Engineers Day 2024: 15 सितंबर को मनाया जाता है Engineers Day, कौन थे भारत के पहले इंजीनियर? जानें पूरी जानकारी

Engineers Day 2024: 15 सितंबर को मनाया जाता है Engineers Day, कौन थे भारत के पहले इंजीनियर? जानें पूरी जानकारी
Last Updated: 14 सितंबर 2024

हर साल 15 सितंबर को भारत में इंजीनियर्स डे मनाया जाता है, जो भारत के महानतम इंजीनियरों में से एक, सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (एम. विश्वेश्वरैया) की स्मृति और उनकी असाधारण उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिए समर्पित है। उन्होंने केवल भारत के बुनियादी ढांचे को नया रूप दिया, बल्कि उनके नवाचारों ने आधुनिक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में क्रांति ला दी। उनके जीवन से जुड़ा एक बेहद रोचक किस्सा है, जो उनके समर्पण और कुशलता को दर्शाता है।

Engineers Day 2024: इंजीनियर्स डे 2024 हर साल की तरह 15 सितंबर को मनाया जाएगा और यह दिन विशेष रूप से भारत के महानतम इंजीनियर सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की स्मृति में मनाया जाता है। सर एम. विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1861 को कर्नाटक के मैसूर जिले के एक छोटे से गांव चिक्काबल्लापुर में हुआ था। उनकी इंजीनियरिंग में अद्वितीय प्रतिभा और नवाचार ने केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में उन्हें सम्मान और ख्याति दिलाई।

विश्वेश्वरैया ने कृष्णराज सागर बांध जैसी विशाल सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण करके भारत के कृषि क्षेत्र को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उन्होंने जल विद्युत उत्पादन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने शहरी नियोजन और विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत सरकार ने उनके अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। आइए इस विशेष अवसर पर उनके जीवन से जुड़े एक दिलचस्प किस्से के बारे में जानते हैं।

इंजीनियर डे क्यों मनाया जाता है ?

इंजीनियर्स डे सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि यह पूरे सप्ताह भर चलने वाला जश्न है जो इंजीनियरों के समर्पण और योगदान का सम्मान करता है। इस अवसर पर देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जैसे व्याख्यान, प्रदर्शनियां, और पुरस्कार समारोह। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य केवल इंजीनियरों के महत्वपूर्ण योगदान को पहचानना है, बल्कि युवा पीढ़ी को भी इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित करना है।

सर एम. विश्वेश्वरैया का मानना था कि इंजीनियरिंग केवल मशीनों का निर्माण करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बेहतर समाज के निर्माण का जरिया भी है। उन्होंने कहा था, "एक इंजीनियर का काम सिर्फ मशीनें बनाना नहीं है, बल्कि एक बेहतर समाज का निर्माण करना है।" यह विचार आज के समय में भी बेहद प्रासंगिक है, जब इंजीनियरिंग का उपयोग केवल तकनीकी विकास के लिए, बल्कि समाज की बेहतरी के लिए भी किया जा रहा है।

देश के पहले इंजीनियर: सर एम. विश्वेश्वरैया

सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जीवन प्रेरणा से भरा हुआ था। उनका जन्म 15 सितंबर 1861 को कर्नाटक के चिक्काबल्लापुर जिले के एक तेलुगु परिवार में हुआ। बचपन से ही वे बेहद जिज्ञासु और सीखने के प्रति उत्सुक थे। गांव में पुराने कुओं और तालाबों को देखकर वे अक्सर सोचते थे कि इनका निर्माण कैसे हुआ होगा। यही सवाल और जिज्ञासा उन्हें बाद में महान इंजीनियर बनने की राह पर ले गए।

डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने अपनी शुरुआती शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद बैंगलोर के सरकारी स्कूल से बीए की डिग्री हासिल की। इसके बाद, अपनी इंजीनियरिंग के प्रति गहरी रुचि को देखते हुए, उन्होंने पुणे के प्रतिष्ठित कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। यहां उन्होंने इंजीनियरिंग की बारीकियों को गहराई से समझा और कई व्यावहारिक परियोजनाओं में हिस्सा लिया।

कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने बॉम्बे के पीडब्ल्यूडी (Public Works Department) में नौकरी की और कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम किया। उनकी काबिलियत और समर्पण ने उन्हें देश के शीर्ष इंजीनियरों में स्थान दिलाया। उनके अद्वितीय कार्यों और योगदान के सम्मान में, भारत सरकार ने 1968 में उनके जन्मदिन को 'इंजीनियर्स डे' के रूप में मनाने की घोषणा की।

उनका योगदान केवल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में, बल्कि देश के विकास में भी अद्वितीय रहा है। उनके जैसे व्यक्तित्वों से हमें केवल सीखने की प्रेरणा मिलती है, बल्कि यह भी समझ आता है कि समर्पण और कड़ी मेहनत से हम किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं।

भारत के विकास में रहा अहम योगदान

डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया केवल एक महान इंजीनियर थे, बल्कि भारत के विकास के दूरदर्शी योजनाकार भी थे। उन्होंने भारत को आधुनिक और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं का नेतृत्व किया, जो आज भी देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध उपलब्धियों में कृष्णा सागर बांध का निर्माण शामिल है, जिसने सिंचाई और जल विद्युत उत्पादन को बढ़ावा दिया। इसके साथ ही, उन्होंने मैसूर में कई औद्योगिक और शहरी विकास योजनाओं की शुरुआत की, जिससे क्षेत्र की आर्थिक समृद्धि में इजाफा हुआ।

1955 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो उनके योगदान की उच्चतम मान्यता थी। इसके अलावा, ब्रिटिश सरकार ने भी उनकी असाधारण सेवाओं के लिए उन्हें नाइटहुड की उपाधि से नवाजा था।

डॉ. विश्वेश्वरैया ने अपने जीवनकाल में जिस तरह की दूरदृष्टि और तकनीकी ज्ञान का परिचय दिया, वह आज भी इंजीनियरों और योजनाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। 14 अप्रैल 1962 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी विरासत उनके द्वारा निर्मित बांधों, शिक्षण संस्थानों, और औद्योगिक संरचनाओं के रूप में हमेशा जीवित रहेगी। उनके कार्यों ने भारत के औद्योगिक और शहरी विकास को एक नई पहचान दी, और उनका योगदान राष्ट्र निर्माण के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।

रेल हादसा होते होते बचा

बताया गया कि डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैयाक एक बार एक अंग्रेजी अधिकारी के साथ ट्रैन में सफर कर रहे थे तो अचानक ट्रैन की गति में बदलाव और असामान्य आवाज सुनाई दी, तो जहां बाकी लोग इसे सामान्य मान रहे थे, वहीं विश्वेश्वरैया ने तुरंत समझ लिया कि कुछ तकनीकी समस्या हो सकती है। उनकी समझदारी और अनुभव ने उन्हें यह अनुमान लगाने में मदद की कि रेल की पटरी में कोई गड़बड़ी है।

उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के ट्रेन की चेन खींच दी, जिससे ट्रेन तुरंत रुक गई। उनके इस त्वरित और सूझबूझ भरे कदम से ट्रेन के यात्रियों की जान बच गई और एक संभावित बड़ा हादसा टल गया।

जब ट्रेन रुकते ही यात्री उन्हें कोसने लगे, तब भी उन्होंने शांति बनाए रखी। गार्ड के पूछने पर, विश्वेश्वरैया ने नपे-तुले शब्दों में बताया कि रेल की पटरी में गड़बड़ी हो सकती है, और उनके अनुमान के अनुसार लगभग 220 मीटर की दूरी पर पटरी टूटी हुई होगी।

जब गार्ड ने जांच की, तो विश्वेश्वरैया का अनुमान पूरी तरह से सही निकला। पटरी टूट चुकी थी और नट-बोल्ट बिखरे पड़े थे। यह दृश्य देखकर सभी यात्री और गार्ड दंग रह गए, और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। अंग्रेज अधिकारी, जो पहले उनके साधारण वेशभूषा और शांत स्वभाव का मजाक उड़ा रहे थे, शर्मिंदा हो गए और विश्वेश्वरैया से माफी मांगने लगे।

कर्नाटक के भागीरथ भी कहे जाते हैं: विश्वेश्वरैया

डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को कर्नाटक के भागीरथ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने कर्नाटक राज्य में महत्वपूर्ण जल संसाधन परियोजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करके राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भागीरथ का नाम महाभारत के एक चरित्र से जुड़ा है, जिसने गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसी प्रकार, विश्वेश्वरैया ने भी कर्नाटक के विकास के लिए कठिन परिश्रम किया और महत्वपूर्ण परियोजनाओं को पूरा किया।

उनकी प्रमुख परियोजनाओं में शामिल हैं

कृष्णराज सागर बांध- यह बांध कर्नाटक के मंड्या जिले में कृष्णा नदी पर बनाया गया था। यह बांध केवल सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि यह जल विद्युत उत्पादन के लिए भी उपयोगी साबित हुआ।

तुघर हवाई मार्ग- यह परियोजना बाढ़ की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण थी और इसके माध्यम से कर्नाटक के कई क्षेत्रों को लाभ हुआ।

पठानी बांध और अन्य सिंचाई परियोजनाएं- उन्होंने कई अन्य परियोजनाओं पर भी काम किया जो कर्नाटक के कृषि क्षेत्र को सुधारने में सहायक साबित हुईं।

इन परियोजनाओं की वजह से कर्नाटक के कृषि क्षेत्र में सुधार हुआ, पानी की उपलब्धता बढ़ी और राज्य की समृद्धि में योगदान हुआ। इसलिए, उनके इन अद्वितीय कार्यों के कारण उन्हें कर्नाटक के भागीरथ के उपनाम से सम्मानित किया गया।

 

 

 

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