बांग्लादेश ने मिरसराय में भारत के इकोनॉमी जोन को नकार दिया। परियोजना स्थगित हुई है। इससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव बढ़ा है। भारत ने भी बांग्लादेश से कई वस्तुओं के आयात पर रोक लगाई है।
Bangladesh: भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्ते हमेशा से दोस्ताना और सहयोगी रहे हैं, लेकिन हाल ही में दोनों देशों के बीच कई मुद्दों ने विवादों को जन्म दिया है। इन मुद्दों में से एक बड़ा विवाद मिरसराय में भारत के इकोनॉमी जोन को लेकर सामने आया है। बांग्लादेश इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (BIDA) के अध्यक्ष आशिक चौधरी ने इस प्रोजेक्ट को लेकर ऐसा बयान दिया है जिससे भारत-बांग्लादेश के बीच एक नई कड़वाहट उभरती नजर आ रही है।
मिरसराय में भारत का इकोनॉमी जोन नहीं, बांग्लादेश का दावा
बांग्लादेश के अधिकारी आशिक चौधरी ने साफ शब्दों में कहा है कि मिरसराय में भारत का कोई भी इकोनॉमी जोन मौजूद नहीं है। उनका कहना है कि यह योजना केवल कागजों में ही है, असल में इस पर कोई ठोस काम नहीं हुआ है। यह बयान इस बात को लेकर आया है कि भारत ने 2020 में मिरसराय के बंगबंधु शेख मुजीब इंडस्ट्रियल सिटी में 115 मिलियन डॉलर के लोन को मंजूरी दी थी, ताकि यहां 900 एकड़ जमीन पर बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जा सके।
हालांकि, अब बांग्लादेश की तरफ से इस परियोजना को लेकर नकारात्मक रुख देखने को मिल रहा है। आशिक चौधरी ने कहा कि योजना का मुख्य प्लान 33,000 एकड़ जमीन पर आधारित था, जिसे पहले ही घटाकर 10,000 से 15,000 एकड़ किया जा चुका है। वे यह भी कहते हैं कि उन्हें इतनी बड़ी जमीन की जरूरत नहीं है और बाकी जमीन पर वे अलग-अलग चरणों में निर्णय लेंगे।
मोहम्मद यूनुस सरकार के सत्ता में आने के बाद रुकी प्रगति
यह ध्यान देने वाली बात है कि अगस्त 2024 में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार सत्ता में आने के बाद से इस मिरसराय प्रोजेक्ट पर कोई भी विकास कार्य नहीं हुआ है। बांग्लादेश की इस नीति ने भारत के लिए चिंता का विषय बना दिया है। आशिक चौधरी ने साफ कहा कि यह प्रोजेक्ट फिलहाल पूरी तरह से स्थगित है और इस पर अब कोई काम नहीं चल रहा।
चटगांव बंदरगाह की रणनीतिक महत्ता और बांग्लादेश का रुख
चटगांव बंदरगाह पूरे बांग्लादेश का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण बंदरगाह है। आशिक चौधरी ने कहा कि यह बंदरगाह न सिर्फ बांग्लादेश बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए महत्वपूर्ण है। यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, नेपाल और भूटान के लिए भी एक प्रमुख कनेक्शन प्वाइंट है। इसलिए इस बंदरगाह और उसके आस-पास के क्षेत्रों का सही उपयोग करना जरूरी है।
लेकिन बांग्लादेश की इस नई नीति ने भारत के साथ संबंधों में तनाव पैदा कर दिया है। बांग्लादेश की सरकार ने अब भारत के मिरसराय प्रोजेक्ट को लेकर रूख बदल लिया है, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावनाएं सीमित होती दिख रही हैं।
भारत-बांग्लादेश संबंधों में कड़वाहट बढ़ने के पीछे की वजहें
हाल के महीनों में भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में कई विवाद सामने आए हैं। साल 2025 की शुरुआत में मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर चीन के समर्थन वाली टिप्पणी की थी, जिससे भारत-बांग्लादेश के बीच कड़वाहट बढ़ी। इसके बाद भारत ने भी बांग्लादेश से कई वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
भारत ने बांग्लादेश से रेडीमेड गारमेंट्स, कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, स्नैक्स, कपास और सूती धागे जैसे कई सामानों के भारतीय लैंड पोर्ट्स के जरिए आयात पर रोक लगा दी है। वहीं, बांग्लादेश ने भारत से धागे के आयात पर जमीनी रास्तों से प्रतिबंध लगाया है। इन दोनों कदमों ने व्यापारिक संबंधों को प्रभावित किया है और दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ावा दिया है।
बांग्लादेश ने अपने ही पैरों पर मारी कुल्हाड़ी
बांग्लादेश के इस फैसले को कुछ विश्लेषकों ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के रूप में देखा है। क्योंकि मिरसराय प्रोजेक्ट भारत और बांग्लादेश के आर्थिक सहयोग के लिहाज से महत्वपूर्ण था और इससे बांग्लादेश की इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट को भी मदद मिलनी थी। इसके साथ ही भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और पड़ोसी देशों के साथ व्यापार में भी वृद्धि हो सकती थी।