Paris Paralympics 2024: भारत के खाते में आया 8वां मेडल, डिस्कस थ्रो में Yogesh Kathuniya ने जीता सिल्वर

Paris Paralympics 2024: भारत के खाते में आया 8वां मेडल, डिस्कस थ्रो में Yogesh Kathuniya ने जीता सिल्वर
Last Updated: 02 सितंबर 2024

भारत के पैरालंपिक एथलीट योगेश कथूनिया ने पेरिस पैरालंपिक 2024 में पुरुषों की डिस्कस थ्रो F56 इवेंट में रजत पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है। इससे पहले, उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक 2020 में भी इसी इवेंट में सिल्वर मेडल जीता था।

Yogesh Kathuniya: भारत के योगेश कथूनिया ने सोमवार को पेरिस पैरालंपिक 2024 में मेंस डिस्कस थ्रो F56 स्पर्धा में रजत पदक जीता। इससे पहले, उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक 2020 में भी सिल्वर मेडल हासिल किया था। पेरिस के स्टेड डी फ्रांस स्टेडियम में हुए इस इवेंट में योगेश ने 42.22 मीटर के सीजन-बेस्ट थ्रो के साथ अपनी सफलता को दोहराया। अपने 6 प्रयासों में, योगेश ने पहले ही प्रयास में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, जो उन्हें रजत पदक दिलाने के लिए पर्याप्त साबित हुआ।

गोल्ड मेडल का था लक्ष्य

भारतीय पैरा-एथलीट योगेश कथूनिया, जिन्होंने अपने करियर में कई पदक जीते हैं, का इस बार पेरिस पैरालंपिक 2024 में लक्ष्य स्वर्ण पदक था। हालांकि, ब्राजील के क्लॉडनी बतिस्ता ने 46.86 मीटर के थ्रो के साथ नया पैरालिंपिक रिकॉर्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक जीता। योगेश ने अपने सीजन-सर्वश्रेष्ठ 42.22 मीटर के थ्रो के साथ अच्छी शुरुआत की, लेकिन अपने शेष 5 प्रयासों में वह इस प्रदर्शन से बेहतर नहीं कर सके। इस कारण उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा, हालांकि यह भी उनके करियर की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

Paralympics में भारत का 8वां मेडल

पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत का यह 8वां पदक था, जिसमें पैरा-एथलेटिक्स में चौथा पदक शामिल है। इससे पहले, रविवार, 1 सितंबर को भारत ने एथलेटिक्स में एक रजत और एक कांस्य पदक जीता था। निषाद कुमार ने ऊंची कूद में रजत पदक जीता, जबकि प्रीति पाल ने 200 मीटर में कांस्य पदक हासिल कर एथलेटिक्स में अपना दूसरा पदक जीता।

कौन हैं योगेश कथूनिया?

योगेश कथूनिया की प्रेरक यात्रा एक अद्वितीय संघर्ष और धैर्य की कहानी है। 3 मार्च, 1997 को भारत के बहादुरगढ़ में जन्मे योगेश ने डिस्कस थ्रो में सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए कई चुनौतियों का सामना किया है।

9 साल की उम्र में योगेश गुलियन-बैरी सिंड्रोम का शिकार हो गए थे, जो एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। इस बीमारी के कारण उन्हें दो साल तक व्हीलचेयर पर रहना पड़ा और उनकी नसें कमजोर हो गईं, जिससे वह चल भी नहीं पाते थे। इस कठिन समय में भी उनकी मां, मीना देवी, ने उन्हें कभी भी छोड़ने का सोचा नहीं और लगातार उनका समर्थन किया।

योगेश के दृढ़ संकल्प और उनकी मां के अटूट समर्थन ने उन्हें केवल अपने शारीरिक कठिनाइयों को पार करने में मदद की बल्कि उन्हें विश्व स्तर पर भी सफलता दिलाई। आज, उनकी उपलब्धियां और उनके संघर्ष एक प्रेरणास्त्रोत हैं।

इनकी कई उपलब्धियां

योगेश कथूनिया की उपलब्धियां पैरा एथलेटिक्स के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक उदाहरण हैं। 2018 में, उन्होंने बर्लिन में विश्व पैरा एथलेटिक्स यूरोपीय चैंपियनशिप में 45.18 मीटर डिस्कस फेंककर F36 श्रेणी में नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। यह उपलब्धि उनकी प्रतिबद्धता और मेहनत का प्रतीक थी और उनकी सफलता की शुरुआत थी।

इसके बाद, उन्होंने टोक्यो 2020 पैरालिंपिक में पुरुषों की डिस्कस थ्रो F56 स्पर्धा में रजत पदक जीतकर अपने करियर को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। इस उपलब्धि के लिए उन्हें 2021 में अर्जुन पुरस्कार भी मिला, जो भारत के सबसे प्रतिष्ठित खेल पुरस्कारों में से एक है।

 

 

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