स्वतंत्रता दिवस के ठीक एक दिन पहले, 14 अगस्त 2025 को निर्देशक अरुण गोपालन ने एक नई थ्रिलर फिल्म ‘तेहरान’ रिलीज़ की। यह फिल्म जी5 पर अब स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध है। लगभग 2 घंटे 5 मिनट की इस फिल्म में जॉन अब्राहम अपने नए और गंभीर अवतार में नजर आते हैं।
- फिल्म रिव्यू: तेहरान
- स्टार रेटिंग: 4/5
- पर्दे पर: 14.08.2025
- डायरेक्टर: अरुण गोपालन
- शैली: थ्रिलर फिल्म
एंटरटेनमेंट: स्वतंत्रता दिवस से ठीक एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को डायरेक्टर अरुण गोपालन अपनी नई फिल्म 'तेहरान' लेकर आए हैं। यह फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि देशभक्ति और कर्तव्य की शक्ति का आईना है। फिल्म में जॉन अब्राहम एक नए और दमदार अवतार में नजर आ रहे हैं। 'तेहरान' हर दर्शक के दिल में देश के प्रति गर्व और जिम्मेदारी की भावना जगाती है।
कहानी दिल्ली में हुए बम धमाके के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जिसमें एक्शन, सस्पेंस और इमोशन का जबरदस्त मिश्रण देखने को मिलता है। बम धमाके में कई लोग घायल होते हैं और एक फूल बेचने वाली लड़की की मौत हो जाती है। DCP राजीव कुमार (जॉन अब्राहम) इस केस की जांच संभालते हैं। ईरान उसे मारना चाहता है, इज़राइल ने धोखा दिया है और भारत की जासूसी दुनिया में उसे अलग तरह की चुनौती देती है।
कहानी और विषय वस्तु
फिल्म की शुरुआत दिल्ली में हुए बम धमाके से होती है, जिसमें कई लोग घायल होते हैं और एक फूल बेचने वाली लड़की की मौत हो जाती है। जॉन अब्राहम द्वारा निभाया गया DCP राजीव कुमार, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का वरिष्ठ अधिकारी, इस मामले की जांच संभालता है। कहानी में जासूसी, सस्पेंस और एक्शन के साथ अंतरराष्ट्रीय राजनीति की जटिलताएं भी शामिल हैं।
राजीव कुमार के सामने दुश्मन सिर्फ आतंकवादी नहीं हैं; ईरान उसे मारना चाहता है, इजराइल ने धोखा दिया है, और अपने ही देश की राजनीतिक सीमाएं उसे सीमित करती हैं। फिल्म का मूल संदेश यह है कि राष्ट्रीय कर्तव्य और देशभक्ति व्यक्तिगत दर्द से ऊपर होती हैं।
निजी दर्द और राष्ट्रीय मिशन
राजीव कुमार की कहानी व्यक्तिगत पीड़ा से राष्ट्रीय मिशन तक पहुंचती है। वह उस मासूम बच्ची की मौत को अपने लिए व्यक्तिगत अपमान मानता है, और अपराधियों तक पहुंचने का प्रण करता है। हालांकि राह आसान नहीं है। जब जांच की डोर ईरान तक जाती है, तो राजनयिक समीकरण, अंतरराष्ट्रीय संबंध और राजनीतिक बाधाएं सामने आती हैं।
फिल्म दर्शकों को तेज़ रफ्तार एक्शन, राजनयिक द्वंद्व, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और व्यक्तिगत संघर्ष के मिश्रण में ले जाती है। यह कहानी बताती है कि सच्चा बलिदान अक्सर नजरों से छिपा होता है, और एक व्यक्ति की प्रतिबद्धता राष्ट्र के लिए कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है।
लेखन और पटकथा की ताकत
‘तेहरान’ की सबसे बड़ी ताकत इसकी बुद्धिमान और परिपक्व पटकथा है। रितेश शाह और आशीष प्रकाश वर्मा की सह-पटकथा और बिंदी करिया की मूल कहानी फिल्म को केंद्रित, स्थिर और उद्देश्यपूर्ण बनाती है। यह कोई ‘देशभक्ति का शोर मचाती’ फिल्म नहीं है; बल्कि चुपचाप और गहराई से प्रभाव डालती है।फिल्म का लय धीमा लेकिन सटीक है।
संवादों की अधिकता या भावनाओं का अतिनाटकीय प्रदर्शन नहीं है। इसके बजाय कहानी हर मोड़ पर विचारोत्तेजक और भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई है। दर्शकों को भारत, ईरान और इजराइल के भू-राजनीतिक परिवेश की बुनियादी समझ होने पर कहानी और अधिक प्रभावशाली लगती है।
प्रमुख कलाकार और प्रदर्शन
जॉन अब्राहम ने ‘तेहरान’ में अपने करियर का शांत लेकिन प्रभावी अभिनय किया है। न कोई ऊंचे सुर में भाषण, न बेतहाशा गोलियां; बस आंखों में दर्द, चेहरे पर जिम्मेदारी और हर दृश्य में तनाव। मानुषी छिल्लर ने सीमित संवादों में प्रभावी भूमिका निभाई है, जबकि नीरू बाजवा अपने अनुभव और संतुलित प्रदर्शन से कहानी में गहराई जोड़ती हैं। विलेन के रूप में हादी खानजानपुर की भूमिका कहानी में रहस्य और गंभीरता बनाए रखती है।
अरुण गोपालन का निर्देशन यथार्थवादी और नाटकीयता रहित है। फिल्म में युद्ध और संघर्ष केवल गोलियों से नहीं, बल्कि निर्णयों, रणनीतियों और चुप्पियों से लड़ता है। सिनेमैटोग्राफी में भारत की व्यस्त गलियों से लेकर तेहरान की रहस्यमयी दुनिया तक हर फ्रेम में सच्चाई और तनाव झलकता है। तनिष्क बागची का संगीत और स्कोर फिल्म के मूड के अनुसार चलता है, बिना जबरदस्ती देशभक्ति गीतों या भावनात्मक बैकग्राउंड के।
कौन देख सकता है यह फिल्म?
‘तेहरान’ सभी दर्शकों के लिए नहीं है। इसे समझने के लिए ध्यान, धैर्य और भू-राजनीतिक विषयों की समझ आवश्यक है। फारसी संवाद और तथ्य-प्रधान दृश्यों के कारण कुछ दर्शकों को दूरी महसूस हो सकती है। पारंपरिक एक्शन प्रेमियों के लिए गोलियों, कार चेस या विस्फोट जैसी दृश्यांतराल अपेक्षित नहीं है; यहां रणनीतिक, मौन और सोची-समझी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित है।
‘तेहरान’ केवल एक थ्रिलर नहीं, बल्कि देशभक्ति, कर्तव्य और व्यक्तिगत बलिदान की गहरी कहानी है। यह फिल्म ठहरती है, सोचने का मौका देती है और फिर गहराई से प्रभाव डालती है। यह उन लोगों की गाथा है, जो कभी सुर्खियों में नहीं आते, लेकिन जिनकी वजह से राष्ट्र सुरक्षित रहता है।