भारत की थाली: अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में मिली खाने-पीने के मामले में नंबर-1 पहचान

भारत की थाली: अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में मिली खाने-पीने के मामले में नंबर-1 पहचान
Last Updated: 2 घंटा पहले

जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में हमारे देश का आहार पृथ्वी के लिए सबसे अच्छा है। हम जो कुछ भी खाते हैं, उसका लाभ पृथ्वी को भी मिलता है। यह दावा स्विट्ज़रलैंड स्थित वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) द्वारा किया गया है।

भारतीय खानपान:

भारत के खाने-पीने की परंपरा की दुनिया में कोई तुलना नहीं है। स्विट्जरलैंड स्थित वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भारत का खानपान पृथ्वी के लिए सबसे बेहतर है। अपनी नवीनतम 'लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट' में, इस गैर-सरकारी संगठन ने भारतीय भोजन की विशेषताओं की सराहना की है, यह कहते हुए कि जो कुछ भी हम खाते हैं, उसका न केवल हमारे स्वास्थ्य पर, बल्कि पृथ्वी के पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय खानपान में मौसमी और स्थानीय उत्पादों का महत्व है, जो स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देता है। WWF ने इस बात पर जोर दिया है कि भारतीय खाद्य संस्कृति जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक हो सकती है, और इसे वैश्विक स्तर पर एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट

WWF की 'लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट' में भारत के खानपान की भरपूर सराहना की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, G20 देशों में भारत का खानपान सबसे उत्कृष्ट है। यदि 2050 तक सभी देशों ने भारत के खानपान की आदतों को अपनाया, तो पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव में काफी कमी आ सकती है। इसके विपरीत, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के खानपान को सबसे खराब बताया गया है। रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि भारतीय खाद्य परंपराएं न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं, बल्कि वैश्विक पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार साबित हो सकती हैं।

खानपान और पर्यावरण

रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि 2050 तक हर व्यक्ति बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के खानपान को अपनाता है, तो इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भारी बढ़ोतरी होगी। ऐसा होने पर वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से 263% अधिक बढ़ जाएगा। इस स्थिति में, अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हमें केवल एक नहीं, बल्कि सात पृथ्वियों की जरूरत होगी। यह तथ्य यह दर्शाता है कि खानपान की आदतें पर्यावरणीय स्थिरता के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं।

भारत का मिलेट मिशन: वैश्विक खाद्य सुरक्षा की दिशा में कदम

इस रिपोर्ट में भारत के 'मिलेट मिशन' की सराहना की गई है। इसमें कहा गया है कि यदि 2050 तक सभी देश भारत की तरह खानपान करने लगे, तो खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए केवल 0.84 धरती की जरूरत होगी। भारतीय खानपान प्रणाली से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी काफी कम है, जो इसे पर्यावरण के लिए लाभकारी बनाता है।

भारत सबसे आगे, अन्य देशों की जरूरतें बहुत अधिक

रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि अगर अर्जेंटीना के खानपान को अपनाया जाए, तो दुनिया को 7.4 धरती की आवश्यकता होगी। वहीं, ऑस्ट्रेलिया के खानपान के लिए 6.8 धरती, अमेरिका के लिए 5.5 धरती, और अन्य देशों जैसे ब्राजील (5.2), फ्रांस (5), इटली (4.6), कनाडा (4.5), और ब्रिटेन (3.9) के खानपान के लिए भी अधिक धरती की आवश्यकता पड़ेगी। इसके विपरीत, भारत का खानपान अपनाने से केवल 0.84 धरती की जरूरत होगी, जो इसे सबसे स्थायी विकल्प बनाता है।

खानपान का सही तरीका       

रिपोर्ट के अनुसार, अगर हम संतुलित और सही खानपान अपनाते हैं, तो हमें खाद्य उत्पादन के लिए ज्यादा जमीन की आवश्यकता नहीं होगी। इस तरह, उपलब्ध भूमि का उपयोग अन्य महत्वपूर्ण चीजों के लिए किया जा सकेगा। इसके अलावा, रिपोर्ट में प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोतों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। इसमें दालें, पौष्टिक अनाज, प्लांट-बेस्ड मीट, और पोषक तत्वों से भरपूर एल्गी शामिल हैं।

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