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26/11 मुंबई हमला: मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा की कोर्ट में पेशी, एनआईए ने मांगी 12 दिन की रिमांड

26/11 मुंबई हमला: मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा की कोर्ट में पेशी, एनआईए ने मांगी 12 दिन की रिमांड
अंतिम अपडेट: 2 घंटा पहले

26/11 मुंबई हमले ने देश को गहरा झटका दिया था। इस हमले में 174 निर्दोष लोग मारे गए थे और 300 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह हमला पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा द्वारा अंजाम दिया गया था।

नई दिल्ली: 26/11 मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड और पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा के करीबी सहयोगी तहव्वुर हुसैन राणा की कोर्ट में पेशी सोमवार को हुई। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने राणा की हिरासत 12 दिन और बढ़ाने के लिए कोर्ट से अनुरोध किया, जिसे कोर्ट ने सुनवाई के बाद सुरक्षित रख लिया है। 

राणा को 18 दिन की हिरासत की समाप्ति के बाद फिर से कोर्ट में पेश किया गया, जहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच उसे न्यायाधीश चंद्रजीत सिंह के सामने पेश किया गया।

26/11 के हमले में राणा की भूमिका

26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमलों ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। इस हमले में कुल 174 लोग मारे गए थे और 300 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस घातक हमले को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने अंजाम दिया था, और तहव्वुर राणा का नाम इस साजिश में प्रमुख रूप से उभरा था। 

राणा पर आरोप है कि उसने हमले की साजिश रचने में अहम भूमिका निभाई थी, जिससे हमला करने वाले आतंकवादी भारतीय राजधानी में अपने नापाक मंसूबों को अंजाम दे सके।

राणा की 18 दिन की हिरासत

राणा की हिरासत 11 अप्रैल को शुरू हुई थी, जब कोर्ट ने उसे 18 दिनों के लिए एनआईए की हिरासत में भेजा था। इस दौरान एनआईए ने राणा से मुंबई हमलों की पूरी साजिश को लेकर कड़ी पूछताछ की थी, ताकि हमले की योजना बनाने और उसे अमल में लाने के पीछे के षड्यंत्र को पूरी तरह से उजागर किया जा सके। 

राणा को लेकर यह माना जा रहा है कि उसने इस हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादियों की मदद की थी, और उसके जरिये लश्कर-ए-तैयबा को इस हमले को अंजाम देने के लिए जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए गए थे।

अमेरिका से प्रत्यर्पण और भारत में पेशी

तहव्वुर राणा को अमेरिका से भारत लाया गया था, जहां उसने पहले अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी। उसे 2009 में अमेरिका में गिरफ्तार किया गया था और उसके बाद 2011 में भारतीय अदालत ने उसे दोषी ठहराया था। हालांकि, उस समय राणा अमेरिका में था, और अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में उसके प्रत्यर्पण को मंजूरी दी। 

इसके बाद, फरवरी 2025 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उसकी भारत वापसी के फैसले पर अंतिम मुहर लगाई। एनआईए की विशेष टीम ने राणा को अमेरिका से भारत लाने में अहम भूमिका निभाई, और इसके लिए झारखंड कैडर के आईपीएस अधिकारी आशीष बत्रा, प्रभात कुमार, और जया रॉय जैसे अधिकारियों ने विशेष प्रयास किए।

तहव्वुर हुसैन राणा का जीवन परिचय

तहव्वुर हुसैन राणा पाकिस्तान में जन्मे एक पाकिस्तानी-कनाडाई नागरिक हैं, जिन्होंने 1990 के दशक में कनाडा में स्थायी निवास किया और बाद में कनाडा की नागरिकता प्राप्त की। पहले वह पाकिस्तान सेना में एक डॉक्टर के रूप में कार्यरत थे, लेकिन बाद में उन्होंने शिकागो में इमिग्रेशन कंसल्टेंसी का व्यवसाय शुरू किया। 

राणा के लश्कर-ए-तैयबा से संबंधों का आरोप कई बार सामने आया है, और उन्हें पाकिस्तानी आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का दोषी ठहराया गया है। उनका नाम 26/11 मुंबई हमलों के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक के रूप में सामने आया, और इसके बाद वह भारतीय अधिकारियों के लिए एक बड़ा टारगेट बन गए थे।

भारत में राणा का ट्रायल

राणा का ट्रायल भारत में शुरू हो चुका है, और एनआईए ने उसे अदालत में पेश किया है। एनआईए का दावा है कि राणा को 12 दिनों तक अपनी हिरासत में रखा जाना चाहिए, ताकि उससे और पूछताछ की जा सके और मुंबई हमलों की साजिश के बारे में और जानकारी हासिल की जा सके। इसके अलावा, एनआईए ने यह भी कहा कि राणा से और सवाल-जवाब की जरूरत है, ताकि हमले के अन्य साजिशकर्ताओं और उसके नेटवर्क की पहचान की जा सके।

विशेष सरकारी अभियोजक नरेंद्र मान ने एनआईए का प्रतिनिधित्व किया, जबकि राणा के वकील पीयूष सचदेवा ने उसकी ओर से पक्ष रखा। राणा पर आरोप है कि उसने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों की मदद की थी और हमले के लिए उन्हें वित्तीय और भौतिक सहायता प्रदान की थी। कोर्ट अब इस पर फैसला सुरक्षित रख चुका है, और उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस मामले में कोई महत्वपूर्ण फैसला लिया जाएगा।

आतंकवाद के खिलाफ भारत की सख्ती

तहव्वुर राणा की गिरफ्तारी और भारत लाने के बाद यह साफ हो गया है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में किसी भी साजिशकर्ता को बख्शने का मन नहीं बना रहा है। भारत में राणा का ट्रायल और उसकी सजा न केवल 26/11 हमले के शिकार लोगों को न्याय दिलाने का एक कदम होगा, बल्कि यह भी दिखाएगा कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।

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