस री-रिलीज से दर्शक फिर से उस विशेष माहौल का अनुभव कर सकेंगे जो तुम्बाड ने पहली बार प्रस्तुत किया था। यह फिल्म हॉरर की दुनिया में एक अनूठी और यादगार यात्रा के रूप में हमेशा याद की जाएगी। इसे मस्ट वॉच मूवी बनाने के 5 कारण हैं:-
1. पीरियड ड्रामा हॉरर मूवी
सिनेमा जगत में पीरियड ड्रामा हॉरर फिल्में बनाना एक बड़ी चुनौती और साहस का काम है। आजकल के समय में हॉरर कॉमेडी और सुपरनैचुरल थ्रिलर का ट्रेंड काफी प्रचलित है, लेकिन पीरियड ड्रामा हॉरर का अपना विशेष स्थान होता है। तुम्बाड इस संदर्भ में एक अद्वितीय उदाहरण है। फिल्म का प्लॉट आजादी से पहले के दौर पर आधारित है और इसकी कहानी भारत की लोककथाओं और मिथकों से प्रेरित है। निर्देशक राही अनिल बर्वे ने जिस कुशलता से कहानी की नब्ज को पकड़ा है और स्क्रीनप्ले को प्रस्तुत किया है, वह इसे 1947 के दौर की एक जीवंत और वास्तविक झलक प्रदान करता है। फिल्म के सेट डिज़ाइन, कैरेक्टर ड्रॉइंग और कहानी की प्रस्तुति ने दर्शकों को उस युग की वास्तविकता और भयावहता का अनुभव कराया हैं।
2. दमदार कहानी का चमत्कार
फिल्म तुम्बाड की कहानी बेहद जटिल और दिलचस्प है। इसमें विनायक राव (सोहम शाह) अपने बेटे पांडुरंग (मोहम्मद समद) को देवी मां के दबे हुए खजाने के बारे में बताता है, जो कि एक प्राचीन रहस्य है। इस खजाने को खोजने की उत्सुकता पांडुरंग के मन में जगा देती है, और यही खजाना फिल्म की केंद्रीय कथा को आगे बढ़ाता है। खजाना धरती के गहरे गर्भ में छिपा हुआ है, जिसे एक शैतान नामक प्राणी, हस्तर, द्वारा संरक्षित किया गया है। हस्तर एक समय में देवता माना जाता था, लेकिन अब वह एक भयावह और खतरनाक प्राणी बन चुका हैं।
हस्तर की उपस्थिति और उसकी शक्ति फिल्म में डर और सस्पेंस का एक महत्वपूर्ण तत्व बनाती है। फिल्म में, पांडुरंग और विनायक राव की यात्रा इस खजाने को प्राप्त करने के लिए होती है, लेकिन हस्तर की बुरी शक्तियों और खजाने के रहस्यमय गुणों के कारण उनकी यात्रा बहुत ही खतरनाक और डरावनी होती हैं।
3. रियल लोकेशन दिखाई
तुम्बाड की शूटिंग ने इसकी असली रहस्यमय और भयानक атмосफियर को पूरी तरह से उभारा है, और फिल्म की लोकेशन का इस पर गहरा प्रभाव पड़ा है। फिल्म की सेटिंग और वातावरण को दर्शकों तक सही तरीके से पहुँचाने के लिए, लोकेशन का चयन बहुत महत्वपूर्ण था। फिल्म की मुख्य लोकेशन महाराष्ट्र के तुम्बाड गाँव में है, जो पुणे के पास स्थित है। यह गाँव अपनी असली और रहस्यमय भूतिया मान्यताओं के लिए जाना जाता है, जो फिल्म की हॉरर कहानी के लिए एक आदर्श पृष्ठभूमि प्रदान करता हैं।
फिल्म में जो किला खजाना दफन है, वह भी इसी गाँव में स्थित असली किले के आधार पर फिल्माया गया है। किले का पुराना और डरावना रूप फिल्म की भयानकता को बढ़ाता है और दर्शकों को उस युग की वास्तविकता का अनुभव कराता है। अन्य लोकेशन: इसके अलावा, फिल्म के कुछ दृश्य पालघर, महाबलेश्वर और सासवाड़ जैसी जगहों पर भी फिल्माए गए हैं। ये जगहें फिल्म की विविधता और सेटिंग को और भी प्रभावी बनाती हैं।
4. फिल्म के स्टार कास्ट की शानदार एक्टिंग
तुम्बाड की स्टार कास्ट में बड़े सुपरस्टार्स नहीं थे, लेकिन इस फिल्म की सफलता इस बात को साबित करती है कि एक अच्छी कहानी, निर्देशन और अद्वितीय फिल्म निर्माण तकनीक किसी भी फिल्म को एक कल्ट मूवी बना सकती है। फिल्म की स्टार कास्ट में शामिल प्रमुख कलाकार और उनकी शानदार एक्टिंग ने इसे विशेष बना दिया:
* सोहम शाह: उन्होंने विनायक राव का किरदार निभाया और अपने प्रदर्शन से दर्शकों को प्रभावित किया। सोहम शाह की गहरी और भावनात्मक एक्टिंग ने फिल्म को और भी प्रभावी बना दिया।
* रुद्रा सोनी: उन्होंने सदाशिव का किरदार निभाया, जो फिल्म की कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उनकी भूमिका ने फिल्म की जटिलता और गहराई को बढ़ाया।
* मोहम्मद समद: पांडुरंग के रूप में, मोहम्मद समद ने एक युवा और उत्सुक चरित्र का बेहतरीन चित्रण किया, जो कहानी की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
* ज्योति माल्शे: उन्होंने फिल्म में एक महत्वपूर्ण महिला किरदार निभाया, जो कहानी की भावनात्मक और नैतिक गहराई को बढ़ाती है।
* हर्ष के: उनकी भूमिका भी फिल्म की कहानी और अनुभव को समृद्ध करती है।
* कैमरून एंडरसन और दीपक दामले: इन कलाकारों ने भी अपने-अपने किरदारों के माध्यम से फिल्म की विश्वसनीयता और प्रभाव को बढ़ाया।
फिल्म का क्लाईमैक्स लाजवाब
तुम्बाड में हॉरर सीन और उनकी प्रस्तुति का तरीका निश्चित रूप से दर्शकों को डराने में सफल रहा है। विशेषकर, फिल्म का क्लाइमेक्स सीन एक विशेष उल्लेखनीय क्षण है, जो लाल बैकग्राउंड पर फिल्माया गया है और यह दृश्यों की गहराई और भयावहता को बढ़ाता है। इस बैकग्राउंड का उपयोग फिल्म के क्लाइमेक्स सीन में किया गया है, जो हस्तर के रौद्र रूप को और भी प्रभावी ढंग से दर्शाता है। लाल रंग की उपस्थिति आग, खून और घबराहट का संकेत देती है, जो सीन को और भी भयानक बनाती है। क्लाइमेक्स में हस्तर का वास्तविक रूप और उसकी बुरी शक्तियाँ पूरी तरह से सामने आती हैं। उसकी उपस्थिति और क्रूरता का चित्रण दर्शकों को एक अत्यंत डरावना अनुभव प्रदान करता हैं।