बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस की रणनीति चर्चा में है। हालिया बदलावों से अकेले चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हैं। पार्टी पुराने जनाधार को वापस पाने की कोशिश में जुटी है।
Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस की रणनीति को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। पार्टी के हालिया फैसलों और नेतृत्व परिवर्तन के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस इस बार राजद से अलग होकर चुनाव लड़ेगी? कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के हाल के फैसले इस संभावना को बल देते नजर आ रहे हैं।
तीन अहम फैसले, बदले राजनीतिक समीकरण
कांग्रेस ने बिहार में तीन बड़े फैसले लिए हैं, जो उसकी नई चुनावी रणनीति को दर्शाते हैं—
- प्रदेश प्रभारी की अदला-बदली: मोहन प्रकाश को हटाकर कृष्णा अल्लावारू को बिहार का नया प्रभारी बनाया गया।
- कन्हैया कुमार को बढ़त: जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को रोजगार के मुद्दे पर पदयात्रा की अनुमति दी गई।
- प्रदेश अध्यक्ष में बदलाव: राज्यसभा सांसद डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर विधायक राजेश कुमार को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।
इन फैसलों को कांग्रेस की राजद से अलग राह पकड़ने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। कन्हैया कुमार को तेजस्वी यादव के मुकाबले खड़ा करने की योजना कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।
राजद-कांग्रेस के रिश्तों में आई दरार
राजद और कांग्रेस के बीच पिछले कुछ समय से तनातनी देखने को मिल रही है। 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे सिर्फ 19 सीटें ही मिलीं। कांग्रेस को गठबंधन में कमतर आंकने की वजह से पार्टी के कई नेताओं में असंतोष पनप रहा था।
वहीं, पप्पू यादव को पूर्णिया लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार बनाए जाने की योजना भी राजद के विरोध के कारण ठंडे बस्ते में चली गई। इसके बाद पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इस घटनाक्रम ने कांग्रेस और राजद के संबंधों में और खटास पैदा कर दी।
क्या अकेले चुनाव लड़कर कांग्रेस होगी मजबूत?
कांग्रेस की मौजूदा स्थिति को देखें तो पार्टी अकेले दम पर सत्ता में वापसी की स्थिति में नहीं दिख रही। 1990 में सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस का जनाधार लगातार कमजोर हुआ है। 2010 में कांग्रेस ने 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा, लेकिन महज 4 सीटें जीत पाई। 2015 में वह राजद के गठबंधन में शामिल हुई और 27 सीटें जीतने में सफल रही।
अगर पार्टी इस बार भी अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करती है, तो उसे अपनी पुरानी गलतियों से सबक लेना होगा। सवर्ण वोटर एनडीए की ओर चले गए, मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग राजद व अन्य समाजवादी दलों में बंट गया, जबकि अनुसूचित जाति के वोट भी अलग-अलग दलों में विभाजित हो गए।
दल-बदल की समस्या और अंदरूनी कलह
कांग्रेस बिहार में सबसे अधिक दल-बदल झेलने वाली पार्टी बन चुकी है। प्रदेश अध्यक्ष के पद पर लगातार बदलाव और आंतरिक गुटबाजी ने पार्टी को कमजोर किया है। तारिक अनवर, चौधरी महबूब अली कैसर, अशोक चौधरी, अनिल शर्मा और रामजतन सिन्हा जैसे नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं।
क्या बिहार में नया समीकरण बनेगा?
कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार ने "सबको साथ लेकर चलने" का दावा किया है, लेकिन अंदरूनी गुटबाजी अब भी बनी हुई है। दूसरी ओर, राजद भी अकेले चुनाव लड़ने का जोखिम नहीं लेना चाहेगा, क्योंकि बिहार की राजनीति में गठबंधन की भूमिका अहम रहती है।