संभल में अदालत के आदेश पर हिंसा हुई, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। अजमेर दरगाह को लेकर भी विवाद उठे हैं। 1991 का पूजा स्थल अधिनियम धार्मिक चरित्र बनाए रखने की बात करता है, जिसका सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में समर्थन किया।
Ajmer Dargah Row Sambhal Masjid Vivad: 2022 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया था, जिसमें उन्होंने धार्मिक विवादों से बचने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग खोजने से केवल धार्मिक तनाव बढ़ेगा और इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिलेगा। यह बयान ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर था और समाज में शांति बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर देता था।
संभल में हिंसा से बढ़ा विवाद
हालांकि, भागवत की इस सलाह के बावजूद, हिंदू दक्षिणपंथी समूहों ने इसे नजरअंदाज कर दिया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हाल ही में एक सर्वेक्षण को लेकर हिंसा भड़की, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। यह सर्वेक्षण शाही ईदगाह मस्जिद में किया जा रहा था, ताकि यह पता चल सके कि यह स्थल भगवान कल्कि के मंदिर के खंडहर पर बना है या नहीं। इस हिंसा ने यह साबित कर दिया कि कुछ लोग पुराने विवादों को फिर से उठाकर समाज में तनाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
अजमेर दरगाह को लेकर नया विवाद
इस बीच, अजमेर की दरगाह को लेकर एक नया दावा सामने आया है, जिसमें इसे संकट मोचन महादेव मंदिर के रूप में पहचानने की मांग की गई है। अजमेर की एक स्थानीय अदालत ने इस पर नोटिस जारी किया और धार्मिक स्थल के रूप में दरगाह के अस्तित्व पर सवाल उठाया। इस विवाद ने एक बार फिर धार्मिक उथल-पुथल को जन्म दिया है, और यह सवाल उठता है कि क्या इसे बढ़ाने से सामाजिक सौहार्द पर असर पड़ेगा।
हिंदू संगठनों का तर्क
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि हिंदू समुदाय को अदालतों में जाकर धार्मिक स्थलों का सर्वेक्षण करने का अधिकार है, क्योंकि उनका मानना है कि कई मस्जिदें मंदिरों के खंडहर पर बनी हैं। हालांकि, यह सवाल उठता है कि क्या ऐसे दावे और सर्वेक्षण धार्मिक तनाव को और बढ़ाएंगे, और क्या पूजा स्थल अधिनियम 1991 का पालन नहीं किया जाना चाहिए, जो धार्मिक स्थलों के चरित्र को संरक्षित रखने की बात करता है।
पूजा स्थल अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट का समर्थन
1991 में लाए गए पूजा स्थल अधिनियम के तहत, किसी भी धार्मिक स्थल का रूप जैसा था, वैसा ही बनाए रखना आवश्यक है, और यह विवादों को रोकने का एक प्रयास था। इस अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट ने भी 2019 में समर्थन दिया, खासकर अयोध्या मामले में, और कहा कि यह भारत की धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए जरूरी है। इसके तहत, इतिहास की गलतियों को वर्तमान और भविष्य में आधार बनाकर किसी भी धार्मिक स्थल का दावा नहीं किया जा सकता।
ज्ञानवापी मस्जिद और सर्वेक्षणों पर बढ़ती बहस
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है। 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद के सर्वेक्षण की अनुमति दी, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या अदालतों को धार्मिक विवादों के समाधान के लिए ऐसे सर्वेक्षणों की अनुमति देनी चाहिए। मुस्लिम समुदाय ने इसे धार्मिक तनाव बढ़ाने के रूप में देखा, जबकि हिंदू संगठनों ने इसे उचित ठहराया। इसके परिणामस्वरूप, विवादों के समाधान के लिए अदालतों के आदेशों पर बहस तेज हो गई है।
समाज में शांति और एकता की दिशा में कदम
आखिरकार, यह जरूरी है कि हम अतीत के विवादों को छोड़कर समाज में शांति और एकता की दिशा में काम करें। पुराने मुद्दों को उठाकर हम केवल तनाव और बंटवारा बढ़ा सकते हैं। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है, हमें एक नया भारत बनाना होगा, जहां समरसता और शांति हो। इसके लिए हमें वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रखते हुए समाधान की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे।