कांग्रेस ने अपने 84वें अधिवेशन में गुजरात से एक अहम संदेश दिया, जिसमें उसने आज़ादी की दूसरी लड़ाई का ऐलान किया। यह केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि बीजेपी और संघ के सांप्रदायिक विचारधारा के खिलाफ कांग्रेस के संघर्ष को एक नई दिशा देने का प्रयास था। साबरमती तट से उठने वाले इस प्रस्ताव का उद्देश्य कांग्रेस को न केवल अपनी पुरानी विरासत से जोड़ना था, बल्कि बीजेपी की सोच के खिलाफ अपनी विचारधारा को भी स्थापित करना था।
नई दिल्ली: कांग्रेस ने अपनी राजनैतिक लड़ाई को एक नई दिशा देते हुए इसे केवल सत्ता प्राप्ति की कोशिश तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक वैचारिक संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया है। खासकर गुजरात में आयोजित कांग्रेस के 84वें अधिवेशन के दौरान, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बीजेपी और संघ के खिलाफ इस संघर्ष को एक बड़ी विचारधारा की लड़ाई के रूप में देखा।
उन्होंने यह तुलना करते हुए कहा कि जैसे कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों और संघ की विचारधारा के खिलाफ संघर्ष किया था, उसी तरह से आज कांग्रेस बीजेपी-संघ की सांप्रदायिक और विभाजनकारी विचारधारा के खिलाफ संघर्ष कर रही है।
कांग्रेस ने इस संघर्ष को सिर्फ एक राजनीतिक मुकाबला न मानते हुए इसे "आजादी की दूसरी लड़ाई" का नाम तक दे दिया, यह संकेत देते हुए कि यह केवल सत्ता प्राप्ति का प्रयास नहीं, बल्कि देश की एकता, धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की लड़ाई है। इस प्रकार कांग्रेस ने अपनी लड़ाई को एक उच्च और नैतिक उद्देश्य से जोड़ा, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि पार्टी का उद्देश्य केवल चुनाव जीतना नहीं है, बल्कि समाज में विभाजन और सांप्रदायिक तनाव के खिलाफ एक मजबूत संदेश देना है।
राहुल गांधी ने क्या कहा?
गांधी और पटेल जैसे स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों की भूमि से इस ऐलान ने राजनीति के नए समीकरण को जन्म दिया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने स्पष्ट रूप से कहा कि कांग्रेस आज भी उसी विचारधारा से लड़ा रही है, जिसके तहत उसने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था। उन्होंने बीजेपी-संघ की सांप्रदायिक विचारधारा के खिलाफ कांग्रेस के संघर्ष को आज़ादी की दूसरी लड़ाई के रूप में पेश किया।
राहुल गांधी ने भी इस अवसर पर बीजेपी को चुनौती देते हुए कहा कि यदि कोई विचारधारा की लड़ाई में बीजेपी को हरा सकता है तो वह केवल कांग्रेस है। कांग्रेस की इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य गुजरात में बीजेपी के सबसे मजबूत किले को भेदना था। गुजरात की राजनीति में बीजेपी ने दशकों तक अपना वर्चस्व बनाए रखा है, और कांग्रेस अब इसे चुनौती देने के लिए रणनीति बना रही है।
कांग्रेस का 'मिशन गुजरात'
कांग्रेस ने अपनी इस लड़ाई को मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए गांधी और पटेल की विचारधारा का सहारा लिया। साथ ही, उसने गुजरात में सामाजिक न्याय, रोजगार, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर अपने अगले कदम की योजना बनाई। कांग्रेस की योजना है कि वह गुजरात के विकास में कांग्रेस सरकार की अहम भूमिका को उजागर करे और यह साबित करे कि बीजेपी के शासन में कई क्षेत्रों में सुधार नहीं हो पाया है।
हालांकि, कांग्रेस के लिए यह चुनौती आसान नहीं होगी। बीजेपी की मजबूत पकड़ और गुजरात के लोगों के बीच मोदी और शाह की लोकप्रियता को चुनौती देना एक कठिन कार्य है। इसके अलावा, कांग्रेस को यहां अपने नेताओं की कमी का भी सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि पार्टी में युवा नेतृत्व की कमी महसूस की जा रही है। लेकिन कांग्रेस के इस नए मिशन से यह स्पष्ट हो गया है कि वह बीजेपी के खिलाफ लड़ाई के लिए पूरी तरह तैयार है।