बिहार में मौसम में बदलाव आने लगा है। मौसम विभाग के अनुसार, प्रदेश में ठंड धीरे-धीरे बढ़ने वाली है। आज राजधानी पटना सहित अधिकांश क्षेत्रों में अगले तीन दिनों तक मौसम शुष्क रहेगा। दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के बाद पछुआ हवाओं का प्रवाह बढ़ेगा। आगामी एक सप्ताह में रात के तापमान में क्रमिक गिरावट होने से ठंडक महसूस होगी।
पटना: दक्षिण-पश्चिम मानसून अब प्रदेश से लौट चुका है, और इसके साथ ही हवाओं की दिशा भी बदलने लगी है। पहले राज्य में दक्षिण-पश्चिमी हवाओं का प्रभाव अधिक था, लेकिन मौसम में बदलाव के चलते अब उत्तर-पश्चिमी हवाओं का प्रभाव बढ़ने लगा है।
हवाओं की दिशा में बदलाव के कारण मौसम में भी परिवर्तन नजर आ रहा है। अब दिन ढलते ही शाम को हल्की ठंडक का अहसास होने लगा है।
पटना मौसम विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ संजय कुमार का कहना है कि बिहार के मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है, और यह क्रम आगे भी जारी रहेगा। रात में आर्द्रता धीरे-धीरे बढ़ती जाएगी।
रात के तापमान में होगा 8 से 10 डिग्री सेल्सियस का अंतर
अगले कुछ दिनों में राज्य में दिन और रात के तापमान में 8 से 10 डिग्री सेल्सियस का अंतर देखा जा सकता है। रविवार को डिहरी राज्य का सबसे ठंडा दिन रहा, जहां न्यूनतम तापमान 21 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। वहीं, बांका और नवादा में अधिकतम तापमान 34.6 डिग्री सेल्सियस रहा।
अगले चार दिनों तक मौसम इसी तरह बना रहेगा, उसके बाद बदलाव संभव है। फिलहाल, राज्य का अधिकतम तापमान औसतन 32 से 34 डिग्री सेल्सियस रहने की उम्मीद है, जबकि न्यूनतम तापमान 24 से 26 डिग्री सेल्सियस के बीच रहेगा। रविवार को पटना में अधिकतम तापमान 31.4 और न्यूनतम तापमान 25.1 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। अब राजधानी में तापमान में भी धीरे-धीरे गिरावट आने की संभावना है।
मौसम में बदलाव से धान की फसल में कंडुआ रोग का बढ़ा प्रकोप
मौसम में लगातार बदलाव, वातावरण में नमी और बादल छाए रहने के कारण धान की फसल में कंडुआ रोग फैल रहा है, जिसे किसान आमतौर पर लेढ़ा रोग या हल्दी रोग के नाम से जानते हैं।
हाल के दिनों में इस रोग का प्रकोप धान की फसल पर तेजी से बढ़ा है, जिससे किसान चिंतित हैं।
कंडुआ रोग कैसे फैलता है?
जमुहार स्थित गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय के नारायण कृषि विज्ञान संस्थान के शस्य विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. धनंजय तिवारी के अनुसार, कंडुआ रोग एक फफूंद जनित बीमारी है, जो संक्रमित बीज, मिट्टी और वायु के माध्यम से फैलता है।
इस समय इसका प्रकोप बढ़ गया है, क्योंकि धान में बालियां निकल रही हैं, और इस अवस्था में रोग का प्रकोप अधिक होता है। प्रभावित पौधों के दाने बड़े गांठों में परिवर्तित हो जाते हैं, और उनमें पीले रंग का पाउडर दिखने लगता है, जो छूने पर हाथ पर लग जाता है।
उन्होंने बताया कि इस रोग के कारण उत्पादन के साथ-साथ अंकुरण में भी समस्या आती है।
कंडुआ रोग से बचाव कैसे करें?
नियमित निगरानी: खेत की नियमित निगरानी करते रहना चाहिए।
प्रभावित पौधों को हटाना: यदि पौधों की एक-दो बालियों पर रोग के लक्षण दिखाई दें, तो प्रभावित बालियों को सावधानीपूर्वक काटकर खेत से बाहर निकालें या जला दें।
सचेत रहें: यदि किसी भी खेत में रोग के लक्षण दिखते हैं, तो किसानों को तुरंत सचेत हो जाना चाहिए, क्योंकि यह हवा के माध्यम से तेजी से फैलता है।
प्रारंभिक नियंत्रण: यदि शुरुआती दौर में रोग लग जाए, तो इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
फफूंदनाशी का उपयोग: रोग के नियंत्रण के लिए फफूंदनाशी रसायन, जैसे प्रोपेकोनाजोल, का उपयोग करें। इसे एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर मौसम साफ रहने पर छिड़काव करें।