साल 1993 के शुरुआती दिनों की बात है। उस समय पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु की सरकार थी और वामपंथ का प्रमुख प्रभाव था। इसी दौरान नदिया जिले में एक दिव्यांग महिला के साथ बलात्कार की दुर्योगपूर्ण घटना घटित हुई। इस घटना ने ज्योति बसु सरकार पर तीव्र आलोचना का सामना करना पड़ा। इस बीच, ममता बनर्जी पीड़िता के साथ राइटर्स बिल्डिंग (पश्चिम बंगाल सरकार का सचिवालय) पहुंच गईं, जहां उन्होंने न्याय की मांग की।
West Bengal: पश्चिम बंगाल (West Bengal) इन दिनों चर्चा का मुख्य केंद्र बना हुआ है। इसकी वजह कोलकाता में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई दुष्कर्म-हत्या की घटना है। पूरे देश में इस जघन्य काण्ड के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा है, और लोग सड़कों पर उतर आए हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। 11 दिनों से जारी इस हंगामे के बीच, सीएम ममता घिरी हुई नजर आ रही हैं।
मामले की जांच अब सीबीआई (CBI) के हवाले कर दी गई है। इस केस से जुड़े कई अनसुलझे सवाल अभी भी बाकी हैं, लेकिन इस घटना ने 31 साल पुरानी एक और घटना की यादों को ताजा कर दिया है। यह कहानी इसलिए महत्वपूर्ण (Important) है क्योंकि तब भी एक बलात्कार की घटना हुई थी, जिसमें ममता बनर्जी भी शामिल थीं, और उस समय भी सरकार पर सवाल उठाए गए थे।
बसु ने ममता से मुलाकात करने से किया इनकार
जानकारी के अनुसार, साल 1993 के प्रारंभिक दिनों की बात है। उस समय पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु की सरकार थी और वामपंथ का प्रभाव काफी मजबूत था। इस दौरान, नदिया जिले में एक दिव्यांग महिला के साथ बलात्कार की एक गंभीर घटना घटी थी। इस घटना के चलते ज्योति बसु सरकार पर तीव्र आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था।
इसी बीच, पीड़िता के साथ ममता बनर्जी राइटर्स बिल्डिंग (जो पश्चिम बंगाल सरकार का सचिवालय है) पहुंच गईं। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से मिलने के लिए उनके चेंबर के दरवाजे के सामने धरना देने का निर्णय लिया। ममता ने आरोप लगाया कि राजनीतिक संबंधों के चलते दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद, बसु ने ममता से मुलाकात करने से इनकार कर दिया।
पुलिसकर्मियों ने उतारा सीढ़ियों से नीचे
बसु के आने का समय नजदीक था, और जब लाख कोशिशों के बावजूद ममता वहाँ से हिलने को तैयार नहीं हुईं, तब महिला पुलिसकर्मियों ने उन्हें और पीड़िता को घसीटते हुए सीढ़ियों से नीचे उतारा। इसके बाद उन्हें पुलिस मुख्यालय लालबाजार ले जाया गया। इस दौरान ममता के कपड़े भी फट गए थे। इस घटना के बाद ममता बनर्जी ने संकल्प लिया था कि वह केवल मुख्यमंत्री बनकर ही इस इमारत में फिर से प्रवेश करेंगी। आखिरकार, 20 मई 2011 को, लगभग 18 वर्षों के बाद, उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में इस ऐतिहासिक लाल इमारत में फिर से कदम रखा।
ममता ने दिए धरने
ममता बनर्जी ने इन 18 वर्षों में वामपंथी सरकार के खिलाफ कई धरने दिए, जिन्होंने वामपंथी सरकार की नींव को हिला कर रख दिया। अंततः ममता सूबे की सत्ता में काबिज हो गईं। कहा जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु ममता की राजनीति से इतने परेशान थे कि उन्होंने कभी सार्वजनिक रूप से उनका नाम तक नहीं लिया। इसके बजाय, वे हमेशा ममता को 'वह महिला' कहकर ही संबोधित करते थे।
वैसे तो ममता बनर्जी का राजनीतिक करियर कई कहानियों को समेटे हुए है, जिनकी हर परत दिलचस्प और संघर्ष से भरी हुई है। लेकिन राज्य में बलात्कार के मामलों को लेकर कई बार ममता की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। हाल ही में कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में डॉक्टर के साथ हुई रेप और मर्डर की घटना के कारण ममता लगातार आलोचनाओं का सामना कर रही हैं। हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब ममता बनर्जी पर इस तरह के मामलों में प्रश्न उठे हों।
ममता की भूमिका पर उठे सवाल
हंसखाली मामले को भुलाना आसान नहीं है, खासकर जब ममता बनर्जी ने रेप (Rape) की घटना को केवल एक अफेयर कहकर खारिज कर दिया था। इसी प्रकार, कामुदनी में हुई एक घटना के प्रदर्शन कर रहे लोगों को उन्होंने माकपा समर्थक करार दिया था। ममता बनर्जी की गलतियों की लिस्ट में 'रेप' का मामला सबसे ऊपर है, विशेषकर तब जब उनकी पार्टी का कोई सदस्य इसमें शामिल हो।
अपने वर्षों की सत्ता के दौरान, ममता बनर्जी ने कई बलात्कार के मामलों को झूठा बताकर अनदेखा किया है। जब एक महिला नेता के रूप में उनसे बलात्कार के मामलों पर सवाल (Question) किया जाता है, तो वह खुद को पीड़ित महसूस करने लगती हैं। विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों पर, वह अक्सर पलटवार करते हुए उल्टे आरोप लगाती हैं।