ईरान के सुप्रीम लीडर का बड़ा बयान, ट्रंप के साथ वार्ता से किया इनकार, जानिए पूरा मामला 

ईरान के सुप्रीम लीडर का बड़ा बयान, ट्रंप के साथ वार्ता से किया इनकार, जानिए पूरा मामला 
अंतिम अपडेट: 6 घंटा पहले

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की चिट्ठी के बावजूद, ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई ने परमाणु समझौते पर वार्ता से इनकार किया, इसे जनता के लिए धोखा और ईरान पर आर्थिक दबाव बढ़ाने वाला बताया।

Iran-America: ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्ला अली खामेनेई ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौते (न्यूक्लियर डील) को लेकर किसी भी तरह की बातचीत से इनकार कर दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भेजी गई चिट्ठी के जवाब में खामेनेई ने स्पष्ट कहा कि यह वार्ता सिर्फ धोखा है और इससे ईरान पर आर्थिक दबाव और बढ़ेगा।

ट्रंप की चिट्ठी का ईरान ने दिया सख्त जवाब

डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में घोषणा की थी कि उन्होंने ईरान के सुप्रीम लीडर को एक पत्र भेजकर परमाणु समझौते का प्रस्ताव दिया है। यह चिट्ठी बुधवार को ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराकची को संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति के सलाहकार अनवर गर्गाश ने सौंपी थी। लेकिन खामेनेई ने विश्वविद्यालय के छात्रों से बातचीत के दौरान ट्रंप की पेशकश को ‘धोखाधड़ी’ बताया और इसे सिरे से खारिज कर दिया।

"अमेरिका भरोसे के लायक नहीं" – खामेनेई

ईरान की सरकारी मीडिया के अनुसार, खामेनेई ने कहा, "जब हमें पहले से ही पता है कि अमेरिका अपने वादों का सम्मान नहीं करेगा, तो वार्ता करने का क्या मतलब है?" उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन से बातचीत करने का मतलब होगा कि ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध और कड़े किए जाएंगे और देश पर दबाव बढ़ेगा।

2018 में ट्रंप ने फिर लगाए थे प्रतिबंध

गौरतलब है कि 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को 2015 के परमाणु समझौते से बाहर कर लिया था और ईरान पर नए सिरे से कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके चलते ईरान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई थी। खामेनेई ने स्पष्ट किया कि ईरान किसी भी दबाव में आकर वार्ता नहीं करेगा और अमेरिका की धमकियों के आगे झुकने वाला नहीं है।

"ईरान के लिए बातचीत का दरवाजा खुला है" – ट्रंप

हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि तेहरान के लिए बातचीत का दरवाजा हमेशा खुला रहेगा। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में ‘प्रेशर कैंपेन’ चलाकर ईरान पर वैश्विक स्तर पर प्रतिबंधों का शिकंजा कसने की कोशिश की थी। अमेरिका का लक्ष्य ईरान को अंतरराष्ट्रीय बाजार से अलग-थलग करना और उसके तेल निर्यात पर रोक लगाना रहा है, ताकि पश्चिम एशिया (मिडिल ईस्ट) में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों का दबदबा बना रहे।

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